Jharkhand: दलितों को साधने के लिए अमर बाउरी को आगे कर BJP ने खेला बड़ा दांव
बीजेपी लीडरशीप ने बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद खाली हुए नेता विधायक दल के पद पर अमर बाउरी का मनोनयन कर एक साथ कई राजनीतिक साधे लिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा से मुकाबले के लिए बीजेपी का फोकस बड़े जातीय समूहों को साधने पर है।
- 2020 की विधानसभा चुनाव में आदिवासी सुरक्षित सीटों पर बुरी तरह पिछड़ गई थी बीजेपी
- अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित नौ में से छह सीटों पर मिली थी कामयाबी
रांची। बीजेपी लीडरशीप ने बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद खाली हुए नेता विधायक दल के पद पर अमर बाउरी का मनोनयन कर एक साथ कई राजनीतिक साधे लिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा से मुकाबले के लिए बीजेपी का फोकस बड़े जातीय समूहों को साधने पर है।
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वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी स्टेट 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों में से मात्र दो सीटें ही जीत पायी थी, लेकिन अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित नौ सीटों में से छह सीटों पर पार्टी को सफलता मिली।झारखंड विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नौ सीटों में देवघर, जमुआ, चंदनक्यारी, सिमरिया, चतरा, छतरपुर, लातेहार, कांके और जुगसलाई है। इन आरक्षित सीटों में से भाजपा ने छह पर जीत दर्ज की थी। देवघर, जमुआ, चंदनक्यारी, सिमरिया, छतरपुर और कांके पर बीजेपी कैंडिडेट जीते। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लातेहार और जुगसलाई सीट पर कब्जा किया। आरजेडी को चतरा में जीत मिली। स्टेट की सत्ता पाने की दौड़ में पिछड़ी बीजेपी को चुनाव में अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने साथ दिया था।
दलितों को गोलबंद करने की कोशिश में बीजेपी
अमर बाउरी को आगे कर बीजेपी एससी के लिए रिजर्व सीटों के साथ-साथ पूरे स्टेट में दलितों को गोलबंद करने की कोशिश करेगी।अमर बाउरी को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी स्वाभाविक तौर पर मिल जायेगा, जबकि बाबूलाल मरांडी को विधानसभा में बतौर नेता प्रतिपक्ष मान्यता मिलने में तकनीकी अड़चनें थीं।बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी हेमंत सोरेन की तरह ही संताल आदिवासी समुदाय से हैं। उन्हें आगे करने के पीछे का उद्देश्य आदिवासी सुरक्षित सीटों पर फिर से बीजेपी को स्टेट की सत्ता में वापसी करना है। बीजेपी इसके लिए जोर-आजमाइश भी कर रहे हैं।
जयप्रकाश भाई पटेल को सचेतक बना कुड़मी नेतृत्व को भी किया आगे
बीजीपी लीडरशीप द्वारा विधानसभा में विधायक दल के सचेतक पद के लिए मांडू एमएलए जयप्रकाश भाई पटेल को सचेतक बनाने का एलान करने के भी बड़े राजनीतिक मायने हैं। जयप्रकाश पटेल राज्य के प्रभावी कुड़मी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वे बीजेपी विधायक दल के नेता पद की होड़ में आगे चल रहे थे। एमएलए की ओर से इस संबंध में अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने के कारण आलाकमान ने अंतिम समय में मन बदल लिया था। झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहे जयप्रकाश भाई पटेल के पिता टेकलाल महतो की कुड़मी समुदाय पर काफी पकड़ थी। उन्हें सचेतक बनाकर बीजेपी ने इस समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश की है।
बीजेपी के तीन प्रमुख पदों पर दूसरे दल से आये लीडर को जिम्मेवारी
यह भी संयोग है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राजनीतिक सफर इसी पार्टी से आरंभ किया, लेकिन 14 वर्ष तक अलग रहकर अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का संचालन किया। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने अपने दल का भाजपा में विलय कर दिया। अमर बाउरी ने पहला चुनाव वर्ष 2014 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर जीता। जीत हासिल करने के बाद वे बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी के नये सचेतक जयप्रकाश भाई पटेल ने भी राजनीतिक सफर झारखंड मुक्ति मोर्चा से आरंभ किया। हेमंत सोरेन जब पहली बार राज्य के सीएम बने तो वे उनकी कैबिनेट में वे शामिल थे। वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव उन्होंने बीजेपी के टिकट पर लड़कर जीत हासिल की।