झारखंड: सीबीआई ने बकोरिया कांड में पकड़ा पुलिस का झूठ, उग्रवादियों ने मारा था 12 लोगों को
लामू के बहुचर्चित बकोरिया एनकाउंटरमामले की जांच कर रही सीबीआइ धीरे-धीरे मामले की तह तक पहुंच रही है। सीबीआइ की अभी तक की जांच में नक्सलियों को मारने का दावा करने वाली पुलिस के झूठ और फर्जीवाड़े की पुष्टि हो चुकी है। जांच में यह बात सामने आई है कि जिन 12 लोगों को नक्सली बता पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मारे जाने की बात कह पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही थी वह गलत निकली है। 12 लोगोंको पुलिस ने नहीं, बल्कि प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन जेजेएमपी के उग्रवादियों ने मारा था।
- सीबीआइ की प्रारंभिक पूछताछ व छानबीन में पुलिस एनकाउंटर की बात गलत
- पुलिस ने खुद ही एनकाउंटर का श्रेय
- डीजीपी ने किया था जवानों को सम्मानित
रांची। पलामू के बहुचर्चित बकोरिया एनकाउंटरमामले की जांच कर रही सीबीआइ धीरे-धीरे मामले की तह तक पहुंच रही है। सीबीआइ की अभी तक की जांच में नक्सलियों को मारने का दावा करने वाली पुलिस के झूठ और फर्जीवाड़े की पुष्टि हो चुकी है। जांच में यह बात सामने आई है कि जिन 12 लोगों को नक्सली बता पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मारे जाने की बात कह पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही थी वह गलत निकली है। 12 लोगोंको पुलिस ने नहीं, बल्कि प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन जेजेएमपी (झारखंड जन मुक्ति परिषद) के उग्रवादियों ने मारा था।
पलामू जिले के सतबरवा ओपी एरिया के बकोरिया में वर्ष 2015 की आठ जून को पांच नाबालिगों सहित 12 लोगों को नक्सली बताकर एनकाउंटर में मारे जाने का दावा कर पुलिस वाहवाही बटोरी थी। तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय ने एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों को सम्मानित भी किया था। अब सीबीआइ की जांच में जो तथ्य उभर कर आये हैं उसके अनुसार जेजेएमपी के कमांडर पप्पू लोहरा के दस्ते ने इस घटना को अंजाम दिया था।
मारे गये लोगों में एक व्यक्ति के कुख्यात नक्सली होने के सबूत भी मिले थे। लेकिन अन्य 11 लोगों को लेकर ग्रामीणों ने सवाल उठाये थे। पुलिस पर निर्दोष ग्रामीणों को मारने के आरोप लगे। वहीं, कुछ ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस की बजाय उग्रवादी संगठन जेजेएमपी के लोगों ने सभा 12 लोगों को मारा। बाद में पुलिस इसका श्रेय लेने के लिए आगे आ गई। कई ग्रामीणों का कहना है कि घरों से उठाकर इन लोगों को ले जाकर मारा गया था। हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ इस मामले की जांच कर रही है।
पुलिस के गले की फांस
एनकाउंटर को सही साबित करने के लिए पुलिस ने हाई कोर्ट में अपनी थ्योरी फाइल की थी। इसे संदेहास्पद मानते हुए हाई कोर्ट ने ही पूरे मामले की सीबीआइ से कराने का आदेश दिया था। एनकाउंटर स्वीकारने की पुलिस की यही भूल अब उसके गले की फांस बन गई है।
फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने भी खड़े किये थे सवाल
जांच के दौरान फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने भी क्राइम सीन रीक्रिएट कर इस मुठभेड़ पर सवाल खड़े किए थे। इतना ही नहीं, तत्कालीन पलामू डीआइजी, तत्कालीन एसपी लातेहार सहित कई पुलिस अफसरों को भ इस इनकाउंटर की जानकारी नहीं थी। उन्हें तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय ने एनकाउंटर की जानकारी दी थी। मारे गये लोगों में नक्सली कमांडर डॉ. अनुराग, पारा टीचर उदय यादव, एजाज अहमद, योगेश यादव व अन्य शामिल थे। मृतकों में पांच नाबालिग भी थे।
विरोध दबाने के लिए 20 लाख रुपये की पेशकश
मारे गये पारा टीचर उदय यादव के पिता जवाहर यादव ने पुलिस के इस एनकाउंटर को फर्जी बताया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके बेटे उदय यादव व एक रिश्तेदार नीरज यादव को कुछ लोग जबरन घर से उठाकर ले गए थे। बाद में मर्डर की जानकारी मिली। अन्य मृतकों के मामले में भी पुलिस की थ्योरी झूठी मिली थी। इसके बाद हाई कोर्ट ने व,र् 2018 की 22 अक्टूबर 2018 को इस एनकाउंटर के मामले की जांच सीबीआइ से कराने का आदेश दिया था।
जवाहर यादव ने सीबीआइ को भी अपने बयान में कहा है कि पुलिस ने प्रतिबंधित झारखंड जन मुक्ति परिषद् (जेजेएमपी) के साथ मिलकर निर्दोष लोगों की मर्डर करवाई। अपनी पीठ थपथपाने के लिए उसे पुलिस एनकाउंटर बता दिया। जब पुलिस की गर्दन फंसने लगी तो पुलिस अफसरों ने परोक्ष रूप से किसी न किसी माध्यम से पीडि़त परिवार को धमकाया। केस मैनेज करने के नाम पर वर्ष 2017 की चार दिसंबर को 20 लाख रुपये देने का भी ऑफर किया था।