बिहार: स्टेट जल्द ही मिलेंगे नये जिले, बाढ़ बनेगा जिला, सीएम नीतीश कुमार ने दिए संकेत
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने संकेत दिया कि स्टेट में नये जिले बनाए जाने पर जल्द ही फैसला हो सकता है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि बाढ़ को जिला बनाये जाने की चिर लंबित मांग जल्द ही पूरी होगी। सीएम शनिवार व रविवार को अपने पुराने संसदीय क्षेत्र बाढ़ के विभिन्न इलाकों के भ्रमण के दौरान कहा कि बाढ़ को जिला बनाए जाने की मांग यहां के लोग करते रहे हैं।। कुछ दिनों के बाद इन सब चीजों के बारे में फैसला लेंगे तो बाढ़ को कैसे छोड़ देंगे! इसे लेकर लोगों को सोचने की जरूरत नहीं है।
पटना। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने संकेत दिया कि स्टेट में नये जिले बनाए जाने पर जल्द ही फैसला हो सकता है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि बाढ़ को जिला बनाये जाने की चिर लंबित मांग जल्द ही पूरी होगी। सीएम शनिवार व रविवार को अपने पुराने संसदीय क्षेत्र बाढ़ के विभिन्न इलाकों के भ्रमण के दौरान कहा कि बाढ़ को जिला बनाए जाने की मांग यहां के लोग करते रहे हैं।। कुछ दिनों के बाद इन सब चीजों के बारे में फैसला लेंगे तो बाढ़ को कैसे छोड़ देंगे! इसे लेकर लोगों को सोचने की जरूरत नहीं है।
सड़क मार्ग से भ्रमण कर विभिन्न निर्माणाधीन पथ परियोजनाओं के निरीक्षण के दौरान मीठापुर-महुली एलिवेटेड पथ,एन०एच०-83 (पटना-गया-डोभी सड़क),मसौढ़ी-पितमास-नौबतपुर मार्ग होते हुए दानापुर-बिहटा एलिवेटेड पथ निर्माण कार्य से संबंधित जानकारी ली और अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।(1/2) pic.twitter.com/hSOBmcS3Hc
— Nitish Kumar (@NitishKumar) March 9, 2022
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उल्लेखनीय कि बिहार में और भी कई जगह नये जिले बनाने की मांग रही है। इनमें बगहा व नवगछिा की दावेदारी भी प्रबल है। बगहा व नवगछिया को पहले से ही पुलिस जिले का दर्जा मिला हुआ है। सीएम नीतीश कुमार के द्वारा 157 साल पुराने अनुमंडल बाढ़ को जिला बनाए जाने की संभावना पर सरगर्मी बढ़ गई है। जिला बनाने के सवाल पर पिछले 30 सालों से राजनीतिक रस्साकशी चल रही है। कई बार भरोसा दिया गया लेकिन उसे पूरा नहीं किया गया। इस बार अब सीएम नीतीश कुमार के द्वारा संकेत दिए जाने से जिला बनने की संभावना बढ़ गई है।
बाढ़ को जिला बनाने के लिए पिछले तीन दशक से आंदोलन जारी
बाढ़ को जिला बनाने के लिए पिछले तीन दशक से आंदोलन जारी है। 22 मार्च 91 को क्षेत्रीय जनता की मांग पर बाढ़ को संयुक्त बिहार का 51वां जिले का दर्जा बनाने की नोटिफिकेशन स्टेट गवर्नमेंट द्वारा जारी की गई थी। बाढ़ जिला का उद्घाटन दो अप्रैल 1991 को आनन-फानन में कर दिया गया। नयेजिले के पहले जिला अधिकारी के रूप में पटना के तत्कालीन डीएम अरविंद प्रसाद ने अनुमंडल मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर कामकाज की विधिवत शुरुआत की। इसी बीच राजनीतिक दांवपेच के कारण विरोध शुरू कर दिया गया।
तीन दिनों के भीतर नोटिफिकेशन को राज्य सरकार के द्वारा स्थगित कर दिया गया
बाढ़ जिले के सभी सरकारी ऑफिस को आदेश दिया गया था कि तत्काल प्रभाव से बाढ़ जिले का उल्लेख अपने कामकाज में करें। दूसरी ओर तत्कालीन बाढ़ के एमएलए और राजभाषा मंत्री विजय कृष्ण ने बाढ़ को जिला बनाने के मुद्दे पर हुए विरोधाभास के कारण इस्तीफा दे दिया था। लोकल एमपी नीतीश कुमार और एमएलए विजय कृष्ण के बीच छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण मामला तूल पकड़ लिया। मात्र तीन दिनों के भीतर नोटिफिकेशन को राज्य सरकार के द्वारा स्थगित कर दिया गया। बाढ़ को जिला बनाने के लिए अधिवक्ता संघ के द्वारा भी हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया लेकिन बात नहीं बनी। बाद में राज्य सरकार ने स्थगित अधिसूचना को हमेशा के लिए रद्द कर दिया था।बाढ़ को जिला बनाने का संघर्ष 70 के दशक में शुरू हुआ और 22 मार्च 1991 को संयुक्त बिहार का 51वां जिला बनाने की घोषणा हुई। एक अप्रैल को इसका औपचारिक उद्घाटन तत्कालीन डीएम अरविंद प्रसाद ने किया। लेकिन, दो अप्रैल 1991 को ही यह फैसला रद्द हो गया। तब से ये मांग जारी है।
मगध का प्रवेश द्वार है बाढ़
राजधानी पटना से 65 किलोमीटर दूर पर स्थित बाढ़ अनुमंडल का कुल भौगोलिक रकवा 92818 हेक्टेयर है ।इसके अंतर्गत सात प्रखंड क्रम से मोकामा, घोसवरी, पंडारक, बाढ़, बेलछी, अथमलगोला तथा बख्तियारपुर हैं। 83 पंचायतों तथा 337 गांव को अपने क्षेत्र में समेटे अनुमंडल का ज्यादातर हिस्सा टाल का है। इस अनुमंडल की सीमा नालंदा ,शेखपुरा ,लखीसराय ,बेगूसराय तथा समस्तीपुर को स्पर्श करती है।
1865 में बना बाढ़ अनुमंडल
ब्रिटिश हुक्मरानों के द्वारा सन 1865 में बाढ़ को अनुमंडल का दर्जा दिया गया था। बाढ़ को मगध का प्रवेश द्वार माना जाता है। जिला का दर्जा मिलने से बाढ़ अनुमंडल मे विकास की गति तेज होगी। जिला प्रशासन के आला अधिकारियों के बैठने से प्रशासनिक पकड़ मजबूत होगी। वहीं दूसरी तरफ क्षेत्र के लोगों को जिला के कामों के लिए पटना जाना पड़ता है। इससे समय और पैसे की बचत होगी। टाल क्षेत्र के कृषि कार्यों का दायरा बढ़ेगा। दाल उद्योग सहित कई स्थानीय कारोबार को बढ़ावा मिलेगा।