झारखंड के दिग्गज पॉलिटिकल लीडर समरेश सिंह का निधन, एक दिन पहले ही हॉस्पिटल से लौटे थे घर
झारखंड की पॉलिटिक्स के दिग्गज सह स्टेट के एख्स मिनिस्टर समरेश सिंह (81) का गुरुवार की सुबह लगभग चार बजे बोकारो के सेक्टर चार स्थित आवास में निधन हो गया। उन्हेंआ एक दिन पहले ही रांची स्थित मेदांता हॉस्पिटल से बोकारो स्थित उनके घर लाया गया था। समरेश के निधन की खबर मिलने पर बोकारो एमएलए बिरंची नारायण, बाघमारा एमएलए ढुल्लू महतो समेत बड़ी संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने सेक्टर चार स्थित उनके आवास पर पहुंचे।
बोकारो। झारखंड की पॉलिटिक्स के दिग्गज सह स्टेट के एख्स मिनिस्टर समरेश सिंह (81) का गुरुवार की सुबह लगभग चार बजे बोकारो के सेक्टर चार स्थित आवास में निधन हो गया। उन्हेंआ एक दिन पहले ही रांची स्थित मेदांता हॉस्पिटल से बोकारो स्थित उनके घर लाया गया था। समरेश के निधन की खबर मिलने पर बोकारो एमएलए बिरंची नारायण, बाघमारा एमएलए ढुल्लू महतो समेत बड़ी संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने सेक्टर चार स्थित उनके आवास पर पहुंचे।
बोकारो जिले के ही चंदनकियारी प्रखंड, लालपुर पंचायत स्थित देवलटांड़ गांव में समरेश सिंह का पैतृक आवास है। समरेश सिंह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। विगत 12 नवंबर को को तबीयत अधिक बिगड़ने के बाद उन्हेंर पहले बीजीएच और फिर रांची स्थित मेदांता हॉस्पिटल ले जाया गया था। मेदांता में 16 दिन रहने के बाद 29 नवंबर को ही वह बोकारो लौटे थे। उस समय डॉक्टर और परिजनों ने उनकी हालत पहले से बेहतर बताई थी, लेकिन एक दिन बाद ही उनका निधन हो गया।समरेश के निधन की खबर मिलने के साथ ही उनके आवास के बाहर सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ उनके समर्थक भी पहुंचने लगे हैं। लोगों में गहरा शोक है। समर्थक प्याथर से उन्हें दादा बाेलते थे। समरेश सिंह के दोनों बेटे सिद्धार्थ सिंह व संग्राम सिंह तथा पुत्रवधु श्वेता सिंह व परिंदा सिंह को स्वजन ढांढ़स बंधा रहे हैं।
बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं समरेश सिंह
बोकारो के एक्स एमएलए समरेश सिंह भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे हैं । पहली बार 1977 में समरेश सिंह ने निर्दलीय कैंडिडेटके रूप में जीत हासिल की थी। इसके बाद मुंबई में 1980 में आयोजित बीजेपी के प्रथम अधिवेशन में कमल निशान का चिह्न रखने का सुझाव इन्हीं का था, जिसे केंद्रीय नेताओं ने मंजूरी दी थी। समरेश सिंह को 1977 के चुनाव में कमल निशान पर ही जीत मिली थी। बाद में समरेश बीजेपी से 1985 व 1990 में बोकारो से एमएलए निर्वाचित हुए। इससे पहले 1985 में सिंह ने इंदर सिंह नामधारी के साथ मिलकर बिहार बीजेपी में विद्रोह कर 13 विधायकों के साथ संपूर्ण क्रांति दल का गठन किया था, लेकिन इसके कुछ ही दिन के बाद संपूर्ण क्रांति दल का विलय बीजेपी में कर दिया गया। वर्ष 1995 में समरेश सिंह ने BJP का टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा व हार गये। झारखंड अलग राज्य बनने पर 2000 का चुनाव उन्होंने झारखंड वनांचल कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। झारखंड बनने के बाद वह राज्य के प्रथम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बने थे। फिर 2009 में झाविमो के टिकट पर एमएलए बने।
समरेश सिंह का राजनीतिक सफर
1977 में बोकारो विधानसभा से पहली बार निर्दलीय चुनाव जीते ।
1980 व बाद में : बीजेपी में।
1985 : बोकारो से एमएलए।
1990 : बोकारो से एमएलए।
2000 : झारखंड वनांचल कांग्रेस पार्टी से बोकारो के एमएलए।
2009 : झाविमो के टिकट पर बोकारो से एमएलए।
छात्र आंदोलन की उपज थे समरेश
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के समय 1977 में पहली बार निर्दलीय एमएलए चुने जाने के बाद से समरेश सिंह लगातार राजनीति में सक्रिय रहे। बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी को कोयलांचल क्षेत्र में मजबूत राजनीतिक आधार देने में भी समरेश की बड़ी भूमिका रही है, पर खुद समरेश हमेशा सभी जाति-समुदाय के नेता रहे। अपने काम एवं आंदोलन के बल पर उनकी पहचान रही है।
झारखंड में तकनीकी शिक्षा को देना चाहते थे बढ़ावा
समरेश सिंह हमेशा से यह मानते रहे थे कि बिना शिक्षा के प्रदेश का विकास संभव नहीं है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर रणविजय स्मारक महाविद्यालय, रणविजय स्मारक उच्च विद्यालय और विस्थापित कॉलेज की स्थापना उन्हों्ने की। उन्होंने बोकारो में पहले इंजीनियरिंग कॉलेज बोकारो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना के लिए काफी प्रयास किया, पर तब एकीकृत बिहार में उनके व ब्यूरोक्रैशी के बीच में उपजे विवाद के कारण उनके कॉलेज को मान्यता नहीं मिली।
चंदनकियारी को संपन्न बनाना चाहते थे समरेश
मूल रूप से चंदनकियारी के देउलटांड़ के रहने वाले समरेश सिंह हमेशा अपने पैतृक गांव और प्रखंड को आगे बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंयने कई कोशिशें भी की, पर चंदनकियारी सीट आरक्षित होने के कारण उन्हें उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला। इसके बावजूद पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन डॉक्टर एपीजे अब्दुंल कलाम को बोकारो बुलाकर चंदनकियारी का भ्रमण कराया। यहां के ग्रामीणों के आय में संवर्धन के लिए मेडिसिनल प्लांट से लेकर अन्य प्रकार की खेती की शुरुआत की। हालांकि भविष्य में सरकार के सहयोग एवं देखभाल नहीं होने की वजह से उसके बहुत बड़े परिणाम नहीं आए।समरेश सिंह के आग्रह पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुडल कलाम ने वर्ष 2001 में बताैर वैज्ञानिक झारखंड का दौरा किया था। तब समरेश सिंह झारखंड के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री थे। समरेश सिंह ने उन्हें झारखंड तकनीकी शिक्षा परिषद का मुख्य संरक्षक बनाया था। इसके बाद वर्ष 2012 में भी समरेश सिंह के बुलावे पर डॉक्टर एपीजे अब्दुकल कलाम बोकारो पहुंचे थे।
एकीकृत बिहार और झारखंड में समरेश ने मनवाया था अपने नेतृत्व का लोहा
झारखंड और एकीकृत बिहार में अपने नेतृत्व का लोहा मनवाने समरेश सिंह उर्फ समर सिंह के पीछे उनके तीन बेटों का भरा-पूरा परिवार है। एक पुत्र अमेरिका में है तो दो बेटे सिद्धार्थ सिंह माना व संग्राम सिंह का पूरा परिवार बोकारो में रहता है। बड़ी पुत्रवधू डॉक्टर परिंदा सिंह व छोटी बहू श्वेमता सिंह दोनों राजनीति में सक्रिय हैं। करीब पांच साल पहले वर्ष 2017 में समरेश सिंह की पत्नीर भारती सिंह का निधन हो गया था।
अपनी ही शर्त पर राजनीति के लिए जाने जाते रहे समरेश
बताया जाता है कि जनसंघ व भाजपा की जमीन झारखंड में मजबूत करने वाले समरेश सिंह ने कभी भी झुककर राजनीति नहीं की। अटल बिहारी बाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी सरीखे नेताओं के प्रिय पात्र होने के बावजूद जब बीजेपी में उनकी नहीं जमी तो उन्होंंने तुरंत पार्टी को छोड़ दिया। इसके बाद अपना दल बनाकर भी बोकारो से विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक बने। राजनीतिक जीवन के अंतिम सफर में वह बाबूलाल मरांडी के साथ उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा में भी रहे। समरेश सिंह काे करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि उनका जीवन हमेशा राजनीतिक संघर्ष का ही रहा।
अनोखे अंदाज से लोकप्रिय थे दादा
झारखंड अलग राज्य के गठन के बाद समरेश सिंह पहली सरकार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बनाए गए। समर्थक उन्हेंक प्यारर से दादा बुलाते थे। दाहिने हाथ की मुट्ठी को बंद कर एक उंगली को ऊपर उठाने का उनका अंदाज उन्हेंा बुलंद बनाता था। बहरहाल, आज वह नहीं हैं तो उनकी एक झलक पाने को समर्थक उनके घर के बाहर जमे हैं।