रांची। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के भाई, दुमका के विधायक बसंत सोरेन के खिलाफ चल रहे मामले में भी चुनाव आयोग ने गवर्नर को मंतव्य प्रेषित कर दिया है। हालांकि राजभवन ने इसकी ऑफिसियल पुष्टि नहीं की है। आयोग के सोर्सेज के अनुसार बसंत सोरेन के खिलाफ आरोपों को लेकर मंतव्य भेजते हुए फैसला गवर्नर पर छोड़ा गया है।झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के धुर विरोधी व गोड्डा से बीजेपी एमपी डॉ निशिकांत दूबे ने शुक्रवार की शाम बड़ा ट्वीटर बम फोड़ा है। निशिकांत ने ट्वीट में लिखा है कि बसंत भईया भी गयो।
निशिकांत के ट्वीट से कयास लगाये जा रहे हैं कि सीएम के अनुज बसंत सोरेन की सदस्यता भी चुनाव आयोग ने समाप्त कर दी है। कभी भी आयोग का आदेश जारी हो सकता है। उल्लेखनी है कि बीजेपी एमपी विगत कई माह से ईडी की कार्रवाई के साथ-साथ सीएम हेमंत व उनके अनुज बसंत के खिलाफ चुनाव आयोग में चल रही सुनवाई को लेकर इशारों में ही ट्वीट करते रहते हैं। इससे सीएम एंड कंपनी असहज हो जाते हैं।
बताया जा रहा है कि विधि विशेषज्ञों से सलाह लेने के बाद गवर्नर इस संबंध में अवगत करायेंगे। फिलहाल हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग के मंतव्य से भी राजभवन ने ऑफिसियल तौर पर अवगत नहीं कराया है। हेमंत की सदस्यता को लेकर भी असमंजस बना हुआ है। चुनाव आयोग ने बीते 25 अगस्त को ही हेमंत सोरेन के माइंस लीज मामले में भाजपा की शिकायतों के आधार पर अपने मंतव्य से राजभवन को अवगत कराया था। राजभवन ने यूपीए के डेलीगेशन के समक्ष स्वीकार किया है कि उन्हें चुनाव आयोग का पत्र मिला है। जल्द ही वे इसे लेकर वस्तुस्थिति स्पष्ट करेंगे।
मामला गवर्नर के अधिकार क्षेत्र का नहीं
इस मामले की चुनाव आयोग में सुनवाई के दौरान दुमका के एमएलए बसंत सोरेन की तरफ से उनके अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि यह मामला गवर्नर के अधिकार क्षेत्र का नहीं है। इसकी अनदेखी करते हुए राजभवन ने संविधान के अनुच्छेद 191 (1) के तहत चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा।बसंत सोरेन ने आयोग के समक्ष दिये गये शपथपत्र में तथ्यों को छिपाया है तो हाई कोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल कर उनकी सदस्यता को चुनौती दी जा सकती है। बीजेपी के एडवोकेट ने इसपर दलील दी कि बसंत सोरेन जिस माइनिंग कंपनी से जुड़े हैं, वह स्टेट में माइनिंग करती है। बसंत सोरेन का इससे जुड़ाव अफसरों को प्रभावित करता है। यह कंफ्लिक्ट आफ इंट्रेस्ट का मामला है। ऐसे में उनकी विधानसभा की सदस्यता रद की जाए। राजभवन ने बीजेपी के कंपलेन पर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था। इसके बाद आयोग द्वारा बसंत सोरेन को नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई आरंभ की गई।
माइनिंग कंपनी में पार्टनर होने मामला शपथ पत्र में छिपाया
दुमका एमएलए बसंत सोरेन पर एक माइनिंग कंपनी में पार्टनर होने का आरोप है। आरोप है कि उन्होंने आयोग के शपथ पत्र में छिपाया। बसंत इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग को पहले ही अपना जवाब भेज चुके हैं। उन्होंने अपने जवाब में कहा है कि आयोग से उन्होंने कोई तथ्य नहीं छिपाया है। चुनाव के दौरान सौंपे गए शपथ पत्र में भी इसका उल्लेख है।बीजेपी ने चुनाव आयोग में एक शिकायत दर्ज कराई है कि दुमका एमएलए बसंत सोरेन ने माइनिंग कंपनी में पार्टनर होने की जानकारी चुनावी शपथ पत्र में नहीं दी है। ऐसा करना जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है।बीजेपी ने चुनाव आयोग से बसंत सोरेन को अयोग्य घोषित करने की मांग की है। चुनाव आयोग लंबे समय से इस मामले की सुनवाई कर रहा है। बसंत सोरेन ने चुनाव आयोग को इस संबंध में अपना जवाब भी भेज दिया है। चुनाव आयोग इस मामले में 29 अगस्त को सुनवाई पूरी चुका है।
जनप्रतिनिधित्व कानून की दो धाराएं हैं। पहली धारा में यह कहती है कि दोष साबित होने पर पांच साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई जा सकती है। दूसरी धारा यह कहती है कि केवल सदस्यता रद हो सकती है। इन दोनों धाराओं में से कौन सी धारा के तहत फैसला सुनाया जाएगा, यह तय करना चुनाव आयोग का काम है। अगर बसंत सोरेन की सदस्यता खतरे में पड़ती है तो झामुमो के लिए यह बड़ा झटका होगा।हेमंत सोरेन के लाभ के पद के मुद्दे पर चुनाव आयोग पहले ही झारखंड राजभवन को अपनी सिफारिशें भेज चुका है। किसी भी समय निर्णय की उम्मीद है. इससे पहले, चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए के तहत बसंत सोरेन को नोटिस जारी किया था, जो एक सरकारी अनुबंध के लिए एक विधायक की अयोग्यता से संबंधित है।
बसंत पर यह है आरोप
बीजेपी की ओर से आरोप लगाया गया है कि बसंत सोरेन ने अपने चुनावी हलफनामे में ये जानकारी छिपाई कि वो एक माइनिंग कंपनी में डायरेक्टर हैं। बीजेपी ने दावा किया कि सोरेन डायरेक्टर के पद पर हैं, जो लाभ के पद के अंतर्गत आता है। चुनाव आयोग की तरफ से नोटिस में बसंत सोरेन को यह बताने के लिए कहा गया था कि क्या यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए के तहत झारखंड विधानसभा से उनकी सदस्यता समाप्त करने का एक उपयुक्त मामला है क्योंकि वो कथित रूप से निजी व्यवसाय में शामिल हैं। बीजेपी ने दावा किया कि संविधान का अनुच्छेद 192 एक निर्वाचित प्रतिनिधि को व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल होने से रोकता है। ग्रैंड्स माइनिंग वर्क्स फरवरी 2015 में स्थापित एक लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप कंपनी है। इसमें बसंत डायरेक्टर हैं।