बिहार: रघुवंश ने CM नीतीश को विकास कार्यों के लिए लिखा पत्र, बेटे को JDU से MLC बनाने की चल रही बात!

दिल्लीC AIIMS में एडमिट रघुवंश प्रसाद सिंह के गुरुवार को RJD से इस्तीीफा देने के बाद उनका हाल जानने के लिए BJP प्रसिडेंट जेपी नड्डा व बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने फोन कर हाल जाना है। इस बीच रघुवंश प्रसाद सिंह ने सीएम नीतीश कुमार को पत्र लिखकर विकास से संबंधित कई मांगें रखीं हैं।यह भी है चर्चा कि रघुवंश प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र सत्यप्रकाश सिंह गवर्नर कोटे से MLC बनाये जा सकते हैं। इसे लेकर जनता दल यूनाइटेड से बात चल रही है।

बिहार: रघुवंश ने CM नीतीश को विकास कार्यों के लिए लिखा पत्र, बेटे को JDU से MLC बनाने की चल रही बात!

पटना। दिल्लीC AIIMS में एडमिट रघुवंश प्रसाद सिंह के गुरुवार को RJD से इस्तीीफा देने के बाद उनका हाल जानने के लिए BJP प्रसिडेंट जेपी नड्डा व बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने फोन कर हाल जाना है। इस बीच रघुवंश प्रसाद सिंह ने सीएम नीतीश कुमार को पत्र लिखकर विकास से संबंधित कई मांगें रखीं हैं। यह भी है चर्चा कि रघुवंश प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र सत्यप्रकाश सिंह गवर्नर कोटे से MLC बनाये जा सकते हैं। इसे लेकर जनता दल यूनाइटेड से बात चल रही है।

नड्डा व नीतीश ने जाना बीमार रघुवंश का हाल

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आज सुबह रघुवंश प्रसाद सिंह को फोन कर उनका हाल जाना है। सीएम नीतीश कुमार व केंद्रीय स्व्स्थ्ुस राज्य मंत्री अश्विनी चौबे भी ने भी उन्हें फोन कर हाल जाना है। बताया जाता है कि रघुवंश प्रसाद सिंह के आरजेडी से इस्ती फा की घोषणा के बाद एनडीए के बड़े नेताओं के उनसे संपर्क के मायने हैं। रघुवंश प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र सत्यप्रकाश सिंह को गवर्नर कोटे से एमएलसी बनाए जाने की भी चर्चा है। हालांकि, रघुवंश ने इस बाबत कुछ भी नहीं कहा है।

रघुवंश ने  नीतीश कुमार को पत्र लिख कर रखीं मांगें

रघुवंश प्रसाद सिंह ने सीएम नीतीश कमार को पत्र लिख कर कुछ मांगें रखी हैं। फेसबुक पोस्ट के माध्यम से उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उन तीन मांगों को पूरा करने का अनुरोध किया है, जिन्हेंस वे पूरा नहीं कर पाए। इनमें गणतंत्र की पहली भूमि वैशाली में झंडोत्तोलन करने, भगवान बुद्ध के भिक्षापात्र को काबुल से मंगवाने तथा मनरेगा कानून में आम किसानों की जमीन में काम करने का संशोधन अध्यादेश लाने की मांगें शामिल हैं। रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनरेगा कानून में सरकारी और एससी-एसटी की जमीन के प्रबंध का विस्तार करते हुए उस खंड में आम किसानों की जमीन में भी काम जोड़ने का आग्रह किया है। उन्होंने यह भी आग्रह किया है कि इसके लिए अध्यादेश लागू कर आचार संहिता से बचना चाहिए।

26 जनवारी को वैशाली में हो झंडोत्तोलन

रघुवंश प्रसाद सिंह ने वैशाली को जनतंत्र की जननी और प्रथम गणतंत्र कहते हुए सीएम से आग्रह किया है कि वे 15 अगस्त को पटना में और 26 जनवरी को वैशाली में राष्ट्रध्वज फहराने का फैसला करें। उन्होंने इसके लिए वर्ष 2000 के पहले झारखंड बंटवारे का जिक्र करते हुए कहा है कि तब 26 जनवरी को रांची में झंडोत्तोलन होता था।

अफगानिस्तान से वैशाली लाएं बुद्ध का भिक्षापात्र

रघुवंश ने भगवान बुद्ध का पवित्र भिक्षापात्र अफगानिस्तान से  वैशाली लाने की भी मांग रखी है। भगवान बुद्ध ने अंतिम वर्षावास में वैशाली छोड़ने के समय अपना भिक्षापात्र स्मारक के रूप में वैशाली के लोगों को दिया था। रघुवंश प्रसाद सिंह इस मुद्दे को लोकसभा में भी उठा चुके हैं।

रघुवंश ने ललन सिंह को भी लिखा पत्र

रघुवंश प्रसाद सिंह ने सीएम, सिंचाई मंत्री और प्रधान सचिव को भी पत्र लिख कर तीन कार्यों को पूरा कराने की मांग की है। उन्होंंने जेडीयू संसदीय दल के नेता ललन सिंह को भी पत्र लिख कर मुज़फ्फरपुर, वैशाली में गंडक नहर पर पुल बनाने, सड़क निर्माण तथा अन्य निर्माण की मांग की गई है।
भगवान बुद्ध ने वैशाली को दिया था ऐतिहासिक भिक्षा पात्र
रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार के वैशाली के लोगों द्वारा महात्मा बुद्ध को उपहार में दिए गए भिक्षा पात्र को अफगानिस्तान से वापस लाने की मांग फिर उठाई है। इस मामले को संसद से लेकर सरकार के विभिन्न स्तरों पर उठा चुके रघुवंश प्रसाद सिंह ने सीएम नीतीश कुमार को पत्र लिख कर भिक्षा पात्र को वापस लाने की पहल करने का आग्रह किया है। काबुल के नेशनल म्यूकजियम में रखे इस भिक्षा पात्र के बारे में मान्यता है कि इसे वैशाली के लोगों ने भगवान बुद्ध को भेंट में दिया था। 

वैशाली छोड़ते वक्त स्मृलति के रूप मे दिया था भिक्षा पात्र

रघुवंश प्रसाद सिंह ने सीएम से कहा है कि भगवान बुद्ध ने वैशाली छोड़ने के समय अपना भिक्षा पात्र स्मृ ति के रूप में वैशाली वालों को दिया था। कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के पहले भगवान बुद्ध जब वैशाली छोड़ने लगे थे तो अपनी याद के तौर पर भिक्षा पात्र छोड़ गये थे। आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के पहले महानिदेशक ए. कनिंघम की वर्ष 1883 में लिखी पुस्तक में वृति भिक्षा पात्र के जैसे ही काबुल के पात्र का वर्णन है। इसकी ऊंचाई चार मीटर, वजन 350-400 किलोग्राम, मोटाई 18 सेंटीमीटर और गोलाई 1.75 मीटर है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, दूसरी शताब्दी में राजा कनिष्क इसे पुरषपुर (वर्तमान में पेशावर) ले गए थे। इसके बाद इसे गंधार (कंधार) ले जाया गया। फिर 20वीं शताब्दी में इसे काबुल के म्यूजियम में रखा गया।

विभिन्न स्तरों पर मामले को पहले उठा चुके हैं रघुवंश 

रघुवंश प्रसाद सिंह इसी भिक्षा पात्र को वापस वैशाली लाने की मांग कर रहे हैं। इस मामले को वे पहले से उठाते रहे हैं। वे वर्ष 013 में लोकसभा में भी इसे भारत वापस लाने का मामला उठा चुके हैं। उन्होंने यह मामला तत्काीलीन पर्यटन मंत्री महेश शर्मा के समक्ष भी उठाया था। लेकिन इसका अब तक कोई परिणाम नहीं निकला है।रघुवंश प्रसाद सिंह का मानना है कि बुद्ध का भिक्षा पात्र बुद्ध की नगरी वैशाली में लाना चाहिए। वैशाली उनका संसदीय क्षेत्र रहा है। भिक्षा पात्र को वापस लाने के लिए कुछ साल पहले वज्जिकांचल विकास मंच ने हस्ताक्षर अभियान चलाया था। तब इसके संयोजक देवेन्द्र राकेश ने कहा था कि महात्मा बुद्ध से जुड़े इस भिक्षा पात्र को लाना जरूरी है। उन्होंने वैशाली में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बुद्ध से जुड़े स्थलों के विकास पर भी बल दिया था।

जानें वैशाली को
वैशाली में दुनिया का पहला गणतंत्र कायम हुआ इसे समझने के लिए कुछ चीजों के बारे में जानना बेहद जरूरी है। वैशाली की अलग पहचान का श्रेय भगवान बुद्ध को जाता है। वैशाली को उनकी कर्मभूमि कहा जाता है, क्योंकि भगवान बुद्ध का यहां तीन बार आगमन हुआ था। इसके अलावा वैशाली, भगवान महावीर की भी जन्मस्थली है और इसी वजह से ये जैन धर्म अनुयायियों के लिए भी पवित्र है।वर्ल्ड को सबसे पहले गणतंत्र का ज्ञान कराने वाला स्थान वैशाली ही है। खुदाई और प्राचीन प्रमाणों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि वैशाली में ही दुनिया का सबसे पहला गणतंत्र कायम किया गया था। 

वैशाली में है अशोक स्तंभ

 वैशाली के पास कोल्हू में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया एक स्तंभ भी है जिसके शीर्ष पर शेर बना हुआ है। इसे अशोक स्तंभ के नाम से जाना जाता है। आजादी के बाद इसे राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है। वैशाली का यह स्तंभ दूसरे स्तंभों से बिल्कुल अलग और शुरुआती स्तंभ है। खुदाई द्वारा मिले इस बेलाकार स्तंभ की ऊंचाई 18.3 मीटर है। जो लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है जिस पर उनका कोई अभिलेख नहीं। 

विश्व शांति स्तूप
इस पवित्र सरोवर के नज़दीक ही जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांति स्तूप है। गोल घुमावदार गुंबद, अलंकृत सीढ़यिां और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शांति स्तूप की रखवाली कर रहे ऐसा लगते हैं। सीढिय़ों के ठीक सामने ध्यानमग्न बुद्ध की स्वॢणम प्रतिमा है। जिसके चारों ओर भिन्न-भिन्न मुद्राओं में बुद्ध की दूसरी प्रतिमाएं हैं।

बौद्ध स्तूप
यहां बने स्तूपों का पता 1958 में खुदाई के बाद चला, जिसका महत्व भगवान बुद्ध की राख पाए जाने की वजह से और बढ़ गया। बुद्ध के पाॢथक अवशेष पर बने 8 मौलिक स्तूपों में से एक बौद्ध स्तूप है। जो बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

राजा विशाल का गढ़
अशोक स्तंभ के नज़दीक ही खुदाई में एक बहुत ही बड़ा टीला भी मिला था। इसकी परिधि एक किमी है। इसके चारों ओर दो मीटर ऊंची दीवार है और चारों तरफ 43 मीटर चौड़ी खाई। ऐसा माना जाता है उस जमाने में यहां संसद हुआ करती थी। जिसमें लोगों की समस्याएं सुनी जाती थी और उन पर बहस हुआ करती थी।

बावन पोखर मंदिर
बावन पोखर के उत्तर किनारे पर बने पाल कालीन मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां लगी हुई हैं।

अभिषेक पुष्करणी
अभिषेक पुष्करणी के बारे में प्रचलित है कि वैशाली गणराज्य में स्थित यह करीब ढाई हजार वर्ष पुराना एक सरोवर है। ऐसी मान्यता है कि इस गणराज्य में जब भी कोई नया शासक चुना जाता था तो उनको यहीं पर अभिषेक करवाया जाता था।