झारखंड: सीएम के आदेश के बाद भी ACB को नहीं दिया था मनरेगा घोटाला के जांच का जिम्मा
झारखंड कैडर की 2000 बैच की आईएएस पूजा सिंघल की मनरेगा घोटाले में संलिप्तता पर ईडी कई माह से जांच कर रहा था। ईडी ने अपनी जांच में पूजा सिंघल की भूमिका को सही पाया था। जांच में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये थे। वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और डिप्टी सीएम सुदेश महतो ने खूंटी में मनरेगा घोटाले की जांच एसीबी से कराने के आदेश दिये थे, लेकिन यह आदेश कभी एसीबी तक पहुंचा ही नहीं।
रांची। झारखंड कैडर की 2000 बैच की आईएएस पूजा सिंघल की मनरेगा घोटाले में संलिप्तता पर ईडी कई माह से जांच कर रहा था। ईडी ने अपनी जांच में पूजा सिंघल की भूमिका को सही पाया था। जांच में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये थे। वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और डिप्टी सीएम सुदेश महतो ने खूंटी में मनरेगा घोटाले की जांच एसीबी से कराने के आदेश दिये थे, लेकिन यह आदेश कभी एसीबी तक पहुंचा ही नहीं।
हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट ने खूंटी की तत्कालीन डीसी पूजा सिंघल से जुड़े मामले में ईडी और एसीबी को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। एक तरफ जहां ईडी ने कोर्ट को बताया था कि पूरे मामले में पूजा सिंघल की भूमिका की जांच की जा रही है, वहीं दूसरी ओर एसीबी के डीएसपी सादिक अनवर रिजवी ने हलफनामे में बताया था कि खूंटी में मनरेगा में हुए घोटाले से जुड़ा कोई केस निगरानी विभाग के द्वारा एसीबी जांच के लिए आदेशित नहीं किया गया, ऐसे में एसीबी खूंटी मनरेगा घोटाले से जुड़े किसी केस की जांच नहीं कर रही है।
मनरेगा घोटाले को लेकर 18 सितंबर 2010 को खूंटी पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ था मामला
उल्लेखनीय कि मनरेगा घोटाले को लेकर 18 सितंबर 2010 को 10.16 करोड़ की अनियमितता का मामला खूंटी पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ था। इस केस की जांच का जिम्मा एसीबी को नहीं मिला था। वहीं अनियमितता के दूसरे मामलों समेत मनरेगा केस के भी आरोपी रहे रामविनोद सिन्हा के खिलाफ दर्ज केस एसीबी में ट्रांसफर हुए थे, जिनकी जांच एसीबी ने की थी।एसीबी ने हलफनामे में बताया है कि एसीबी के समक्ष केस संख्या 99/10 और 100/10 आये थे। ये दोनों मामले मनरेगा घोटाले से जुड़े नहीं थे। केस संख्या 99/10 में वाटरवेज डिविजन खूंटी के जूनियर इंजीनियर रामविनोद प्रसाद सिन्हा और असिस्टेंट इंजीनियर राजेंद्र कुमार जैन को आरोपी बनाया गया था। दूसरे केस में भी ये दोनों ही आरोपी थे। निगरानी विभाग के आदेश पर इन दोनों मामलों की जांच एसीबी को दी गई थी। इसके बाद एसीबी ने रिवेन्यू कोर्ट व रिवेन्यू तहसील के निर्माण को लेकर पीएस केस 6/11 और पुलिस बिल्डिंग के निर्माण से जुड़े दूसरे केस में पीएस केस 7/11 दर्ज किया। इन दोनों मामलों में मनरेगा स्कीम के पैसों का इस्तेमाल नहीं हुआ था। ऐसे में एसीबी ने कोर्ट को बताया था कि मनरेगा घोटाले से जुड़े केस में एजेंसी की कोई भूमिका नहीं है।
ईडी ने जांच में पाया
ईडी ने मनरेगा घोटाले की जांच में पाया था कि खूंटी में जूनियर इंजीनियर के पद पर रहते हुए रामविनोद सिन्हा ने कट मनी का पांच प्रतिशत अपने सीनियर अफसरों को, जबकि पांच प्रतिशत डीसी ऑफिस को कमीशन के तौर पर दिये थे। बदले में उसे तत्कालीन डीसी का संरक्षण भी मिला था। रामविनोद सिन्हा ने पूर्व में ईडी के समक्ष कबूलाथा कि प्रत्येक योजना के आधार पर उसमें शामिल प्रशासनिक अधिकारियों को पैसे दिए थे। पूजा सिंघल फरवरी 2009 से जुलाई 2010 तक मनरेगा की जिला को-ऑर्डिनेटर सह डीसी थीं। हालांकि विभागीय जांच में भी पूजा सिंघल को झारखंड सरकार के अधिकारियों ने क्लीनचिट दे दी थी।
जिन मामलों में पूजा सिंघल पर ईडी की टेढ़ी नजर
चतरा में मनरेगा घोटाले में भी ईडी पूजा सिंघल की भूमिका की जांच कर रही है। अगस्त 2007 से जुलाई 2008 तक पूजा सिंघल चतरा की डीसी थीं। आरोप है कि डीसी रहते हुए दो एनजीओ को मनरेगा के तहत छह करोड़ का काम आवंटित किया गया था।इस मामले में दोनों एनजीओ ने काम पूरा नहीं किया, वहीं लाभुकों को भी राशि का आवंटन नहीं किया गया था। इस मामले में भी पूजा सिंघल को विभागीय जांच में क्लीनचिट मिल गयी थी।पलामू में डीसी रहते हुए एक निजी कंपनी की माइंस को 83 एकड़ वन भूमि के आवंटन में भी पूजा सिंघल की भूमिका की जांच हो रही है। इस मामले मे सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका पेंडिंग है। पूरा मामला 2003 का है। तत्कालीन कमिश्नर ने इस मामले में गड़बड़ी पकड़ी थी।