Bihar: बारा नरसंहार के मुख्य आरोपी को उम्रकैद की सजा, पांच लाख का जुर्माना भी लगा

बिहार के गया जिलेके बारा नरसंहार कांड के मुख्य अभियुक्त किरानी यादव को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। अभियुक्त पर एक लाख रुपयेका जुर्माना भी लगाया गया है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की कोर्ट ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया। कोर्ट में मामले की ऑनलाइन सुनवाई हुई।

Bihar: बारा नरसंहार के मुख्य आरोपी को उम्रकैद की सजा, पांच लाख का जुर्माना भी लगा
  • 31 साल बाद आया कोर्ट का फैसला

गया। बिहार के गया जिलेके बारा नरसंहार कांड के मुख्य अभियुक्त किरानी यादव को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। अभियुक्त पर एक लाख रुपयेका जुर्माना भी लगाया गया है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की कोर्ट ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया। कोर्ट में मामले की ऑनलाइन सुनवाई हुई।

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एमसीसी उग्रवादियों ने रेता था 35 लोगों का गला
कोर्ट के फैसले से गया जिले के टिकारी प्रखंड के बारा गांव में नरसंहार में जान गंवाने वाले 35 मृतकों को 31 साल बाद गुरुवार को न्याय मिला। टिकारी प्रखंड के बारा गांव में 12 फरवरी 1992 की रात कोभूमिहार जाति के 35 लोगों के हाथ पैर बांधकर उनके गले को रेत दिया गया था। दिलदहला देनेवाले इस कांड में पहले फेज में टाडा कोर्ट सेजून 2001 में 13 अभियुक्तों को सजा हुई थी। इनमें से चार नन्हें लाल, कृष्णा मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेंद्र सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि बाद में राष्ट्रपति ने चारों की सजा उम्र कैद में बदल दी थी। फिर 2009 में व्यास कहार, नरेश पासवान और युगल मोची को
फांसी की सजा हुई। जबकि साक्ष्य के अभाव में तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया।

बारा नरसंहार के बाद कई घरों के लोग तो गांव छोड़कर दूसरी जगह बस गये हैं। लगभग तीन दशक पूर्व 12 फरवरी 1992 को गया जिले के टिकारी प्रखंड के बारा गांव में नक्सली संगठन एमसीसी के सैकड़ों हथियारबंद उग्रवादियों ने धावा बोल दिया था। नक्सलियों ने गांव पर हमला कर भूमिहार जाति के 35 लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी थी। कहने को तो इस घटना को हुए करीब तीन दशक गुजर गए, परंतु जख्म अभी भी भरे नहीं हैं। पीड़ितों के जेहन में भय और दुख-दर्द आज भी ताजा है। इस घटना को याद कर लोग आज भी सिहर उठते हैं। समय ने आग पर राख की एक परत जरूरत डाल दी है, परंतु दर्द की चिंगारी अब भी अंदर सुलग रही है। हालांकि मुख्य आरोपी को सजा के एलान से थोड़ी राहत जरूर मिली है।
11 मृतकों के आश्रितों को नहीं मिली नौकरी
घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार ने पीड़ितों के आश्रितों को नौकरियां देकर मरहम लगाने का प्रयास किया था।परंतु उन पीड़ितों में से 11 परिवार ऐसे थे, जिन्हें यह लाभ नहीं मिल सका था। जनप्रतिनिधि और अधिकारीगण केवल उनके लिए वादों की खेती करते रहे।नरसंहार में मारे गये बारा गांव के हरिद्वार सिंह, भुषाल सिंह, सदन सिंह, भुनेष्वर सिंह, संजय सिहं, शिवजनम सिंह, गोरा सिंह, बली शर्मा, आशु सिंह तथा भोजपुर जिला अकबारी गांव के श्रीराम सिंह एवं परैया थाना राजाहरी गांव के प्रमोद सिंह के आश्रित अब भी नौकरी की आस लगाये बैठे हैं। सरकार की दोरंगी नीति के शिकार ये पीड़त अब भी उम्मीदों की डोर थामे हैं।इस संबंध में पूर्व सरपंच मदन सिंह का कहना था कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद आश्रितों को नौकरी नहीं दिया जाना, नरसंहार में मिली पीड़ा से कम दुखदायी नहीं है।

एक्स सेंट्रल मिनिस्टर व सीनीयर बीजेपी लीडरडॉ. सीपी ठाकुर ने सरकार को इस संबंध में पत्र भी लिखा था। परंतु उसे भी अनसुना कर दिया गया।उनके पत्र के आधार पर स्थानीय डीएसपी ने एक जांच प्रतिवेदन भी सरकार को भेजा था।नरसंहार की घटना के बाद सीएम लालू प्रसाद यादव ने संपर्क पथ के निर्माण, स्थायी पुलिस चौकी, स्वास्थ्य केंद्र के अलावा बिजली, सिंचाई, पेयजल आदि सुविधाएं मुहैया कराने की घोषणा की थी। यह घोषणाएं आज भी पूरी नहीं हो सकीं। सड़क बनी लेकिन अधूरी है।चौकी के लिए ग्रामीण श्लोक सिंह ने जमीन दान में दे दी, लेकिन चौकी नहीं बनी। स्वास्थ्य उपकेंद्र चालू तो कर दिया गया, लेकिन पद सृजन आज तक नहीं हुआ है।इतने वर्षों में वे मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई जा सकी हैं, जो कि एक सामान्य गांव में हो जानी चाहिए थी। यह अलग बात है कि चरणबद्ध तरीके से अलग-अलग योजनाओं से यहां भी विकास का सिलसिला जारी है।