Bihar : एक्स मिनिस्टर गायत्री देवी का पटना में निधन, बेटे ने ही कर दिया था राजनीतिक पारी का अंत
बिहार के एक्स मिनिस्टर गायत्री देवी (80) का रविवार को पटना के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में निधन हो गया। वे काफी समय से बीमार थी। सीएम नीतीश कुमार ने गायत्री देवी के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।
- राजकीय सम्मान के साथ नवादा में होगा अंतिम संस्कार
पटना। बिहार के एक्स मिनिस्टर गायत्री देवी (80) का रविवार को पटना के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में निधन हो गया। वे काफी समय से बीमार थी। सीएम नीतीश कुमार ने गायत्री देवी के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।
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सीएम ने अपने शोक संदेश में कहा कि वे एक कुशल राजनेता एवं समाजसेवी थी। वे मृदुभाषी एवं सरल स्वभाव की महिला थी। उनके निधन से राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र अपूरणीय क्षति हुई है। सीएम ने गायत्री देवी के पुत्र कौशल यादव से फोन पर बात कर उन्हें सांत्वना दी। नवादा में राजकीय सम्मान के साथ गायत्री देवी का अंतिम संस्कार किया जायेगा। उनके बेटे कौशल यादव एक्स एमएलए व जेडीयू लीडर हैं। बिहार की राजनीति में गायत्री देवी जाना-पहचाना नाम थी। वे लगभग तीन दशक तक नवादा और गोविंदपुर की एमएलए रहीं हैं। बिहार की राजनीति में गायत्री देवी ने एक लंबा सफर तय किया। उनके पति युगल किशोर सिंह यादव 1969 में लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर विधानसभा से एमएलए बने थे। उस समय दरोगा राय कैबिनेट में मिनिस्टर भी बने थे।
हसबैंड के असमय निधन के बाद गायत्री देवी ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला। वे खुद राजनीति में उतरी और विधानसभा का चुनाव लड़ा। वर्ष 1970 में गायत्री देवी पहली बार गोविंदपुर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव जीती। वह 1972 में कांग्रेस के टिकट पर नवादा की एमएलए बनीं। फिर 1980 से लगातार तीन बार गोविंदपुर से कांग्रेस की एमएलए रहीं। जनता दल के केबी यादव ने 1995 में उनके विजय रथ को रोक दिया। वर्ष 2000 के चुनाव में आरजेडी के टिकट पर गोविंदपुर विधानसभा से ही चुनाव जीती और 2005 तक एमएलए रहीं। इसके बाद उनके बेटे कौशल यादव जीते और परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। वर्तमान में कौशल यादव जेडीयू में हैं और नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं।
देवी जी के नाम से पुकारते थे लोग
गायत्री देवी का अपने क्षेत्र में खासा प्रभाव रहा। उन्हें लोग देवी जी के नाम से पुकारते थे। वह क्षेत्रीय भाषा मगही में संवाद कर लोगों का दिल जीतने में माहिर थीं। उनकी स्मरण शक्ति की लोग दाद देते थे। विधानसभा क्षेत्र के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को जब वह उनके नाम से पुकारती थीं, तो कार्यकर्ता गदगद हो जाते। हमेशा सादगी से क्षेत्र में घूमने की आदी रहीं देवी जी महिलाओं के साथ बड़ी आत्मीयता के साथ पेश आतीं।
अपने बेटे से ही चुनाव में शिकस्त झेलनी पड़ी
एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें अपने बेटे से ही चुनाव में शिकस्त झेलनी पड़ी। इस तरह, गायत्री देवी का 35 साल लंबा राजनीतिक करियर उस समय खत्म हो गया, जब उनके अपने बेटे ने ही चुनावी मैदान में उन्हें शिकस्त दे दी। 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले कौशल यादव आरजेडी में शामिल हो गये। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार आरजेडी मां की जगह उन्हें टिकट देगा। तब कौशल यादव राजद के जिलाध्यक्ष भी थे। हालांकि, आरजेडी ने गायत्री देवी को ही टिकट दिया। इसके बाद कौशल यादव ने बगावत कर गोविंदपुर से खुद और वाइफ पूर्णिमा यादव को नवादा से निर्दलीय मैदान में उतार दिया। वाइफ-हसबैंड दोनों चुनाव जीत गये थे। नवादा की राजनीति में भूचाल लानेवाले इस चुनाव में गायत्री देवी को बेटे सेहार झेलनी पड़ी। पहली बार जिले में किसी बेटे ने अपनी मां को हराया, जो पूरे देश में उस समय सुर्खियों में रहा। इसके बाद से गायत्री देवी ने राजनीति से दूरी बना ली। वह अपने छोटे बेटे विधानचंद्र राय के साथ रह रही थीं।
कांग्रेस की जिला अध्यक्ष भी रहीं गायत्री देवी
लगभग 35 वर्ष पूर्व नवादा स्थित जवाहर नगर में उनके निजी आवास में जब जिला कांग्रेस कमेटी का कार्यालय खुला था तो गायत्री देवी उस समय उनके कार्यालय में बतौर कांग्रेस की जिला अध्यक्ष के रूप में आई थी।