सेनारी नरसंहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर की बिहार गवर्नमेंट की याचिका, सभी बरी आरोपितों को नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने सेनारी नरसंहार मामले में बिहार गवर्नमेंट की याचिका मंजूर कर लिया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा खटखटाया है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सेनारी नरसंहार मामले में बिहार गवर्नमेंट की याचिका मंजूर कर लिया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा खटखटाया है।
बिहार गवर्नमेंट की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने सोमवार को सुनवाई की। कोर्ट ने सभी 13 आरोपियों को याचिका की कॉपी देने को कहा है।सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया है।
पटना हाइकोर्ट ने इस मामले में साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था।इसी के खिलाफ बिहार गवर्नमेंट सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है। बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा है कि 1999 के सेनारी नरसंहार हुआ था. पटना हाईकोर्ट ने 10 की मौत और तीन आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाने का लोअर कोर्ट का आदेश पलट दिया है। हाईकोर्ट का आदेश रिकॉर्ड में रखे गये सबूतों के विपरीत है। 13 चश्मदीद गवाहों की गवाही को खारिज कर दिया गया है।
बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक की मांग करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा अपील के निपटारे तक सभी 13 को सरेंडरकरना चाहिए। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष के गवाह विश्वसनीय नहीं हैं। आरोपी संदेह का लाभ पाने के योग्य हैं। उनकी रिहाई का आदेश दिया।
फ्लैश बैक
अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी पुलिस स्टेशन एरिया के सेनारी गांव में वर्ष 1999 की 18 मार्च की शाम 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। सेनारी गांव में एक मंदिर के पास माओवादी संगठन के सदस्यों ने 34 लोगों को लाइन में खड़ा कर दिया। इसके बाद गला काटकर और गोली मारकर उनकी मर्डर कर दी थी। मामले में चिंता देवी ने एफआइआर दर्ज करायी थी।
चिंता देवी के हसबैंड अवध किशोर शर्मा और पुत्र मधुकर उर्फ झब्बू की भी मर्डर की गयी थी। वर्ष 2011 में चिंता देवी की मृत्यु हो गयी. लोअर कोर्ट द्वारा वर्ष 2016 की 15 नवंबर को नरसंहार के 10 आरोपियों को फांसी और अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत से दोषी ठहराए गये 13 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था।लोअर कोर्ट द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया था।