झारखंड: नौकरी का लालच दे 514 युवाओं को नक्सली बता कराया था सरेंडर , हाईकोर्ट सख्त, DGP से तलब जवाब

झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में युवाओं को नौकरी का लालच देकर फर्जी नक्सली बनाकर सरेंडर कराने के मामले में डीजीपी से जवाब मांगा। 8 दिसंबर को अगली सुनवाई।

झारखंड: नौकरी का लालच दे 514 युवाओं को नक्सली बता कराया था सरेंडर ,  हाईकोर्ट सख्त, DGP से तलब जवाब
हाईकोर्ट ने DGP से मांगा विस्तृत जवाब।
  •  फर्जी नक्सली बनाकर युवाओं से कराया था सरेंडर

रांची। झारखंड हाई कोर्ट में गुरुवार को उस बहुचर्चित मामले की सुनवाई हुई जिसमें राज्य के 514 आदिवासी युवाओं को नौकरी का लालच देकर फर्जी नक्सली बताकर सरेंडर कराने का सनसनीखेज आरोप लगा है। कोर्ट ने इस मामले को “बेहद गंभीर और संवेदनशील” बताते हुए सीधे डीजीपी से शपथपत्र (हलफनामा) दाखिल करने का आदेश दिया है।

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डीएसपी के हलफनामे पर भड़की अदालत: बोली—इतना गंभीर मामला, हलफनामा खुद डीजीपी दें

सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से डीएसपी स्तर के अधिकारी का शपथपत्र प्रस्तुत किया गया। इसे देखकर चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा–“इतने गंभीर और संवेदनशील मामले में निम्न स्तर के अधिकारी का हलफनामा स्वीकार्य नहीं है। यह मामला पुलिस की कार्यप्रणाली और युवाओं के मूल अधिकारों से जुड़ा है, इसलिए उच्चस्तरीय जवाबदेही आवश्यक है।”कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि अगली सुनवाई पर स्वयं डीजीपी द्वारा शपथपत्र दाखिल किया जाए।

2014 का बड़ा खुलासा: युवाओं को नौकरी का झांसा, कोचिंग संस्था और पुलिस की मिलीभगत का आरोप

यह जनहित याचिका झारखंड काउंसिल फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की ओर से दायर की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि—

वर्ष 2014 में 514 आदिवासी युवाओं को नौकरी दिलाने का लालच दिया गया

कोचिंग संस्थान ‘दिग्दर्शन’ और कुछ पुलिस अधिकारियों की कथित मिलीभगत से

इन युवकों को फर्जी नक्सली बताकर उनके ‘सरेंडर’ का नाटक रचने की तैयारी की गई

युवाओं से कहा गया कि “सरेंडर में हिस्सा लो, सरकारी नौकरी मिलेगी”

याचिकाकर्ता के अनुसार यह पूरा खेल सरेंडर के आंकड़े बढ़ाने और पुलिस की उपलब्धि दिखाने के लिए रचा गया था।

‘पुरानी जेल’ में बंद कर युवकों को पेश किया गया नक्सली के रूप में

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि—

युवाओं को पुरानी जेल में बंद रखा गया

उन्हें नक्सली दिखाने की तैयारी की गई

ताकि बाद में उन्हें “सरेंडर किए गए नक्सली” के रूप में पेश किया जा सके

यह पूरा मामला राज्य की सुरक्षा एजेंसियों और प्रशासन की नाकामी पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

अगली सुनवाई 8 दिसंबर को, डीजीपी को हर हाल में देना होगा जवाब

अदालत ने मामले की संवेदनशीलता देखते हुए कहा कि—

“इस मामले में शीर्ष स्तर से स्पष्ट और विस्तृत स्पष्टीकरण आवश्यक है।”

अब अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी, जिसमें डीजीपी का हलफनामा अनिवार्य रूप से जमा करना होगा।