सुलभ इंटरनेशनल के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को निधन हो गया। डॉ. बिंदेश्वर पाठकने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली है। सुलभ इंटरनेशनल के ऑफिस में झंडोत्तोलन कार्यक्रम के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। आनन फानन में उन्हें दिल्ली के एम्स भर्ती करवाया गया था।
नई दिल्ली। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को निधन हो गया। डॉ. बिंदेश्वर पाठकने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली है। सुलभ इंटरनेशनल के ऑफिस में झंडोत्तोलन कार्यक्रम के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। आनन फानन में उन्हें दिल्ली के एम्स भर्ती करवाया गया था।
कॉर्डियक अरेस्ट होने पर उन्हें दोपहर डेढ़ बजे दिल्ली एम्स की इमरजेंसी में लाया गया। डॉक्टरों ने उन्हें सीपीआर (कार्डियक पल्मोनरी रिससिटेशन) देकर धड़कन ठीक करने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। जहां उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। दिवंगत बिंदेश्वर पाठक की पहचान बड़े भारतीय समाज सुधारकों में की जाती है।
डॉक्टर पाठक ने वर्ष 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की थी। इन्होंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की, जो मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करती है। देशभर में सुलभ इंटरनेशनल के लगभग 8500 शौचालयों और स्नानघर हैं। सुलभ इंटरनेशनल के शौचालय के प्रयोग के लिए पांच रुपये और स्नान के लिए 10 रुपये लिए जाते हैं, जबकि कई जगहों पर इन्हें सामुदायिक प्रयोग के लिए मुफ़्त भी रखा गया है।
सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने पांच दशकों से अधिक समय तक चलनेवाले राष्ट्रव्यापी स्वच्छता आंदोलन के निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उनकी पहल की बदौलत सुलभ शौचालयों का जगह-जगह निर्माण संभव हो पाया। उनके योगदान ने उन लाखों गंभीर रूप सेवंचित गरीबों के जीवन में महत्वपूर्णबदलाव लाया, जो शौचालय का खर्चनहीं उठा सकते थे। डॉ. बिंदेश्वर पाठक, महात्मा गांधी को अपनी प्रेरणा मान तेथे। पिछले 50 वर्षों में उन्होंनेशौचालयों को साफ करनेवाले, हाथ से मैला ढोनेवालों के मानवाधिकारों के लिए अथक प्रयास किया है। उनके कार्यों का उद्देश्य हाथ से मैला ढोनेवालों का पुनर्वास करना, कौशल विकास के माध्यम से वैकल्पिक रोजगार प्रदान करके उनकी गरिमा का ख्याल रखना था। डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने शांति, सहिष्णुता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
डॉ. बिंदेश्वर पाठक मूल रूप से बिहार के वैशाली जिला स्थित रामपुर बघेल गांव के रहने वाले थे। वर्ष 1991 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। डॉक्टर पाठक द्वारा स्थापित शौचालय संग्रहालय को टाइम पत्रिका ने दुनिया के 10 सर्वाधिक अनूठे संग्रहालय में स्थान दिया था। महावीर एंक्लेव स्थित सुलभ ग्राम में स्थापित इस संग्रहालय में देश विदेश के अनेक लोग पहुंच चुके हैं। सिर पर मैला ढोने की प्रथा की समाप्ति के इनके द्वारा किये गए कार्यों को पूरे वर्ल्ड में प्रशंसा मिली।