Jharkhand: निजी दुश्मनी के लिए नहीं कर सकते एससी-एसटी एक्ट का इस्तेमाल, हाईकोर्ट ने दर्ज मामले को किया रद्द
झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत किसी मामले को वैध बनाने के लिए जाति के आधार पर जान बूझकर अपमान और धमकी के सबूत की आवश्यकता होती है। हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को रद्द कर दिया।
- नयन प्रकाश सिंह, हरेंद्र सिंह और गणेश प्रसाद सिंह को बड़ी राहत
रांची। झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत किसी मामले को वैध बनाने के लिए जाति के आधार पर जान बूझकर अपमान और धमकी के सबूत की आवश्यकता होती है। हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को रद्द कर दिया।
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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एसी-एसटी एक्ट का विशेष कानून समाज के हाशिए पर रहनेवाले वर्ग के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है। इसका इस्तेमाल बदला निकालने और हिसाब-किताब बराबर करने के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता। यह मामला धनबाद में जमीन विवाद से संबंधित है। विवाद जमीन को लेकर हुआ था। जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करनेके लिए नहीं। जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की कोर्ट ने नयन प्रकाश सिंह, हरेंद्र सिंह और गणेश प्रसाद सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया।
एसएसी-एसटी एक्ट के तहत लिए गये संज्ञान रद्द
हाईकोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत किसी मामले को वैध बनाने के लिए जाति के आधार पर जानबूझकर अपमान और धमकी के सबूत की आवश्यकता होती है। इस मामलेमेंअदालत को घटना के स्थान के संबंध में स्पष्टता की कमी और गवाहों के बयानों में विसंगतियां मिलीं। कोर्ट का मानना है कि यह दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का मामला है। अनुसूचित जाति के प्रावधानों के तहत अभियोजन जारी रखने की अनुमतिनहीं दी जा सकती। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने एसएसी-एसटी एक्ट के तहत लिए गए संज्ञान को रद्द कर दिया।
प्रार्थियों ने मामले को हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
प्रार्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में लोअर कोर्ट के 16 फरवरी 2022 के लिए गए संज्ञान को चुनौती दी गई थी। कोर्ट को बताया गया कि प्रतिवादी रघुनाथ राम ने धनबाद में जमीन से बेदखल करने के मामले में अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने की कंपलेन की थी। वर्ष 2001 और वर्ष 2005 में जमीन खरीद से जुड़ा यह मामला है। रघुनाथ राम ने कंपलेन की है कि याचिकाकर्ता और अन्य लोग आठ फरवरी 2015 को उनके कैंपस में प्रवेश कर अपमानजनक टिप्पणियां कीं। उन पर हमला किया, जबकि यह जमीन विवाद का मामला था। जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया।
कंपलेनेंट और उसकी वाइफ के बयानों में विरोधाभास
हाई कोर्ट सभी दस्तावेजों और गवाहों का बयान देखने के कहा कि कंपलेनेंट और उसकी पत्नी के बयानों में विरोधाभास है। यह मामला मूलत: जमीन विवाद से जुड़ा है। जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने में किन शब्दों का प्रयोग किया गया, इसका उल्लेख भी नहीं है। कोर्ट ने प्रार्थियों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में लिये गये संज्ञान को निरस्त कर दिया।