Bihar : Anand Mohan की रिहाई की बाधा दूर, नीतीश कुमार गवर्नमेंट ने बदले नियम
गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया मर्डर केस उम्र कैद की सजा काट रहे एक्स एमपी और बाहुबली लीडर आनंद मोहन की रिहाई की बाधा दूर हो गयी है। नीतीश कुमार की गवर्नमेंट ने आनंद मोहन के जेल से परमानेंट बाहर आने की सबसे बड़ी रुकावट को समाप्त कर दिया गया है। होम डिपार्टमेंट (कारा) ने बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481 (i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया है, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर को शामिल किया गया था। संबंधित नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है।
पटना। गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया मर्डर केस उम्र कैद की सजा काट रहे एक्स एमपी और बाहुबली लीडर आनंद मोहन की रिहाई की बाधा दूर हो गयी है। नीतीश कुमार की गवर्नमेंट ने आनंद मोहन के जेल से परमानेंट बाहर आने की सबसे बड़ी रुकावट को समाप्त कर दिया गया है। होम डिपार्टमेंट (कारा) ने बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481 (i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया है, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर को शामिल किया गया था। संबंधित नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है।
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काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर को विलोपित किया
नोटिफिकेशन में कहा गया कि 'कारा अधिनियम, 1894 ( अधिनियम 9, 1894) की धारा 59 एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 432 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए बिहार के राज्यपाल बिहार कारा हस्तक, 2012 में अधिसूचना निर्गत होने की तिथि से निम्नलिखित संशोधन करते है:-
बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम - 481 (i) (क) का संशोधन:- बिहार कारा हस्तक 2012 नियम- 481 (i) (क) में वर्णित वाक्यांश ''या काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या'' को विलोपित किया जाएगा।' इस अधिसूचना पर बिहार सरकार के अपर मुख्य सचिव के दस्तखत है और यह सभी जरूरी विभागों समेत सभी डीएम को भेजी गई है। इस संशोधन के बाद अब ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिनी जायेगी, बल्कि यह एक साधारण हत्या मानी जायेगी। इस संशोधन के बाद आनंद मोहन के परिहार की प्रक्रिया अब आसान हो जायेगी, क्योंकि सरकारी अफसर की मर्डर के मामले में ही आनंद मोहन को सजा हुई थी।
नीतीश कैबिनेट ने भी दी थी मंजूरी
इससे पहलेराज्य कैबिनेट ने भी काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर में आजीवन कारावास की सजा पाकर राज्य के विभिन्न जेलों मेंबं द कैदियों के संबंध में परिहार नीति पुनर्निर्धारित करने और उसके अनुरूप बिहार कारा हस्तक के संबंधित प्रावधान को विलोपित करनेके प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। कैबिनेट ने पहली बार अपराध करने पर 10 साल तक की सजा प्राप्त बंदियों के कारावास अवधि के दौरान लगातार अच्छा व्यवहार करनेवाले तथा सजा की आधी अवधि व्यतीत कर चुके बंदियों को एकबारगी उपाय के रूप में परिहार का लाभ देते हुए राज्य सरकार द्वारा कारामुक्त करने की मंजूरी भी दी थी।
स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक सोमवार को
गवर्नमेंट के उक्त संशोधन के बाद अब होम सेकरेटरी की अध्यक्षता वाली बिहार राज्य दंडादेश परिहार पर्षद आनंद मोहन को स्थायी रूप से रिहा करने का निर्णय ले सकेगी। जानकार सोर्सेज के अनुसार कानून में संशोधन के बाद सोमवार को स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक बुलायी गयी है। इसमें आनंद मोहन के जेल में काटे गयेस मय और बाकी सजा की समीक्षा की जायेगी। बैठक में लिये गये निर्णय को उच्चस्तरीय समिति को भेजा जायेगा, इसके बाद रिहाई का फैसला होगा।
14 साल की कारावास पूरी कर चुके बंदियों को रिहा करने का अधिकार
बिहार राज्य दंडादेश परिहार पर्षद को रेमिशन (अच्छे व्यवहार पर सजा में दी गयी छूट के आधार पर 20 वर्ष, जबकि 14 साल की कारागार पूरी कर चुके बंदियों को समीक्षा के बाद छोड़ने का अधिकार है। लेकिन, काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर, दहेज के लिए हत्या, 14 वर्ष से कम आयुके किसी बच्चे की मर्डर, अनेक मर्डर, अभियोजन के बाद कारागार में रहते की गयी मर्डर आदि के लिए नियम कड़े हैं। ऐसे अधिकतर मामले परिहार पर्षद से रिजेक्ट हो जाते हैं। ऐसे में काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर का वाक्यांश विलोपित किये जाने से उनकी 14 साल के कारागार अवधि पूरी होनेको देखते हुए रिहाई पर निर्णय लिया जा सकता है। छह सदस्यीय दंडादेश परिहार पर्षद में आइजी जेल सदस्य सचिव, जबकि विधि सचिव सह विधि परामर्शी, हाई कोर्ट द्वारा नॉमिनेटेड जिला एवंसत्र न्यायाधीश, डीजी द्वारा नामित आइजी पुलिस और निदेशक परिविक्षा सेवाएं सदस्य के रूप में नामित होते हैं।
बिहार की रिमिशन (परिहार) की पॉलिसी-1984 में साल 2002 में दो बड़े बदलाव किये गये थे। उस बदलाव के तहत पांच कैटेगरी के कैदी को नहीं छोड़ने का प्रावधान शामिल किया गया था। ये ऐसे कैदी होते हैं, जो एक से अधिक मर्डर, डकैती, बलात्कार, आतंकवादी साजिश रचने और सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी होंगे। उनके छोड़ने का निर्णय सरकार लेगी।
गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की पांच दिसंबर, 1994 को भीड़ ने पहले पीटा और फिर गोली मारकर मर्डर कर दी थी। इस मामले में आरोप लगा था कि इस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। साल 2007 में इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2008 में हाइकोर्ट की तरफ से ही इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया। 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की थी, जो खारिज हो गयी थी। गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की मर्डर मामले में आनंद मोहन अपनी 14 साल की कारावास अवधि पूरी कर चुके हैं।