बिहार: DSP की नौकरी को ठोकर मारकर राजनीति में आये थे RamVilas Paswan, पांच दशक की राजनीति में छह पीएम के कैबिनेट में रहे मिनिस्टर
राम विलास पासवान ने 1969 में डीएसपी के लिए सलेक्ट हुए थे। उन्होंने डीएसपी की नौकरी को ठुकरा कर राजनीति चुनी। 50 साल से अधिक समय तक सफलता पूर्वक पॉलिटिकल सफर किया।
- राजकीय सम्मान के साथ आज पटना में आज होगा अंतिम संस्कार
- आधी सदी की लंबी पॉलिटिकल सफर
पटना। राम विलास पासवान ने 1969 में डीएसपी के लिए सलेक्ट हुए थे। उन्होंने डीएसपी की नौकरी को ठुकरा कर राजनीति चुनी। 50 साल से अधिक समय तक सफलता पूर्वक पॉलिटिकल सफर किया। बीते कुछ समय से बीमार चल राम विलास पासवान ने बुधवार को अंतिम सांस ली।
सर्वाधिक वोटो से जीतने का वर्ल्ड, छह पीएम के कैबिनेट में रहे साथ
50 साल के अपने पॉलिटिकल सफर के दौरान रामविलास पासवान ने रिकार्ड वोटों जीतने का वर्ल्ड रिकार्ड बनाया। छह प्राइम मिनिस्टर की कैबिनेट में बतौर कैबिनेट काम करने का भी रिकार्ड उनके नाम दर्ज है। बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में वर्ष 1946 की पांच जुलाई को जन्मे रामविलास पासवान के पिता का नाम जामुन पासवान था। अपने भाईयों में रामविलास सबसे बड़े थे, उसके बाद पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान। पिता ने तीनों भाइयों को काफी गरीबी में पाला था, लेकिन रामविलास शुरू से ही जुझारु थे, उन्होंने शहरबन्नी से स्कूली पढ़ाई करने के के बाद कोसी कॉलेज और पटना यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की।
दो शादियां, एक बेटे व तीन बेटियों के पिता
राम विलास पासवान ने दो शादियां की थीं। उन्होंने वर्ष 1960 के दशक में राजकुमारी देवी से शादी की। उन्हें पहली पत्नी से उषा और आशा दो बेटियां हैं। वर्ष 1983 में उन्होंने एक पंजाबी हिंदू रीना शर्मा से विवाह किया, जिनसे उन्हें एक बेटा चिराग पासवान और एक बेटी है।पासवान वर्ष 1969 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से अलौली से एमएलए बने। वर्ष 1974 में लोकदल के महासचिव बनाये गये। रामविलास पासवान जेपी को अपना आदर्श मानते रहे हैं। छात्र जीवन से वह समाजवादी आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। 1975 में इमरजेंसी की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था। साल भर से ज्यादा समय उन्होंने जेल में गुजारी थी। 1977 में रामविलास पासवान को जेल से रिहा किया गया था।
जब 1969 में बन रहे थे DSP
उन्होंने यूपीएससी की न सिर्फ तैयारी की बल्कि उसे क्रैक भी किया। रामविलास का चयन डीएसपी के पोस्ट के लिए हुआ था,तभी वह समाजवादी नेता राम सजीवन के संपर्क में आकर राजनीति का रुख कर लिया। वह वर्ष 1969 में वह अलौली विधानसभा से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद राजनीति में पासवान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह वर्ष 1974 में वो राज नारायण और जेपी के प्रबल अनुयायी के रूप में लोकदल के महासचिव बने। वे व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी भी रहे। उनकी शादी 1960 में राजकुमारी देवी के साथ हुई थी। बाद में 1981 में राजकुमारी देवी को तलाक देकर उन्होंने दूसरी शादी 1983 में रीना शर्मा से की। उनकी दोनों पत्नियों से तीन पुत्रियां और एक पुत्र है। उन्होंने कोसी कॉलेज, खगड़िया और पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए और लॉ ग्रेजुएट की डिग्री ली।
सर्वाधिक वोटों से जीतने का वर्ल्ड रिकार्ड
हाजीपुर से 1977 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने चार लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर वर्ल्ड रिकार्ड बनाया था। रामविलास पासवान का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में भी दर्ज है। रेकॉर्ड मतों से हाजीपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी।राम विलास पासवान वे बिहार की राजनीति के दलित चेहरा भी थे। बाबू जगजीवन राम के बाद बिहार में दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने के लिए उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की।राम विलास पासवान समाजवादी धारा के बड़े नेताओं में शामिल रहे। वे आपातकाल के विरोध में हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जेपी आंदोलन की उपज थे।
छह पीएम के साथ रहे कैबिनेट मिनिस्टर
राम विलास पासवान ने 2019 में चुनावी राजनीति में अपने 50 वर्ष पूरे किये थे। इस दौरान उन्होंने छह पीएम की कैबिनेट में सेंट्रल मिनिस्टर रहे। वह विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की गवर्नमेंट में मिनिस्टर रहे।
गुजरात दंगे के विरोध में छोड़ा दिया एनडीए
राम बिलास पासवान वर्ष 2002 में गुजरात दंगे के बाद विरोध में सेंट्रल कैबिनेट से इस्तीफा देकर NDA छोड़ दिया। इसके संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गये। दो साल बाद ही यूपीए की गवर्नमेंट बनने पर वे मनमोहन सिंह की सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री बनाये गये। यूपीए 2 के कार्यकाल में कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों में दूरी आ गयी। तब 2009 के लोकसभा चुनाव में वे हाजीपुर में हार गये थे। उन्हें मंत्री पद नहीं मिला।
बिहार में 2005 में सत्ता की चाभी
रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को पहली बार 2005 में 29 सीटें मिली थीं। किसी भी दल की सरकार रामविलास पासवान के मदद के बिना नहीं बन सकती थी। लेकिन रामविलास पासवान मुस्लिम सीएम की मांग को लेकर अड़े हुए थे। उनकी मांग पर जेडीयू और आरजेडी तैयार नहीं थी। उसके बाद 2005 अक्टूबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ है। रामविलास पासवान को मुंह की खानी पड़ी। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गयी।
2014 में फिर एनडीए में हुई वापसी
2014 के लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने एनडीए में रामविलास पासवान को लिया। इस दौरान नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल थे। बीजेपी ने एलजेपी को बिहार में सात सीटें दी, जिनमें एलजेपी ने छह सीटों पर जीत दर्ज की। रामलिवास पासवान, उनके बेटे चिराग पासवान और भाई रामचंद्र पासवान, वीणा देवी महहबूब अली कैसर व रामा सिंह लोकसभा चुनाव जीत गए। राम विलास पासवान मंत्री बनाये गये। पीएम मोदी की वर्तमान सरकार में खाद्य, जनवितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में रामविलास पासवान ने जन वितरण प्रणाली में सुधार लाने के अलावा दाल और चीनी क्षेत्र में संकट का प्रभावी समाधान किया। वर्तमान में वे राज्यसभा सदस्य थे।वर्ष 2019 की लोकसभा चुनाव में भी राम विलास के भई रामचंद्र पासवान, पशुपति पारस बेटे चिराग पासवान के अलावा चंदन कुमार, वीणा देवी व महबूब अली कैसर एमपी बने हैं। रामचंद्र पासवान की निधन के बाद खाली हुई लोकसभा सीट पर अभी उनके बेटे प्रिंस राज एमपी हैं।
राजनीति के मौसम वैज्ञानिक
कहा जाता है कि रामविलास राजनीति के मौसम वैज्ञानिक थे, सियासी मौसम का रुख वह पहले ही भांप लेते थे। राम विलास पासवान को राजनीति का बड़ा मौसम वैज्ञानिक माना जाता था। सरकार किसी की भी रही, राम विलास पासवान हमेशा सत्ता में रहे। खास बात यह रही कि उन्होंने हमेशा चुनाव के पहले गठबंधन किया, चुनाव के बाद कभी नहीं। आपात काल के दौरान इंदिरा गांधी से लड़ने से लेकर अगले पांच दशकों तक पासवान कई बार कांग्रेस के साथ, तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते और जीतते रहे।रामविलास पासवान अपने सियासी करियर में 11 चुनाव लड़ चुके हैं। 11 में से अभी तक वह नौ चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। बिहार में पासवान जाति में उनकी अच्छी पकड़ है। रामविलास से सियासी अदावत की वजह से नीतीश कुमार ने पासवान जाति को महादलित में नहीं शामिल किया था।
LJP से पहले पासवान ने बनाई थी दलित सेना
LJP तो काफी बाद में बनी लेकिन 1983 में ही रामविलास दलित सेना की स्थापना कर दी। उन्होंने दलित मुक्ति और कल्याण के लिए एक संगठन दलित सेना की स्थापना की थी।राजनीति में रहते हुए उनके दो ऐसे फैसले थे जो आगे चलकर मील का पत्थर साबित हुए। इसमें पहला फैसला हाजीपुर में रेलवे का जोनल कार्यालय खुलवाना था।दूसरा फैसला केन्द्र में अंबेडकर जयंती पर छुट्टी घोषित कराने का था।
2000 में एलजेपी का गठन
रामविलास पासवान ने विभिन्न दलों में रह कर अपने सियासी करियर पंख दिया है। इस दौरान वह लोक दल, जनता पार्टी-एस, समता दल, समता पार्टी और फिर जदयू में रहे हैं। 28 नवंबर 2000 को उन्होंने दिल्ली में अपनी अलग पार्टी लोक जन शक्ति पार्टी बना ली थी। यह पार्टी बिहार से ज्यादा केंद्र में ही सत्ता में रही है।मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद रामविलास पासवान सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहते थे। वह अपने विभागीय कार्यों से लोगों को अवगत कराते रहते थे। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर उन्हें लाखों लोग फॉलो करते हैं।
बेटे चिराग को सौंप दी पार्टी जिम्मेदारी
रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। अस्वस्थ रहने की वजह से वह राजनीति में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते थे। उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी। बतौर एलजेपी प्रसिडेंट अब चिराग ही पार्टी को संभाल रहे थे। बिहार चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर लड़ने का फैसला किया है।
1989 में पहली बार केन्द्रीय श्रम मंत्री
1996 में रेल मंत्री
1999 में संचार मंत्री
2002 में कोयला मंत्री
2014 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री
2019 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री
पटना में आज होगा अंतिम संस्कार
रामविलास पासवान का दिल व किडनी ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था। इस वजह से कुछ दिनों से उन्हें आइसीयू में एक्मो (एक्सट्रोकॉरपोरियल मेमब्रेंस ऑक्सीजनेशन) मशीन के सपोर्ट पर रखा गया था। गुरुवार की शाम 6:05 बजे उन्होंने दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में अंतिम सांस ली। शुक्रवार को रामविलास पासवान का पार्थिव शरीर पटना लाया जायेगा। राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा।
पासवान का जीवन विभिन्न अनुभवों से भरा रहा
राम विलास पासवान का जीवन विभिन्न अनुभवों से भरा रहा। चार नदियों से घिरे दलितों के गांव की ज्यादातर उपजाऊ जमीन बड़ी जातियों के लोगों के कब्जे में थी, जो यहां खेती करने और काटने आते थे। पिताजी के मन में बेटे को पढ़ाने की ललक ऐसी कि उसके लिए कुछ भी करने को तैयार। पहला हर्फ गांव के दरोगा चाचा के मदरसे में सीखा। तीन महीने बाद ही तेज धार वाली नदी के बहाव में मदरसा डूब गया। फिर दो नदी पार कर रोजाना कई किमी दूर के स्कूल से थोड़ा पढ़ना लिखना सीख गये। जल्दी ही शहर के हरिजन छात्रवास तक पहुंच बनी, फिर तो वजीफे की छोटी राशि से दूर तक का रास्ता तय कर लिया। पढ़ाई होती गई और आगे बढ़ने का मन भी बढ़ता गया। एक अड़चन जरूर आई, हॉस्टल में रहते हुए आंखों की रोशनी कम होने लगी। डॉक्टर को दिखाया तो लालटेन की रोशनी में पढ़ने को मना कर दिया। तब पासवान की दूसरी शक्ति जाग्रत हुई। श्रवण व स्मरण शक्ति कई गुना बढ़ गई। वह क्लास में बैठते और एकाग्रता से सुनते, वहीं याद भी करते जाते।
हॉस्टल में रहते हुए लगा फिल्मों का चस्का
हॉस्टल में रहते हुए फिल्मों का चस्का भी खूब लगा। घर से आये अनाज के कुछ हिस्से को सामने के दुकानदार के पास बेचकर फिल्म का शौक भी पूरा करने लगे। पढ़ाई पूरी होने लगी तो घर से नौकरी का दबाव भी बढ़ने लगा। दरोगा बनने की परीक्षा दी पर पास न हो सके। लेकिन कुछ ही दिन बाद डीएसपी की परीक्षा में पास हो गए। घर में खुशी का माहौल था लेकिन पासवान के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। गृह जिला खगड़िया के अलौली विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होना था। वह घर जाने की बजाय टिकट मांगने सोशलिस्ट पार्टी के ऑफिस पहुंच गये। उस समय कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए कम ही लोग तैयार हुआ करते थे। उन्हें टिकट मिल भी गया और वे जीत भी गये। पिताजी का दबाव पुलिस अफसर बनने पर था लेकिन दोस्तों ने कहा- सर्वेंट बनना है या गवर्नमेंट, ख़ुद तय करो।