बिहार: बेटे सुधाकर के मंत्री पद से इस्तीफे से नाराज हैं जगदानंद सिंह, RJD ऑफिस में आना-जाना किया बंद
बिहार में सीएम नीतीश कुमार कैबिनेट से बेटे सुधार सिंह की इस्तीफे के बाद से ही आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह नाराज हैं । कृषि मंत्री के इस्तीफे के बाद उन्होंने आरजेडी ऑफिस में आना-जाना बंद कर दिया। यही नहीं ऑफिस से कागजात भी लेते गये। राजनीतिक गलियारे में इसकी चर्चा है कि जगदानंद सिंह आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ देंगें।
पटना। बिहार में सीएम नीतीश कुमार कैबिनेट से बेटे सुधार सिंह की इस्तीफे के बाद से ही आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह नाराज हैं । कृषि मंत्री के इस्तीफे के बाद उन्होंने आरजेडी ऑफिस में आना-जाना बंद कर दिया। यही नहीं ऑफिस से कागजात भी लेते गये। राजनीतिक गलियारे में इसकी चर्चा है कि जगदानंद सिंह आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ देंगें। हालांकि संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि ये सब बेकार की बातें हैं।
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इस्तीफा दे सकते हैं जगदानंद
सीएम नीतीश कुमार की कृषि नीति पर हमलावर रहने के बाद पद से इस्तीफा देने वाले कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के पिता हैं। वे लगातार दूसरी बार आरजेडी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष बने हैं।सोर्सेज का कहना है कि जगदानंद अपने इस्तीफे की पेशकश के लिए दिल्ली जा चुके हैं। वहां नौ अक्टूबर को पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक है। उसी दौरान वे सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को इस्तीफा सौंपेंगे।
जगदानंद सिंह को आरजेडी में सिद्धांत की राजनीति का पैरोकार माना जाता है। सुधाकर सिंह जब पार्टी से विद्रोह कर आरजेडी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव मैदान में कूदे थे, तब जगदानंद सिंह उनके खिलाफ चुनाव प्रचार करते दिखे थे। ऐसे में सवाल यह है कि अपनी सरकार पर हमलावर रहे बेटे सुधाकर सिंह के इस्तीफे से क्यों आहत हैं? सूत्र बताते हैं कि जगदानंद सिंह की नाराजगी की वजह सुधाकर सिंह के इस्तीफे की जानकारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उन्हें नहीं देना है। जबकि, वे आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इन दिनों वे पार्टी के प्रदेश कार्यालय नहीं जा रहे हैं।
दबाव की राजनीति या जेडीयू के बयानों से नाराजगी?
जगदानंद सिंह को लालू प्रसाद यादव का करीबी एवं पार्टी में नंबर दो की हैसियत वाला माना जाता है। वे लालू-राबड़ी की सरकार में मंत्री भी थे। उनकी छवि साफ-सुथरी व अनुशासित रही है। उनके बेटे सुधाकर सिंह पहली बार आरजेडी के टिकट पर एमएलए बनकर मंत्री बने थे। इससे पहले वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रत्याशी के रूप में चुनाव हार गये थे। चर्चा है कि सुधाकर सिंह के बाद अब जगदानंद सिंह अपने इस्तीफा से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। हालांकि, इसकी अभी पार्टी स्तर से इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
महागठबंधन में रहने के बावजूद आरजेडी के सहयोगी जेडीयू के कुछ नेताओं ने उन्हें बुजुर्ग व मानसिक रूप से कमजोर बताया, जिससे भी वे नाराज हैं।लालू प्रसाद के लगातार 12वीं बार राजद के अध्यक्ष बनायेजाने के मात्र चार दिन पहले जगदानंद सिंह ने अपने पद से त्यागपत्र का प्रस्ताव कर आरजेडी लीडरशीप की परेशानियों में वृद्धि कर दी है। समाजवादी राजनीति की हस्तियों में शामिल जगदानंद बिहार राजद के अध्यक्ष और लालू के करीबी हैं। नीतीश कुमार की सरकार से बेटे सुधाकर सिंह की छुट्टी के बाद से राजद में इनका भी मन व्यथित है। हालांकि उनकी ऐसी नाराजगी कोई पहली बार प्रकट नहीं हुई है, लेकिन इस बार नीतीश कुमार के गठबंधन बदलकर राजद के साथ आने के बाद से ही वह असहज दिख रहे हैं।
जगदानंद को मनाने की होगी कोशिश
जगदानंद सिंह अपने तौर-तरीकों से उन्होंने संकेत भी कर दिया है कि वह इस गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। पहले भी जब कभी तेजस्वी और नीतीश के बीच आत्मीयता दिखी, जगदानंद का रुख आक्रामक ही रहा है। त्यागपत्र की खबर और बिहार में हलचल के बीच लालू ने जगदानंद को दिल्ली बुलाया है। दोनों की मुलाकात शुक्रवार को होनी है। इस्तीफा की पेशकश के बाद उन्हें मनाया जायेगा। बहुत संभव है लालू प्रसाद के समझाने पर जगदानंद हर बार की तरह मान भी जाएं, लेकिन प्रश्न तो तब भी उठेगा कि लालू के पुराने और सबसे विश्वस्त सिपाही को राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से कुछ घंटे पहले ऐसा कदम क्यों उठाना पड़ा। बात निकलेगी तो जगदानंद के मंत्री पुत्र सुधाकर के इस्तीफे की भी चर्चा होगी, जिन्हें अपनी ही सरकार के विरुद्ध बयानबाजी के कारण गांधी जयंती के दिन मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा है। हालांकि सुधाकर का लिखित त्यागपत्र लेकर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के पास जगदानंद स्वयं गए थे, लेकिन माना जा रहा है कि उन्हें यह फैसला बेमन से करना पड़ा।
लालू व जगदानंद का कभी था एक रास्ता-एक मकसद
जातीय राजनीति के लिए बदनाम बिहार में पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन के बाद जगदानंद की पहचान आरजेडी के सबसे बड़े राजपूत चेहरे के रूप में की जाती है। नीतीश कुमार से वैचारिक विरोध तीन दशक पुराना है। दोनों कभी लालू के अत्यंत करीबी थे। दोनों ने लगभग साथ-साथ चुनावी राजनीति में पदार्पण किया। पहली बार 1985 में एमएलए बने। संयोग से दोनों को सरकारी आवास भी आसपास मिल गया। वर्ष 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू को बिहार में नेता प्रतिपक्ष के पद पर आसीन कराने में दोनों की भूमिका बड़ी थी। बाद में वर्ष 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस का बिहार में सफाया हो गया तो दोनों ने लालू को सीएम बनाने के लिए साथ-साथ अभियान चलाया। संबंधों में खटास आई 1994 से। नीतीश ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई पर जगदानंद ने वैचारिक आधार पर तब भी लालू का साथ नहीं छोड़ा। चारा घोटाला में लालू के जेल चले जाने के बाद राबड़ी देवी की सरकार में जगदानंद सबसे ताकतवर मंत्री के रूप में सामने आए। तभी से जगदानंद के रास्ते नीतीश से अलग हो गये। एक गठबंधन में आने के बाद भी फासला कम होता नहीं दिख रहा है।