जिउतिया का नहाय खा बुधवार नौ सिंतबर को, संतान की लंबी उम्र के लिए 10 सितंबर को निर्जला व्रत करेंगी महिलाएं

जिउतिया अथवा जीवित पुत्रिका (जीमूतवाहन) का व्रत 10 सितंबर को है। महिलाएं अपनी वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जिउतिया व्रत करतीं हैं।  नहाय-खाय की सभी प्रक्रिया नौ सितंबर की रात नौ बजकर 47 मिनट से पहले ही करना होगा। नौ बजकर 47 मिनट के बाद अष्टमी तिथि शुरू हो जायेगी। सूर्योदय से पहले सरगही-ओठगन करके इस कठिन व्रत का संकल्प लिया जायेगा। जिउतिया व्रत का पारण करने का शुभ समय 11 सितंबर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक रहेगा। व्रती महिलाओं को जिउतिया व्रत के अगले दिन आगामी 11 सितंबर को 12 बजे से पहले पारण करना होगा।

जिउतिया का नहाय खा बुधवार नौ सिंतबर को, संतान की लंबी उम्र के लिए 10 सितंबर को निर्जला व्रत करेंगी महिलाएं
  • इस बार 32 घंटे से अधिक का होगा जिउतिया 
  • नौ सितंबर की रात से मुर्हूत शुरू होगा, 11 सितंबर को 12 बजे से पहले पारण 

धनबाद। जिउतिया अथवा जीवित पुत्रिका (जीमूतवाहन) का व्रत 10 सितंबर को है। महिलाएं अपनी वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जिउतिया व्रत करतीं हैं। 
जिउतिया में महिलाएं करीब 24 घंटे निर्जला और निराहार रहती हैं। सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का विशेष महत्व है। इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि नौ सितंबर की रात में 9 बजकर 46 मिनट पर प्रारंभ होगा और 10 सितंबर की रात 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। 10 सितंबर को अष्टमी में चंद्रोदय का अभाव है, इसी दिन जिउतिया पर्व मनाया जायेगा। सप्तमी नौ  सितंबर की रात महिलाएं नहाय-खाए करेंगी। गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद मंड़ुआ रोटी, नोनी का साग, कंदा, झिमनी आदि का सेवन करेंगी। व्रती स्नान- भोजन के बाद पितरों की पूजा भी करेंगी।

नहाय-खाय की सभी प्रक्रिया नौ सितंबर की रात नौ बजकर 47 मिनट से पहले ही करना होगा। नौ बजकर 47 मिनट के बाद अष्टमी तिथि शुरू हो जायेगी। सूर्योदय से पहले सरगही-ओठगन करके इस कठिन व्रत का संकल्प लिया जायेगा। जिउतिया व्रत का पारण करने का शुभ समय 11 सितंबर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक रहेगा। व्रती महिलाओं को जिउतिया व्रत के अगले दिन आगामी 11 सितंबर को 12 बजे से पहले पारण करना होगा।
मिथिला पंचांग में भी 10 को जिउतिया

जिउतिया व्रत सूर्योदय के उपरांत की शुद्घ अष्टमी में करना शास्त्रानुसार उचित है। अत: जिउतिया व्रत हेतु बुधवार 9 सितंबर को दिन में नहाय-खाय, रात्रि में शुद्घ भोजन, भोर में अर्थात रात्रि शेष 3:30 से 4:15 बजे के मध्य सरगही एवं गुरुवार 10 सितंबर को शुद्घ उदया अष्टमी तिथि में जिउतिया व्रत एवं पूजन करना श्रेयस्कर रहेगा। मिथिला पंचांग से भी जीवत्पुत्रिका व्रत 10 सितंबर गुरुवार को ही है। शुक्रवार 11 सितंबर को सूर्योदय के उपरांत प्रात: काल में पारण करना शास्त्रोचित रहेगा। विशेष परिस्थिति में गुरुवार 10 सितंबर को रात्रि 10:47 बजे के बाद नवमी तिथि में जलपान या पारण करना भी शास्त्र सम्मत है। व्रत के दौरान शांत चित्त, क्रोध विवाद व निंदा से दूर रहकर सदविचार के साथ भगवत् भजन व ध्यान करें। 

जिउतिया
जीवित पुत्रिका व्रत का पहला दिन कहलाता है, इस दिन से व्रत शुरू होता हैं। इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं। इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया-पीया जाता है। सूर्योदय के बाद कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है। इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है, तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता। इस दिन कई लोग बहुत सी चीजे खाते हैं, लेकिन खासतौर पर इस दिन झोर भात, नोनी का साग एवं मंडुआ की रोटी अथवा मंडुआ की रोटी दिन के पहले भोजन में ली जाती है। फिर दिन भर कुछ नहीं खाती।

जिउतिया व्रत की पौराणिक कथा
गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जायेंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।