झारखंड: JSSC की नई नियमावली कैंसिल, हाइकोर्ट ने दिया फिर से विज्ञापन जारी करने का निर्देश
झारखंड हाइकोर्ट ने जेएसएससी (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग) की संशोधित नियुक्ति नियमावली को रद्द कर दिया है। चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच ने संशोधित नियमावली के तहत जारी नियुक्ति के सभी विज्ञापन को भी निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जेपीएससी कोर्ट के आदेश के आलोक में उसके तहत फिर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करें।
- 10वीं-12वीं झारखंड से पास करने की बाध्यता खत्म
- 2021 नियोजन नीति कैंसिल
रांची। झारखंड हाइकोर्ट ने जेएसएससी (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग) की संशोधित नियुक्ति नियमावली को रद्द कर दिया है। चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच ने संशोधित नियमावली के तहत जारी नियुक्ति के सभी विज्ञापन को भी निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जेपीएससी कोर्ट के आदेश के आलोक में उसके तहत फिर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करें।
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कोर्ट ने सात सितंबर को मामले में सभी पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पूर्व में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगर संशोधित नियमावली के तहत कोई नियुक्ति प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो वह कोर्ट के अंतिम फैसले से प्रभावित होगी। इसलिए कोर्ट ने सभी विज्ञापन को रद्द कर दिया है।
क्षेत्रीय भाषा के आधार पर किया गया था संशोधन
एसएससी की संशोधित नियमावली के खिलाफ रमेश हांसदा सहित अन्य की ओर से हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस दौरान सरकार की ओर से सीनीयर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा था कि जेएसएससी नियुक्ति नियमावली में संशोधन क्षेत्रीय भाषा के आधार पर किया गया है ताकि यहां के रीति-रिवाज और संस्कृति के बारे में जानकारी हो सके। राज्य सरकार को नियुक्ति के लिए ऐसी नीति बनाने का अधिकार है। ऐसे में प्रार्थी अथवा अन्य की आपत्ति पर कोर्ट फैसला नहीं ले सकती है। इस याचिका के आधार पर सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
स्टेट के बाहर से 10 वीं-12 वीं पास करने वालों के साथ भेदभाव
प्रार्थी की ओर से सीनीयर एडवोकेट अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुशल कुमार का कहना था कि राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति के लिए 10वीं और 12वीं की परीक्षा राज्य के संस्थान से पास करने की शर्त लगाना पूरी तरह से असंवैधानिक है क्योंकि राज्य के कई मूलवासी ऐसे हैं, जो राज्य के बाहर रहते हैं। उनके बच्चों ने राज्य के बाहर से 10वीं और 12वीं की एग्जाम पास की है। ऐसे में मूलवासी होने के बाद भी उन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर करना गलत है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है, जो किसी प्रकार के भेदभाव की अवधारणा नहीं रखता है।
एग्जाम पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को गायब करना गलत
यह भी कहा गया कि भाषा के पेपर में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। राज्य के अधिसंख्य लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी और अंग्रेजी को भाषा (पेपर दो) से बाहर कर देना पूरी तरह से गलत है। इसको लागू करने से पहले सरकार की ओर से कोई स्टडी नहीं की गई है और न ही इसका कोई ठोस आधार है। इस तरह की असंवैधानिक शर्त के आधार पर राज्य में नियुक्ति नहीं की जा सकती है। राज्य में 61.25 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते है। इसलिए विवादित नियुक्ति नियमावली को निरस्त कर देना चाहिए।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब झारखंड के बाहर 10वीं और 12वीं की पढ़ाई करने वाले भी JSSC और JPSC द्वारा ली जाने वाली नियुक्ति प्रतियोगिता में शामिल हो सकते हैं।
रमेश हांसदा एवं अन्य ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्य सरकार द्वारा JSSC नियमावली में किये गये संशोधन को गलत बताया गया था। इसे निरस्त करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि झारखंड सरकार ने नियमावली में संशोधन किया है, जिसके तहत राज्य के संस्थान से ही 10वीं और 12वीं की एग्जाम पास करने वाले छात्र ही नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे। यह नियम सिर्फ सामान्य श्रेणी के छात्रों पर ही लागू होगी, जबकि रिजर्व कटेगरी के कैंडिडेट के मामले में यह आदेश लागू नहीं होगा। वहीं भाषा के पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को भी हटा दिया गया था. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया भाषा को शामिल किया गया था। इन शर्तों के कारण JSSC के द्वारा नियुक्तियों के लिए जारी विज्ञापन में कई कैंडिडेट आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए इस नियमावली को रद्द किया जाना चाहिए।