कर्नाटक: गांव में एक भी मुस्लिम नहीं, पांच दिनों तक मनाया जाता है मुहर्रम, मस्जिद में इबादत करते हैं हिंदू पुजारी
कर्नाटक के कर्नाटक के बेलागावी जिले के हीरेबिदानूर गांव की तीन हजार की आबादी में एक भी मुस्लिम नहीं है। बावजूद इस गांव के लोगों द्वारा हर साल पांच दिनों तक पूरे रीति रिवाज के साथ मुहर्रम मनाया जाता है। इसमें पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं।
बेंगलुरु। कर्नाटक के कर्नाटक के बेलागावी जिले के हीरेबिदानूर गांव की तीन हजार की आबादी में एक भी मुस्लिम नहीं है। बावजूद इस गांव के लोगों द्वारा हर साल पांच दिनों तक पूरे रीति रिवाज के साथ मुहर्रम मनाया जाता है। इसमें पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं।
हिंदू पुजारी मस्जिद में भी निभाता है परंपराएं
मुहर्रम आते ही गांव की हर गली रौशनी से जगमगा उठती है। लोग मुहर्रम का जुलूस भी निकालते हैं और अल्लाह की इबादत भी की जाती है। हीरेबिदानूर गांव में अगर इस्लाम की कोई निशानी गांव के बीच में एक मस्जिद। इस मस्जिद में भी एक हिंदू पुजारी ही रहता है। वह हिंदू तरीके से ही पूजा-पाठ कराता है। हीरेबिदानूर गांव बेलागावी से 51 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग कुरुबा या फिर वाल्मीकि समुदाय के हैं।
दरगाह को 'फकीरेश्वर स्वामी की मस्जिद' के तौर पर भी जाना जाता
गांव की दरगाह को 'फकीरेश्वर स्वामी की मस्जिद' के तौर पर भी जाना जाता है। यहां गांव के लोग अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं। मन्नत मानते हैं। यहां के एमएलए महंतेश कोउजालागी ने हाल ही में मस्जिद के रेनोवेशन के लिए आठ लाख रुपये की मंजूरी दी है। मस्जिद के पुजारी यलप्पा नायकर ने कहा, 'हम मुहर्रम के मौके पर पास के ही गांव से एक मौलवी को बुलाते हैं। वह एक सप्ताह के लिए यहां रुकते हैं। इस्लामी तरीके से इबादत करते हैं। बाकी दिनों में मस्जिद के अंदर इबादत और देखरेख की जिम्मेदारी मेरी होती है।
दो मुस्लिम भाइयों ने बनायी थी मस्जिद,उनकी मौत के बाद गांव के लोगों ने इबादत करना शुरु किया
उन्होंने बताया कि दो मुस्लिम भाइयों ने यह मस्जिद बनाई थी।उनकी मौत के बाद यहां के लोगों ने मस्जिद में इबादत करना शुरू कर दिया। हर साल मुहर्रम मनाने लगे। गांव के एक टीचर उमेश्वर मारागल ने बताया कि इन पांच दिनों के अंदर गांव में कई तरह की परंपराओं को निभाया जाता है। सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं। इसमें दूर-दूर से आर्टिस्ट पहुंचकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
मुहर्रम के मौके पर जुलूस निकाला जाता है। इस दौरान कर्बल नाच भी होता है। रस्सी पर चलना और आग पर चलने का भी कार्यक्रम होता है। इसमें गांव के बड़े लोगों को पहले इबादत का मौका दिया जाता है। उमेश्वर ने कहा, मैं बचपन से ही दो धर्मों के इस संगम को देखता आया हूं। तब से अब तक इसमें कोई बदलाव नहीं आया है।