इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद केस की सुनवाई पर लगाई रोक, नहीं होगा ASI सर्वे
लाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी में काशी विश्वेश्वर नाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को लेकर चल रहे विवाद मामले में बड़ा फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा एएसआइ को ज्ञानवापी का सर्वेक्षण करने से रोक दिया है। यह आदेश जस्टिस प्रकाश पाडिया ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी की ओर से दाखिल याचिकाओं पर दिया है। मामले में अगली सुनवाई आठ अक्टूबर को होगी।
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी में काशी विश्वेश्वर नाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को लेकर चल रहे विवाद मामले में बड़ा फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा एएसआइ को ज्ञानवापी का सर्वेक्षण करने से रोक दिया है। यह आदेश जस्टिस प्रकाश पाडिया ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी की ओर से दाखिल याचिकाओं पर दिया है। मामले में अगली सुनवाई आठ अक्टूबर को होगी।
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी, ज्ञानवापी स्थित काशी विश्वेश्वर नाथ मंदिर मस्जिद विवाद को लेकर जिला अदालत में 1991 से विचाराधीन सिविल वाद की सुनवाई प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि दीवानी मुकदमे की पोषणीयता को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका पर हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर रखा है।इसकी जानकारी अधीनस्थ अदालत को है तो न्यायिक अनुशासन का पालन करते हुए मंदिरों का सर्वे कराने की अर्जी नहीं तय करनी चाहिए। कोर्ट ने याचिका पर भारत सरकार व अन्य विपक्षियों से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।
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उल्लेखनीय है कि 15 अक्टूबर, 1991 को स्वयंभू विश्वेश्वर नाथ मंदिर की तरफ से वाराणसी के सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के समक्ष मुकदमा दाखिल किया। इसमें प्लाट संख्या 9130 मौजा शहर खास के दो हिस्सों का हवाला दिया गया है। एक पुराना ज्ञानवापी मंदिर, तहखाना, चार मंडप, ज्ञानकूप, मूर्तियां व पेड पर हिंदुओं के आधिपत्य एवं उत्तरी गेट पर नौबतखाना व मस्जिद के दावे पर सवाल उठाये गये हैं।यह भी दावा किया गया है कि इस्लामिक कानून में विवादित स्थल पर मस्जिद नहीं हो सकती। औरंगजेब उसका स्वामी नहीं है। सतयुग से आज तक स्वयंभू ज्योतिलिंग की प्रतिष्ठा है, इसे हटाया नहीं जा सकता। बोर्ड ने आपत्ति की कि उपासना स्थल विशेष उपबंध कानून 1991के अंतर्गत विवादित उपासना स्थल को लेकर सिविल वाद दायर नहीं किया जा सकता। वर्ष 1947 की स्थिति में परिवर्तन नहीं किया जायेगा। सिविल जज ने मुकदमा खारिज कर दिया। इसके खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी मंजूर कर ली गई।
इसी मुकदमे की सुनवाई को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। कोई स्थगनादेश न होने से अधीनस्थ अदालत ने सर्वे कराने की अर्जी की सुनवाई करते हुए पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पूरे क्षेत्र का सर्वे करने का आदेश दिया। इसमें एक बीघा नौ बिस्वा, छह धूर जमीन चिह्नित करने, नक्शा बनाने, मूर्तियों की स्थिति दर्शाने का आदेश दिया गया है। साथ ही तहखाने का निरीक्षण करने के लिए कहा गया है।
औरंगजेब ने किया था मंदिर को नष्ट
कोर्ट में दायर याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रवधान) अधिनियम 1991 के आदेश की अनदेखी का आरोप है। मंदिर पक्ष के मुताबिक 1664 में मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को नष्ट कर अवशेषों पर मस्जिद का निर्माण किया था।