बिहार: नीतीश कुमार से गहरी दोस्ती सुशील मोदी को पड़ी भारी!
बिहार में एनडीए गवर्नमेंट में इस बार कई बदलाव देखने को मिलेंगे। बीजेपी एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में है। इसकी झलक दिखनी शुरु हो गयी है। गवर्नमेंट में इस बार बिहार में नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी नजर नहीं आयेंगी। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि नीतीश से गहरी दोस्ती सुशील मोदी को भारी पड़ी है।
- बीजेपी नये विकल्प की तलाश में
भविष्य की राजनीति के लिए नया विकल्प पेश करेगी बीजेपी
पटना। बिहार में एनडीए गवर्नमेंट में इस बार कई बदलाव देखने को मिलेंगे। बीजेपी एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में है। इसकी झलक दिखनी शुरु हो गयी है। गवर्नमेंट में इस बार बिहार में नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी नजर नहीं आयेंगी। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि नीतीश से गहरी दोस्ती सुशील मोदी को भारी पड़ी है।
जब सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को पीएम मटेरियल बता दिया था
आरोप लग रहे हैं कि सुशील मोदी ने बिहार में बीजेपी को नीतीश कुमार का पिछलग्गू बना दिया था। बीजेपी का एक बड़ा वर्ग कई सेंट्रल मिनिस्टर भी सुशील मोदी की राजनीतिक से नाराज चल रहे हैं। यही कारण है कि बीजेपी लीडरशीप से बिहार की राजनीति से मोदी को किनारे कर दिया है। बिहार में नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी जगजाहिर है। नीतीश कुमार को जेडीयू नेताओं से ज्यादा सुशील मोदी डिफेंड करते हैं। 15 सालों की सरकार में नीतीश और सुशील मोदी को कभी कोई परेशानी नहीं हुई। बीजेपी लीडरशीप को यह वर्ष 2012 के बाद से ही यह दोस्ती खटक रही है। जब सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को पीएम मटेरियल बता दिया था। जबकि बिहार बीजेपी के सभी लीडर नरेंद्र मोदी के नाम पर झंडा उठाये हुए थे।मोदी का नाम के सबसे पहले नारा लगाने वाले गिरिराज सिंह को तब नीतिश कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाने की योजना बनायी गयी थी।
गिरिराज सिंह नरेंद्र मोदी के पक्ष में हवा बनाने लगे तो साइड करने की कोशिश हुई
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी के अंदर से नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की मांग उठ रही थी। लेकिन गुजरात दंगों के कारण नीतीश कुमार की पार्टी लगातार नरेंद्र मोदी का विरोध कर रही थी। नरेंद्र मोदी को लेकर 2012 से ही चर्चा तेज हो गई थी। तत्कालीन नीतीश कैबिनेट में शामिल पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह लगातार नरेंद्र मोदी के पक्ष में बिहार में माहौल बना रहे थे। अश्विनी चौबे भी नरेंद्र मोदी के लिए झंडा उठाए हुए थे। लेकिन सुशील मोदी ने वर्ष 2012 की सितंबर में एक इंटरव्यू के दौरान कह दिया था कि नीतीश कुमार में भी पीएम मटरियल है।
पार्टी लीडरशीप को नागवार गुजरी थी यह बात
नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा से पहले भी बीजेपी 2 धड़ों में बंटी हुई थी। सुशील मोदी के इस बयान से बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया था। जेडीयू लीडर और हमलावर हो गये थे। कहा जाता है कि बीजेपी लीडरशीप को यह बात नागवार गुजरी थी। ऐसे में बिहार की राजनीति में चर्चा यह भी है कि क्या उसी का खामियाजा सुशील मोदी को भुगतना पड़ा है।
सुशील मोदी की कार्यशैली से सेंट्रल मिनिस्टर भी रहते थे नाखुश
बताया जाता है कि सुशील मोदी की कार्यशैली से बिहार कोटे से आने वाले सेंट्रल मिनिस्टर भी कई बार असहज रहते थे। क्योंकि सुशील मोदी हमेशा से नीतीश के बचाव में ही खड़े रहते थे। पिछले 15 सालों से बिहार में बीजेपी सत्ता में तो जरूर है लेकिन नीतीश कुमार की छत्रछाया से आगे नहीं निकल पा रही थी। इस बार के चुनाव में बीजेपी बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। ऐसे में पार्टी के पास मौका है। पार्टी इस मौके का फायदा उठाना चाह रही है।
नीतीश के कमजोर होते ही निबट गये सुशील
नीतीश कुमार की पहली पसंद डिप्टी सीएम के लिए सुशील मोदी ही होते थे। नीतीश जब तक ताकतवार रहे सुशील मोदी की कुर्सी बरकरार रही है। नीतीश 15 सालों में पहली बार एनडीए के अंदर कमजोर हुए हैं। बीजेपी से लगभग आधी सीट नीतीश की पार्टी जेडीयू को आयी है। बीजेपी ने नीतीश कुमार के कमजोर होते ही सुशील मोदी को बिहार की सत्ता से बेदखल कर दिया है। अब सवाल है कि बीजेपी सुशील मोदी कहां एडजस्ट करती है।
बीजेपी कर रही है नये विकल्प की तलाश
बीजेपी में 2020 की विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर भी काफी सवाल उठे हैं। बीजेपी के कुछ पुराने नेताओं ने सुशील मोदी पर भी सवाल उठाये थे। बीजेपी बिहार में अब अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है। यही कारण है कि पुराने चेहरों को रिप्लेस किया जा रहा है। क्योंकि पिछले 15 सालों में बीजेपी सेकंड लाइन का कोई नेता बिहार में नहीं तैयार कर पाई है। बीजेपी लीडरशीप को लगता है कि इससे बेहतर मौका और कोई नहीं हो सकता है। ऐसे में नये फेस की तलाश शुरू हो गई है।
74 सीट लाकर बीजेपी बड़े भाई की रोल में
बिहार में 74 सीटें जीतने के बाद बीजेपी बड़े भाई की रोल में है। बीजेपी चाहती है कि अब सरकार में हस्तक्षेप बढ़े। सेंट्रल लीडरशीप को पता है कि सुशील मोदी के रहते हुए यह असंभव है। क्योंकि साथ में रह कर नीतीश कुमार के खिलाफ सुशील मोदी नहीं बोल सकते हैं। शायद सुशील मोदी को उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा है। पंद्रह सालों के बाद बीजेपी ने नीतीश और सुशील के संबंध को तोड़ने में सफल हुई है।