झारखंड: CM हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर फैसला कभी भी,EC के लेटर पर गवर्नर ले रहे हैं कानूनी राय
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्ता को लेकर चुनाव आयोग का मंतव्य राजभवन पहुंचने के बाद राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई।ऑफिसियल रूप से इस संबंध में किसी भी स्तर से सूचना नहीं आई। लेकिन, इस खबर से झारखंड की राजनीति का पारा गरम हो गया है।
- राजभवन के फैसले पर टिकीं निगाहें
- गवर्नर रमेश बैस लेंगे फैसला
- हेमंत बोले- हैं तैयार हम! जय झारखंड
रांची। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्ता को लेकर चुनाव आयोग का मंतव्य राजभवन पहुंचने के बाद राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई।ऑफिसियल रूप से इस संबंध में किसी भी स्तर से सूचना नहीं आई। लेकिन, इस खबर से झारखंड की राजनीति का पारा गरम हो गया है।
यह भी पढ़ें: तेजस्वी यादव ने सेंट्रल मिनिस्टर नित्यानंद राय को चेताया, ये बिहार है, दिल्ली से कोई बचाने नहीं आयेगा
सीएम हेमंत सोरेन की कुर्सी पर संकट के बादल गहरा गए हैं। यह स्थिति उनकी विधानसभा सदस्यता पर उठ रहे संशय को लेकर है। सोर्सेज भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने सीएम सोरेन को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत दोषी मानते हुये उन्हें विधायक के पद से अयोग्य किये जाने का मंतव्य राज्यपाल रमेश बैस को सौंप दिया है।इस आशय का मंतव्य आयोग के विशेष दूत ने गुरुवार की सुबह राजभवन को सौंपा। निजी कारणों से दिल्ली में होने के कारण गवर्नर दोपहर दो बजे रांची पहुंचे। सोर्सेज के अनुसार गवर्नर आयोग के मंतव्य के वैधानिक पहलुओं का अध्ययन करा रहे हैं। संभावना जतायी जा रही है कि चुनाव आयोग के मंतव्य के अनुसार गवर्नर अपना फैसला शुक्रवार को दे सकते हैं। संवैधानिक प्रावधान के अनुसार गवर्नर के लिए चुनाव आयोग का मंतव्य मानना बाध्यकारी है।
माइनिंग लीज मामले में सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता पर चुनाव आयोग के फैसले का सीलबंद लिफाफा राजभवन पहुंच चुका है। चुनाव आयोग की ओर से ऐसे मामलों में पहले दिए गए फैसलों के कारण अब सीएम हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराने जाने की आशंका है। बीजेपी एमपी निशिकांत दूबे के ट्विट से इस आशंका को बल मिला है। वैसे हेमंत सोरेन से जुड़े मामलों में निशिकांत दूबे के टवीट से किए जाते रहे खुलासे अभी तक सही साबित हुए हैं। एक्स मिनिस्टर सरयू राय ने भी ट्विट कर हेमंत सोरेन के तीन साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित होने की बात कही है।
चुनाव आयोग का लिफाफा खुलना बाकी
चुनाव आयोग के सीलबंद लिफाफे में छिपे राज के अनुमान अगर सच साबित होते हैं तो झारखंड में यह पहली घटना होगी। हेमंत सोरेन झारखंड के पहले सीएम होंगे, जो विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य घोषित होने के कारण अपनी कुर्सी गंवाएंगे। इससे पहले चुनाव में हार-जीत या विधानसभा के पटल पर संख्या बल में हार जाने के कारण अथवा पार्टी नेतृत्व की ओर से नए व्यक्ति को सीएम बनाने की कवायद के कारण ही नेताओं ने सीएम की कुर्सी गंवाई है। अगर उनके चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगती है और केवल विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है तो वे फिर से विधायक दल के नेता बनकर सीएम की कुर्सी के लिए दावेदारी कर सकते हैं। अगर उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगी तो मामला फंस सकता है।
यह है मामला
एक्स सीएम व बीजेपी लीडर रघुवर दास ने इसी साल 10 फरवरी को प्रेस कांफ्रेस कर हेमंत सोरेन पर सीएम रहते अपने नाम अनगड़ा में स्टोन माइंस लीज लेने का मामला उठाया था। इसके बाद बीजेपी नेताओं का एक डेलीगेशन राजभवन में गवर्नर से मिलकर हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत विधायक पद से अयोग्य ठहराने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने की मांग की।गवर्नर ने नियमानुसार भारत निर्वाचन आयोग से इस पर परामर्श मांगा। आयोग ने परामर्श देने से पहले सीएम सोरेन और बीजेपी को 10 मई तक अपना पक्ष रखने का नोटिस दिया। गवर्नर ने 27 अप्रैल को दिल्ली में पीएम और होम मिनिस्टर से मिलकर राज्य के राजनीतिक हालात से अवगत कराया। मामले में आयोग ने 28 जून को सुनवाई शुरू की और 12 अगस्त तक मुख्य रूप से चार तारीखों पर बहस पूरी हुई।आयोग में विभिन्न तारीखों पर हुई सुनवाई के दौरान भाजपा ने दलील दी कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ खान मंत्री रहते हुये खुद अपने नाम रांची में पत्थर खनन लीज आवंटित कराया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यह याचिका पूरी तरह से सुनवाई योग्य है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) इनपर लागू होती है। बीजेपी की ओर से सीएम की विधानसभा सदस्यता समाप्त करने की मांग की गई। इसके जवाब में हेमंत सोरेन की ओर से एडवोकेट के माध्यम से कहा गया कि लीज आवंटित करने का मामला जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) के दायरे में नहीं आता है। इस आधार पर इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए। आयोग ने 12 अगस्त को सुनवाई पूरी करते हुये अपना मंतव्य देने से पहले 18 अगस्त तक दोनों पक्षों से लिखित जवाब मांगा। लिखित जवाब के बाद गुरुवार को आयोग का परामर्श राजभवन को प्राप्त हो गया है।
सेंट्रल एजेंसियों का शर्मनाक दुरुपयोग लोकतंत्र में पहले नहीं देखा : हेमंत सोरेन
सीएम हेमंत सोरेन की ओर से बयान जारी कर कहा गया कि कई मीडिया रिपोर्टों से जानकारी मिल रही है कि चुनाव आयोग ने झारखंड के राज्यपाल को 'एक विधायक के रूप में उनकी अयोग्यता की स्पष्ट रूप से चुनाव आयोग ने सिफारिश की है'। लेकिन, इस संबंध में चुनाव आयोग या राज्यपाल से सीएमओ को कोई पत्र नहीं मिला है।सीएम ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी के एक एमपी और कुछ पत्रकारों सहित बीजेपी नेताओं ने खुद ही चुनाव आयोग की रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया है। हालांकि यह मंतव्य सीलबंद होता है। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय द्वारा संवैधानिक संस्थानों और केंद्रीय एजेंसियों का इस प्रकार शर्मनाक दुरुपयोग लोकतांत्रिक भारत में पहले कभी नहीं देखा गया है।
संवैधानिक संस्थानों काे तो खरीद लोगे, जनसमर्थन कैसे खरीद पाओगे। हैं तैयार हम! जय झारखंड।
इसके पहले EC के पत्र पर सोरेन ने कहा कि ऐसा लगता है कि बीजेपी लीडर , एमपी और उनके कठपुतली जर्नलिस्टों ने रिपोर्ट तैयार की है। नहीं तो ये सील्ड होती। संवैधानिक संस्थाओं और एजेंसियों को बीजेपी ऑफिस ने टेकओवर कर लिया है। भारतीय लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं देखा गया।
हेमंत की सदस्यता गई तो आगे क्या होगा?
अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होती है तो उन्हें इस्तीफा देकर फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी होगी। इसके बाद छह महीने के अंदर उन्हें दोबारा विधानसभा चुनाव जीतना होगा। अगर चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अयोग्य घोषित किया जाता है तो उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना होगा। ऐसे में वे परिवार या पार्टी से किसी को कमान सौंप सकते हैं।
हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं सीएम
बताया जाता है कि कि चुनाव आयोग अगर किसी विधायक या मंत्री को लाभ का पद रखने के मामले में दोषी पाता है तो उनकी सदस्यता समाप्त कर सकता है। सदस्यता रद्द होने पर वे इस मामले में हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। आर्टिकल-32 के मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकते हैं, लेकिन ये सभी विकल्प चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद ही निर्भर करता है।
हेमंत का विकल्प कौन?
चुनाव आयोग के फैसले के दोनों पक्षों को लेकर यपीए तैयार है। अगर फैसले से सोरेन की राजनीतिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा तो सत्तापक्ष कम्फर्टेबल मोड में रहेगा। दूसरी तरफ झामुमो इस बात को लेकर बेचैन है कि अगर कमीशन का फैसला सोरेन के खिलाफ गया तो ऐसी स्थिति में उनके विकल्प के रूप में किसे चुना जा सकता है। हालांकि, इसको लेकर पार्टी और UPA प्लेटफार्म पर अनौपचारिक रूप से तीन नामों की चर्चा हुई है। इसमें सबसे पहला नाम सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का है। दूसरे नंबर पर जोबा मांझी और तीसरे नंबर पर चम्पई सोरेन हैं। दोनों सोरेन परिवार के काफी करीबी और विश्वस्त हैं। कांग्रेस ने भी इन नामों पर अभी तक नहीं किसी तरह की आपत्ति नहीं जताई है।