Anand Mohan: बिहार के बाहुबली एक्स MP आनंद मोहन को सुप्रीम कोर्ट से झटका, पासपोर्ट जमा करने का आदेश
बिहार के बाहुबली एक्स एमपी आनंद मोहन को सु्प्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। गोपालगंज के डीएम रहे IAS जी कृष्णैया मर्डर केस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की समय से पूर्व रिहाई के मामले में सेंट्रल गवर्नमेंट दोनों को फटकार लगाई। आनंद मोहन का पासपोर्ट जल्द जब्त करनेका आदेश दिया है।
नई दिल्ली। बिहार के बाहुबली एक्स एमपी आनंद मोहन को सु्प्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। गोपालगंज के डीएम रहे IAS जी कृष्णैया मर्डर केस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की समय से पूर्व रिहाई के मामले में सेंट्रल गवर्नमेंट दोनों को फटकार लगाई। आनंद मोहन का पासपोर्ट जल्द जब्त करनेका आदेश दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल गवर्नमेंट व बिहार गवर्नमेंट से जवाब भी तलब किया है। आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई को चुनौती देनेवाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एक्स एमपी को तुरंत अपना पासपोर्ट लोकल पुलिस स्टेशन में जमा करना होगा। एक पखवाड़े के आधार पर वहां रिपोर्ट करना होगा।जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने याचिकाकर्ता द्वारा अन्य मामलों में मोहन की संलिप्तता के संबंध में रिकॉर्ड पर रखी गई जानकारी के मद्देनजर यह आदेश पारित किया। यह याचिका जी कृष्णैया की विधवा उमा कृष्णैया द्वारा दायर की गई, जो 1994 में आनंद मोहन के नेतृत्व वाली भीड़ के हमले में मारे गये थे। आनंद मोहन को इस अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बिहार सरकार द्वारा सजा में छूट के मद्देनजर कथित तौर पर 14 साल की कैद की सजा काटनेके बाद वह 24 अप्रैल, 2023 को जेल से बाहर आ गये।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि आनंद मोहन की सजा बिहार सरकार द्वारा राज्य की माफी नीति में संशोधन के कारण संभव हुई, जिसने शुरू में ड्यूटी पर लोक सेवकों की मर्डर के लिए दोषी ठहराये गये व्यक्तियों को 20 साल की सजा पूरी होने से पहले छूट के लिए अयोग्य बना दिया था। यह दावा किया गया कि एक्स एमपी की की रिहाई सार्वजनिक नीति के विपरीत है। यह लोक सेवकों का मनोबल गिराने के समान होगी। याचिकाकर्ताका यह भी तर्क हैकि छूट नीति, जो अपराध के समय प्रचलित थी, लागू की जानी चाहिए। याचिका में आनंद मोहन के अलावा बिहार सरकार और उसके रिमिशन बोर्ड के साथ-साथ सेंट्रल को भी शामिल किया गया। आठ मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नोटिस जारी किया था।
याचिकाकर्ता की ओर सेपेश सीनियर वकील सिद्धार्थ लूथरा ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यूनियन को आठ मई को नोटिस जारी किया गया, जिसके बाद उनकी ओर से उपस्थिति दर्ज की गई। अब मामले को किसी न किसी कारण से टाला नहीं जा सकता। जस्टिस सूर्यकांत ने नाराजगी व्यक्त करते हुए यूनियन के वकील से कहा कि यह आपकी इच्छा पर निर्भर नहीं है कि जब भी आप सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश होना चाहें, आप हों और फिर आप नहीं चाहते, आप नहीं चाहते। कोर्ट ने उस अफसर का नाम भी पूछा, जिसने संघ के वकील को आज पेश होने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान, बिहार के अतिरिक्त हलफनामे का जिक्र करते हुए सीनियर वकील लूथरा ने यह भी तर्क दिया कि मौजूदा मामला विचित्र मामला है, जहां दोषी (आनंद मोहन) को 14 साल की कैद भी नहीं हुई थी। इसके बजाय, उन्होंने केवल लगभग आठ साल हिरासत में बिताये और अब राजनीतिक भूमिका निभा रहे हैं। समय की कमी को ध्यान में रखते हुए सुप्रीमा कोर्ट ने मामले को 27 फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया।
आनंद मोहन की रिहाई पर सियासत
आनंद मोहन की रिहाई को बीजेपी राजनीतिक चश्मे से देख रही है। अनंद मोहन को 27 अप्रैल 20213 को जेल से रिहा किया गया है। बीजेपी का कहना है कि नीतिश सरकार मर्डर को आरोपी को राजनीतिक लाभ के लिए रहा किया है। दलित आइएएस अफसर के मर्डर के आरोपी को रिहा गया है। आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ बीजेपी के एक्स सेंट्रल मिनिस्टर केजेअल्फोंस सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। आनंद मोहन को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की 1994 में हुई मर्डर केस में 13 साल बाद 2007 में ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। आनंद मोहन की अपील पर पटना हाईकोर्ट ने 2008 में फांसी को उम्रकैद में बदल दिया। आनंद मोहन सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी। दिवंगत डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया भी आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। मामले में सुनवाई चल रही है।सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से जबाव मांगा है। मामले में अगस्त माह में सुनवाई होगी।
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
बिहार के गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की मुजफ्फरपुर में पांच दिसंबर 1994 को उग्र भीड़ ने मर्डर कर दी थी। बिहार गवर्नमेंट ने इस मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को 17 साल जेल काटने के बाद 27 अप्रैल को रिहा कर दिया था। इसके खिलाफ जी कृष्णैया की वाइफ उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रिहाई का आदेश रद करने की मांग की है। उमा कृष्णैया की याचिका पर पहली सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी ने की थी। उस दिन कोर्ट ने बिहार गवर्नमेंट और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया था।
बिहार सरकार के वकील ने कोर्ट से मांगा था समय
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई आठ मई को उमा कृष्णैया की याचिका पर बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया था। शुक्रवार को मामला न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला की बेंच के सामने सुनवाई पर लगा था।बिहार सरकार की ओर से पेश वकील मनीष कुमार ने मामले में जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा। कोर्ट ने साफ किया कि आगे और समय नहीं दिया जाएगा। पीठ ने बिहार सरकार से कहा कि कोर्ट के देखने के लिए रिहाई से संबंधित सारा मूल रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किया जाए।
उमा कृष्णैया के वकील ने कोर्ट में रिकॉर्ड पेश करने की मांग
उमा कृष्णैया की ओर से पेश सीनीयर एडवोके्ट सिद्दार्थ लूथरा ने आनंद मोहन की रिहाई का विरोध करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने रिहाई नीति में पूर्व तिथि से संशोधन लागू करते हुए आनंद मोहन को रिहा कर दिया है।लूथरा ने कहा कि कोर्ट राज्य सरकार को आदेश दे कि वह आनंद मोहन की आपराधिक पृष्ठभूमि का सारा रिकॉर्ड कोर्ट में पेश करे।इसके बाद कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को याचिका का जवाब दाखिल करने का समय देते हुए रिहाई से संबंधित और आनंद मोहन की आपराधिक पृष्ठभूमि का सारा रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई आठ अगस्त तक के लिए टाल दी।
सुप्रीम कोर्ट का नीतीश गवर्नमेंट को नोटिस
सजायाप्ता आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई को सुनवाई के दौरान बिहार के नीतीश कुमार गवर्नमेंट व अन्य को नोटिस जारी किया था।गोपालगंज के डीएम रहे IAS अफसर जी कृष्णैया की की मर्डर के मामले में दोषी उम्र कैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को जेल के नियमों में संशोधन कर 27 अप्रैल को रिहा कर दिया था। बिहार गवर्नमेंट के इस फैसले को कृष्णैया की वाइफ उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उमा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार गवर्नमेंट समेत अन्य को नोटिस जारी किया था।
नियमों में संशोधन कर दी गई रिहाई
एक्स एमपी आनंद मोहन को पांच दिसंबर 1994 को हुई गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की पीट-पीट कर मर्डर मामले में आरोपी बनाया गया। लंबे समय तक मुकदमा चला। इसके बाद साल 2007 में आनंद मोहन को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। तब से वे बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहे थे। हाल ही में नीतीश सरकार ने जेल के नियमों में संशोधन कर 27 कैदियों को रिहा किया, जिनमें आनंद मोहन भी शामिल थे। आनंद मोहन की रिहाई पर सियासी बवाल मचा, लेकिन इस पर आनंद मोहन की ओर से कोई टिप्पणी नहीं आई।
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ हाईकोर्ट में PIL
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दलित संगठन से जुड़े अमर ज्योति ने भी 26 अप्रैल को पटना हाईकोर्ट में PIL दायर की। कारागार अधिनियम 2012 को संशोधित कर सरकार ने जो अधिपत्र निकाला है। उसके खिलाफ याचिका दायर की गई है। अमर ज्योति (30) भोजपुर के पीरो के रहने वाले हैं। उन्होंने कोर्ट से सरकार की ओर से जारी उस अधिपत्र को निरस्त करने की अपील की है।
आनंद मोहन ऐसे जेल से बाहर आये
आनंद को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके तहत उन्हें 14 साल की सजा हुई थी। आनंद ने सजा पूरी कर ली थी, लेकिन मैनुअल के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी की मर्डर के मामले में दोषी को मरने तक जेल में ही रहना पड़ता है। नीतीश सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया। इसका संकेत जनवरी में नीतीश कुमार ने एक पार्टी इवेंट में मंच से दिया था कि वो आनंद मोहन को बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं। 10 अप्रैल को स्टेट गवर्नमेंट ने इस मैनुअल में बदलाव कर दिया। आनंद मोहन समेत 27 दोषियों की रिहाई के आदेश सोमवार को जारी किये गये थे। आनंद मोहन पर तीन और केस चल रहे हैं। इनमें उन्हें पहले से बेल मिल चुकी है।
पहले यह था नियम
26 मई 2016 को जेल मैनुअल के नियम 481(i) (क) में कई अपवाद जुड़े, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर जैसे जघन्य मामलों में आजीवन कारावास भी था। नियम के मुताबिक ऐसे मामले में सजा पाए कैदी की रिहाई नहीं होगी और वह सारी उम्र जेल में ही रहेगा।
ऐसे किया बदलाव किया गया
10 अप्रैल 2023 को जेल मैनुअल से ‘काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या’ अंश को हटा दिया गया। इसी से आनंद मोहन या उनके जैसे अन्य कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ हुआ।
फ्लैश बैक
बिहार के मुजफ्फरपुर में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की पांच दिसंबर, 1994 को भीड़ ने पहले पीटा और फिर गोली मारकर मर्डर कर दी थी। इस मामले में आरोप लगा था कि इस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। साल 2007 में इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2008 में हाइकोर्ट की तरफ से ही इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया। 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की थी, जो खारिज हो गयी थी। गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की मर्डर मामले में आनंद मोहन अपनी 14 साल की कारावास अवधि पूरी कर चुके हैं। आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव के कहने वाले हैं। उनके दादा एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1990 में की थी।आनद मोहन एमएलए व एमपी रह चुके है। उनकी वाइफ लवली आनंद भी एमएलए व एमपी रह चुकी है।
गोपालगंज डीएम मर्डर केस में क्या हुआ
पांच दिसंबर 1994-डीएम जी कृष्णैया की मर्डर
तीन अक्टूबर 2007-आनंद मोहन समेत तीन को फांसी। 29 बरी। कुछ को उम्रकैद |
10 दिसंबर 2008-हाईकोर्ट ने आनंद मोहन की फांसी को उम्र कैद में बदला।
10 जुलाई 2012- हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही बताया।
10 अप्रैल 2023- मैनुअल से काम के दौरान सरकारी सेवक की मर्डर का बिंदु हटा।
आनंद मोहन का पॉलिटिकल करियर
1990-पहली बार एमएलए बने, महिषी विधानसभा से चुनाव जीता।
1996- समता पार्टी के टिकट पर शिवहर से लोकसभा चुनाव जीता।
1998- लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता पार्टी के टिकट पर शिवहर से जीते।
19990 और 2004 में भी शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन दोनों ही बार हार गये।