पितृपक्ष दो सितंबर से, 17 को समापन

पितृपक्ष भाद्रपक्ष शुक्ल पूर्णिमा को दो सितंबर बुधवार से आरंभ हो रहा है।  पितृपक्ष का समापन 17 सितंबर को होगा। पहले दिन देव और ऋषि तर्पण का विधान है। आश्विन मास की पहली तिथि को पितरों का तर्पण किया जाता है।एक पखवारे तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जायेगा। श्रद्धालु गंगा सहित पवित्र नदियों के किनारे या घरों में अपने-अपने पितरों को याद करके पिंडदान श्राद्ध व तर्पण करेंगे।

पितृपक्ष दो सितंबर से, 17 को समापन
  • अगस्त्य तर्पण के साथ पितृपक्ष की शुरुआत

नई दिल्ली। पितृपक्ष भाद्रपक्ष शुक्ल पूर्णिमा को दो सितंबर बुधवार से आरंभ हो रहा है।  पितृपक्ष का समापन 17 सितंबर को होगा। पहले दिन देव और ऋषि तर्पण का विधान है। आश्विन मास की पहली तिथि को पितरों का तर्पण किया जाता है।एक पखवारे तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जायेगा। श्रद्धालु गंगा सहित पवित्र नदियों के किनारे या घरों में अपने-अपने पितरों को याद करके पिंडदान श्राद्ध व तर्पण करेंगे।

पितृपक्ष के दौरान हम पितरों के लिए भोजन और अन्य कर्मकांड कार्य संपन्न होते हैं। इससे पितरों का आशीर्वाद  बना रहता है। इस दौरान सभी ऋणों से मुक्ति और पितृ दोष के निवारण के लिए दान पुण्य करते हैं। सनातन धर्म को मानने वाले जो तर्पण के अधिकारी हैं, वे सालों भर नित्य देवता, ऋषि एवं पितर का तर्पण कर सकते हैं। ऐसा नहीं करने पर कम से कम पितृपक्ष में तो अपने पितरों का तर्पण अवश्य करें। मान्यता है कि तर्पण करने से देव, ऋषि तथा पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है तथा जन्म कुंडली में पितृ दोष का निवारण होता है। 
परंपरा के अनुसार पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, पितामही, प्रपितामही, मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के अलावा अन्य स्वर्ग गये सगे-संबंधियों को गोत्र और नाम लेकर तर्पण करते हैं। तर्पण करने के दौरान काला तिल सहित दक्षिण मुख करके पितरों को जल दिया जाता है। साथ ही श्रीमद्भागवत का पाठ, गीता पाठ, गजेंद्र मोक्ष का पाठ और पिंड दान का विशेष महत्व है। पितृपक्ष में सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व है। जिन लोगों को अपने पितरों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं होती है। उन्हें सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध या तर्पण करना चाहिए। जिन्हें अपने पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात है, उन्हें उसी तिथि को तर्पण करना चाहिए।

ग्रह-गोचरों का विशेष संयोग
ज्योतिष आचार्य पीके युग के मुताबिक इस बार पितृपक्ष के दौरान ग्रह-गोचरों का खास संयोग बन रहा है। एक पखवारे के दौरान सात सर्वार्थ सिद्धि योग, पांच सिद्धियोग, सात अमृत योग का संयोग बना है। 13 सितंबर को रवि पुष्य योग भी बनेगा। इस दौरान मंगल, गुरु, शनि और सूर्य अपने-अपने स्वगृही स्थान पर रहेंगे।

पितृपक्ष की मुख्य तिथियां 

दो सितंबर - अगस्त्य मुनि तर्पण, पितृपक्षीय तर्पण आरंभ

10 सितंबर - जीमूतवाहन व्रत

11 सितंबर - मातृ नवमी

17 सितंबर - पितृपक्ष का समापन, शाम से मलमास आरंभ