बिहार: ललन का मुकाबला नहीं कर पाये आरसीपी, स्वागत समारोह में पॉलिटिकल व मैनेजमेंट का अंतर
सेंट्रल स्टील मिनिस्टर आरसीपी सिंह स्वागत समारोह में भीड़ जुटाने में जेडीयू के नेशनल प्रसिडेंट ललन सिंह का मुकाबला नहीं कर सके। जेडीयू ऑफिस में सोमवार को आयोजित आरसीपी के स्वागत समारोह में पॉलिटिकिल व मैनेजमेंट के बीच के फर्क दिखा।
- 10 दिन की ताबड़तोड़ तैयारी के बावजूद सेंट्रल मिनिस्टर के स्वागत में उम्मीद के अनुरुप नहीं जुटी भीड़
पटना। सेंट्रल स्टील मिनिस्टर आरसीपी सिंह स्वागत समारोह में भीड़ जुटाने में जेडीयू के नेशनल प्रसिडेंट ललन सिंह का मुकाबला नहीं कर सके। जेडीयू ऑफिस में सोमवार को आयोजित आरसीपी के स्वागत समारोह में पॉलिटिकिल व मैनेजमेंट के बीच के फर्क दिखा।
बताया जाता है कि लगभग 10 दिन की ताबड़तोड़ तैयारी के बावजूद आरसीपी सिंह के स्वागत समारोह में में उतनी भीड़ नहीं जुट सकी, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। हालांकि सेंट्रल मिनिस्टर के स्वागत के तौर पर देखें तो भीड़ अच्छी थी। लेकिन, जेडीयू के जिन लोगों ने आरसीपी से ललन सिंह के स्वागत में जुटी भीड़ के रिकार्ड को तोड़ने का वादा किया था, वह इस पर अमल नहीं कर पाये। हाथी-घोड़ा और ऊंट को भीड़ का हिस्सा बनना पड़ा। इसका कुछ लाभ हुआ।
एक लाख से अधिक की भीड़
मुंगेर एमपी राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह जेडीयू का नेशनल प्रसिडेंट बनने के बाद छह अगस्त को नई दिल्ली से पटना आये थे। जेडीयू ऑफिस में आयोजित स्वागत समारोह में उस दिन भारी भीड़ जुटी थी। स्टेट जेडीयू की ओर से आरसीपी के स्वागत समारोह में कम से कम एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ जुटाने की थी। ब्लॉक लेवल के सभी प्रकोष्ठों और पार्टी अध्यक्षों को कहा गया कि कम से कम एक गाड़ी और उस पर पांच सवार लाएं। जेडीयू के 32 प्रकोष्ठ हैं। राज्य में प्रखंडों की संख्या 534 है। सिर्फ प्रखंडों से ही 17 हजार गाड़ियां और 85 हजार से अधिक लोगों के आने का अनुमान कर लिया गया। ये 32 प्रकोष्ठ जिलों में हैं। राज्य मुख्यालय में भी हैं। एक अध्यक्ष पांच समर्थक। एक विधायक 25 गाड़ी। मंत्रियों को भी टास्क दिया गया था। प्रबंधन में लगे लोग गदगद थे। इसके अलावा शहर की भीड़, जो तमाशबीन बनकर रौनक बढ़ाएगी। भीषण गर्मी ने तमाशबीनों को सड़क के किनारे खड़ा होने से रोक दिया। भीड़ जुटाने का यह फार्मूला काम नहीं आया।
पूरी जेडीयू लगी थी भीड़ जुटाने में
आरसीपी के स्वागत में पार्टी की प्रदेश कमेटी लगी थी। प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा खुद मोरचा संभाले हुए थे। एक महासचिव अभय कुशवाहा इतने सक्रिय थे कि पोस्टर को लेकर विवाद हो गया। प्रदेश महासचिव अनिल कुमार लगातार पत्र जारी कर पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को स्वागत समारोह में शामिल होने का न्यौता दिया था। फोन पर भी लोगों को कार्यक्रम में आने को कहा जा रहा था। पूरे मामले को ललन सिंह बनाम आरसीपी का रंग दिया जा रहा था। आरसीपी के यथोचित सम्मान लायक भीड़ जुटी। मुकाबले जैसी कोई बात नहीं थी।
आरसीपी हमेशा खुद को ललन व खुद को एक बताते रहे
चंद लीडर व समर्थक कुछ बोलें, आरसीपी सिंह ने कभी ललन सिंह को लेकर ऐसा कुछ नहीं कहा, जिससे विवाद की गुंजाइश बने। मिनिस्टर बनने के दिन और आज भी, आरसीपी ने खुद को ललन सिंह से अलग नहीं बताया। जहां तक सीएम नीतीश कुमार को लीडर मानने की बात है तो उस पर कभी किसी को विवाद नहीं रहा। प्रशासनिक प्रबंधन के धुरंधर रहे आरसीपी भीड़ जुटाने के राजनीतिक प्रबंधन में आज भी चूक गये। यही गलती पिछले साल एक मार्च को गांधी मैदान में आयोजित जदयू की रैली में भी नजर आई थी। अपेक्षा के अनुरुप भीड़ नहीं जुटी थी। रैली को सम्मेलन का रुप दे दिया गया।