दलित स्टूडेंट को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने IIT ISM धनबाद को एडमिशन लेने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने IIT ISM धनबाद को उत्तर प्रदेश के दलित दलित स्टूडेंट को बीटेक कोर्स में एडमिशन लेने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत मिले पावर का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी आईएसएम को आदेश दिया है कि वह उत्तर प्रदेश के दलित स्टूडेंट का एडमिशन लेने का आदेश दिया है। दलित स्टूडेंट अतुल कुमार ने फीस जमा करने की समय सीमा चूकने के कारण अपनी सीट गंवा दी थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने किया अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने IIT ISM धनबाद को उत्तर प्रदेश के दलित दलित स्टूडेंट को बीटेक कोर्स में एडमिशन लेने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत मिले पावर का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी आईएसएम को आदेश दिया है कि वह उत्तर प्रदेश के दलित स्टूडेंट का एडमिशन लेने का आदेश दिया है। दलित स्टूडेंट अतुल कुमार ने फीस जमा करने की समय सीमा चूकने के कारण अपनी सीट गंवा दी थी।
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Supreme Court exercises its power under Article 142 and directs that petitioner, who cracked IIT Dhanbad but could not get admission since he missed fee payment deadline, must be granted admission to IIT Dhanbad.
— ANI (@ANI) September 30, 2024
Supreme Court says a talented student like the petitioner who… pic.twitter.com/Au6KkVPQCN
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि हम ऐसे प्रतिभाशाली युवा को जाने नहीं दे सकते। उसे मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम निर्देश देते हैं कि उम्मीदवार को आईआईटी धनबाद में एडमिशन दिया जाए और उसे उसी बैच में रहने दिया जाए, जिसमें उसे फीस का भुगतान करने पर एडमिशन मिलता।
उत्तर प्रदेश के स्टूडेंट ने आईआईटी की इंटरसेंस पास कर ली थी, लेकिन, दलित स्टूडेंट ने आईआईटी आईएसएम के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी धनबाद को सोमवार को निर्देश दिया कि ऐसे मेधावी छात्र को एडमिशन से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि छात्र समयसीमा के भीतर फीस के कुछ पैसे जमा करने में विफल रहा, लेकिन उसे हर हाल में आईआईटी आइएसएम में एडमिशन मिलना चाहिए। पिछड़े समूह से आने वाले किसी भी प्रतिभावान छात्र को दाखिले से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
मेरी जिंदगी पटरी पर आ गयी: अतुल
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से याचिकाकर्ता छात्र अतुल कुमार ने चीफ जस्टिस की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने बहुत अच्छा फैसला दिया। अतुल ने कहा कि अब मेरी जिंदगी पटरी पर आ गयी है। पैसे की कमी किसी की तरक्की में बाधा नहीं बननी चाहिए।
क्या है आर्टिकल 142?
आर्टिकल 142 भारत के संविधान की एक धारा है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट को अपार शक्तियां प्राप्त है। किसी को न्याय दिलाने के लिए भारत के संविधान की यह धारा सुप्रीम कोर्ट को कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है। इस अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट जो आदेश पारित करेगा, वह देश भर में मान्य होगा। सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार मिल जाता है कि वह कोई आदेश पारित करे, जो विधिसम्मत हो या राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित तरीके से लागू करने योग्य हो। आर्टिकल 142 में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट किसी को भी कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश जारी कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट किसी मामले की जांच या दस्तावेज उपस्थापित करने का आदेश दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट को इस आर्टिकल के तहत यह भी अधिकार मिल जाता है कि वह किसी मामले में अवमानना की जांच करे या किसी को दंडित कर सके।
यह है मामला
अतुल ने बड़ी ही मेहनत और लगन से देश की सबसे कठिन एग्जाम में से एक जेईई एडवांस एग्जाम को पास किया। अतुल ने नौ जून को अपने भाई के लैपटॉप से रिजल्ट देखा तो वह खुश हुआ। अतुल ने अपनी कड़ी मेहनत से आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में सीट हासिल की। लेकिन 24 जून तक उसे यह सीट लॉक करने के लिए 17500 रुपये जमा कराने थे। लेकिन दुर्भाग्य से समय खत्म होने से तीन मिनट पहले तकनीकी समस्या के कारण वह पैसे जमा नहीं कर पाया। इस कारण उसे आईआईटी आइएसएम की सीट गंवानी पड़ी। आईआईटी आइएसएम धनबाद ने उसका एडमिशन लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह समय पर फीस के 17500 रुपए का भुगतान नहीं कर पाया।
झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का दरवाजा खटखटा चुका है अतुल
अतुल ने झारखंड के एक सेंटर से जेइइ की एग्जाम दी थी, इसलिए उसने झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का रुख किया। प्राधिकरण ने उसे मद्रास हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया। क्योंकि परीक्षा आइआइटी, मद्रास ने आयोजित की थी। हाइकोर्ट ने उसे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। इसके माता-पिता ने सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति का भी दरवाजा खटखटाया था।लेकिन आयोग ने भी उसकी मदद करने में असमर्थता जतायी। अंतत: अतुल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दिहाड़ी मजदूर हैं अतुल के पिता
अतुल के पिता राजेन्द्र कुमार एक ट्रांसफार्मर फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर हैं। वे महीने का 12000 रुपये कमाते हैं। राजेंद्र का सपना था कि उनका बेटा इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने। राजेंद्र कहते हैं कि रोटी चाहे आधी खाएं लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ायें। राजेंद्र ने कहा कि समय खत्म होने के बाद उन्होंने आईआईटी धनबाद में फोन किया। यहां तक अतुल जिस कोचिंग सेंटर में पढ़ाई कर रहा था उसने यह प्रयास किया लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
2021 में एक केस में चीफ जस्टिस ने सुनाया था फैसला
अतुल के पिता 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र कर रहे थे जिसमें एक दलित छात्र समय पर फीस न जमा कर पाने की वजह से आईआईटी बॉम्बे में एडमिशन नहीं ले पाया था। तब प्रिंस जयवीर सिंह बनाम भारत संघ के केस में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने छात्र के हक में फैसला सुनाया था। उसे आईआईटी बॉम्बे में एडमिशन की अनुमति दी थी।उल्लेखनीय है कि जयबीर केस में भी अतुल के वकील अमोल चितले और प्रज्ञा बघेल ने ही प्रतिनिधित्व किया था।