झारखंड: 10 लाख के इनामी नक्सली सुरेश मुंडा और दो लाख के इनामी लोदरो लोहरा ने किया सरेंडर

10 लाख रुपये का इनामी जोनल कमांडर सुरेश सिंह मुंडा व दो लाख रुपये का इनामी एरिया कमांडर लोदरो लोहरा उर्फ सुभाष मंगलवार को रांची के डोरंडा स्थित जोनल आइजी पंकज कंबोज के ऑफिस में मंगलवार को सरेंडर कर दिया। मौके पर झारखंड पुलिस व सीआरपीएफ के अफसर उपस्थित थे। 

झारखंड: 10 लाख के इनामी नक्सली सुरेश मुंडा और दो लाख के इनामी लोदरो लोहरा ने किया सरेंडर
  • बिटिया की चिट्ठी से भावुक हुआ दस लाख का इनामी नक्सली
    एक करोड़ के इनामी मिसिर बेसरा दस्ते के एक्टिव मेंबर रहा है

रांची। 10 लाख रुपये का इनामी जोनल कमांडर सुरेश सिंह मुंडा व दो लाख रुपये का इनामी एरिया कमांडर लोदरो लोहरा उर्फ सुभाष मंगलवार को रांची के डोरंडा स्थित जोनल आइजी पंकज कंबोज के ऑफिस में मंगलवार को सरेंडर कर दिया। मौके पर झारखंड पुलिस व सीआरपीएफ के अफसर उपस्थित थे। 

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सरेंडर करने वाले दोनों ही नक्सली एक करोड़ रुपये के इनामी केंद्रीय कमेटी सदस्य मिसिर बेसरा उर्फ सागर के मारक दस्ते के सक्रिय सदस्य हैं। इन्हें कोल्हान, पोड़ाहाट के दुरूह-सुदूर जंगली पहाड़ी क्षेत्रों के चप्पे-चप्पे की जानकारी है। सुरेश मुंडा ने अपनी 14 साल की नाबालिग बिटिया की चिट्ठी से भावुक होकर हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्य धारा से जुड़ने का प्लान बनाया था।दस्ते के ही एक पूर्व सदस्य जीवन कंडुलना के आत्मसमर्पण के बाद से ही पुलिस की दबिश में सरेंडर किया। जोनल कमांडर सुरेश मुंडा उर्फ श्रीमति मुंडा मूल रूप से रांची जिले के बुंडू पुलिस स्टेशन एरिया के बारूहातू का रहने वाला है। उसके खिलाफ रांची व पश्चिमी सिंहभूम जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशन में कुल 67 कांड दर्ज हैं। वहीं, दूसरा नक्सली लोदरो लोहरा उर्फ सुभाष खूंटी जिले के अड़की पुलिस स्टेशन एरिया कोचांग टोला लुपुंगाहातू का रहने वाला है। उसके विरुद्ध खूंटी व पश्चिमी सिंहभूम जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशन में 54 कांड दर्ज हैं।

संगठन में नहीं मिलता था उचित मान सम्मान
सरेंडर के बाद दोनों ही नक्सलियों ने स्वीकारा है कि दोनों ने एक साथ 21 दिसंबर 2021 को माओवादी संगठन को छोड़ दिया था। संगठन छोड़ने के पीछे की वजह दोनों ने बताया है कि पार्टी में उचित मान-सम्मान का नहीं मिलता है। हर वक्त पुलिस का भय है। उसके सक्रिय साथी जीवन कंडुलना ने फरवरी-2021 में सरेंडर किया था।

आईजी ऑपरेशन अमोल वी. होमकर ने मौके पर कहा कि डीजीपी के निर्देशन में झारखंड पुलिस, सीआरपीएफ, झारखंड जगुआर व अन्य केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों के साथ मिलकर नक्सली संगठनों के खिलाफ चौतरफा अभियान चला रही है। इसमें पुलिस को लगातार सफलतायें हाथ लग रही हैं। इसका नतीजा यह है कि हाल के महीनों में न सिर्फ भारी संख्या में बड़े व इनामी नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई, बल्कि कई बड़े नक्सलियों ने पुलिस के सामने हथियार भी डाला और आत्मसमर्पण किया। सीआरपीएफ के आइजी झारखंड राजीव सिंह ने भी भटके हुए नक्सलियों से अपील की है कि वे भी हिंसा का रास्ता छोड़कर सरकार की मुख्य धारा से जुड़ें। जो नक्सली लड़ाई के उद्देश्य से पुलिस के सामने आएंगे, उन्हें उसी भाषा में जवाब भी मिलेगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि वे सरकार के इस आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति का लाभ उठाएं।

जेल में रहने के दौरान की मैट्रिक तक की पढ़ाई

नक्सली सुरेश मुंडा नक्सल कांड में वर्ष 2004 से 2010 तक जेल गया था। जेल में रहने के दौरान ही उसने मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। उसका खानदानी पेशा जड़ी-बूटियों से इलाज वाला था। उसके पूर्वज करते थे। सुरेश मुंडा ने अपने पेशे को खत्म नहीं होने दी। उसे भी जड़ी-बूटियों से इलाज पर बेहतर पकड़ है।

14 साल की बिटिया सरेंडर के लिए लिखती रहती थी चिट्ठी

एक करोड़ रुपये के इनामी मिसिर बेसरा का सबसे करीबी सुरेश मुंडा ने बताया कि उसकी 14 साल की बेटी उसे जंगल में रहने के दौरान लगातार चिट्ठी लिखती थी। वह प्रत्येक पत्र में लिखती थी कि वह सरेंडर कर दे। वह अपने पिता के साथ रहना चाहती है। सरेंडर के मौके पर बिटिया भी पहुंची थी। उसने बताया कि जन्म के बाद उसने अपने पिता को नहीं देखा था। एक-दो बार केवल फोन पर बात हुई थी। बचपन में ही मां की मौत के बाद से ही वह अपने मौसी के पास रहती है। रांची के ही एक स्कूल में नौवी क्लास में पढ़ती है। उसे अपनी मां का चेहरा भी याद नहीं है। आइजी रांची के कार्यालय में जब उसने अपने पिता को देखा तो वह एकटक उसे देखती रही। अपने पिता को देखकर उसकी आंखें डबडबा गईं। उसने बताया कि वह बड़ी होकर पुलिस की नौकरी में जाना चाहती है, ताकि समाज के भटके हुए ऐसे लोगों को वह मुख्यधारा से जोड़ सके।