ललन को JDU का नेशनल प्रसिडेंट बना एक तीर से साधे कई निशाने, समता पार्टी के जमाने से नीतीश कुमार के साथ
राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का नेशनल प्रसिडेंट बनाकर नीतीश कुमार ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। जेडीयू ने संकेत दिया है कि वह केवल अति पिछड़े या पिछड़े वर्ग की पार्टी नहीं। समय के हिसाब से सशक्त सवर्ण नेतृत्व से भी उसे गुरेज नहीं है।
पटना। राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का नेशनल प्रसिडेंट बनाकर नीतीश कुमार ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। जेडीयू ने संकेत दिया है कि वह केवल अति पिछड़े या पिछड़े वर्ग की पार्टी नहीं। समय के हिसाब से सशक्त सवर्ण नेतृत्व से भी उसे गुरेज नहीं है। ललन सिंह बिहार जेडीयू के प्रसिडेंट भी रह चुके हैं।
नीतीश कुमार के सर्वाधिक विश्वासपात्र लोगों में शुमार ललन की विशेषता रही है कि वह पार्टी मैनेजमेंट में महारत रखते हैं। इस वक्त जब जाति आधारित जनगणना को लेकर जेडीयू के लोग मुखर हैं तो ऐसे समय में सवर्ण को पार्टी का नेशनल प्रसिडेंट बनाया जाने के भी विशेष मायने हैं। साफ संदेश दिया गया कि जेडीयू केवल अति पिछड़े-पिछड़े या फिर दलित-महादलित पर केंद्रित दल नहीं है।पहली बार सवर्ण समाज के किसी व्यक्ति को पहली जेडीयू का नेशनल बनाया गया है। सेंट्रल कैबिनेट के विस्तार में ललन सिंह के भी मिनिस्टर बनाये जाने की चर्चा थी। लेकिन केवल आरसीपी सिंह को ही मोदी कैबिनेट में जगह मिली। इसके बाद राजनीतिक गलियारे तरह-तरह की चर्चा चल रही थी। ललन सिंह को नेशनल प्रसिडेंट बनाकर यह भी स्थापित किया गया कि जेडीयू में उनका महत्व बहुत ही खास है। बिहार विधानसभा चुनाव के समय सीटों के तालमेल के समय भी उनकी सक्रियता विशेष अधिकार के साथ थी।
लोजपा में टूट व एक एमएलए को जेडीयू में लाने में अहम रोल
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद एलजेपी के एकमात्र एमएलए को जेडीयू में शामिल कराने में ललन सिंह का मेन रोल था। कहा जा रहा है कि एलजेपी में पांच सांसदों को चिराग के खिलाफ बगावत करा टूट में भी ललन सिंह भूमिका रही है।
समता पार्टी के जमाने से नीतीश कुमार के साथ
सीएम नीतीश कुमार के भरोसेमंद ललन सिंह समता पार्टी के जमाने से उनके साथ हैं। वह जेडीयू में इसके स्थापना काल से जुड़े रहे हैं। उनको लम्बा सांगठनिक अनुभव भी है। बिहार की सत्ता में पिछले 16 साल से काबिज जेडीयूयू के बिजेन्द्र प्रसाद यादव के बाद वे दूसरे प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। दिसम्बर 2005 से फरवरी 2010 तक करीब सवा चार साल प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने में काम किया है।
चारा घोटाले का मामला कोर्ट तक पहुंचाने में अहम भूमिका
बिहार में लालू प्रसाद के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ने में ललन सिंह भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। उन्होंने लालू प्रसाद के खिलाफ चारा घोटाले का मामला कोर्ट तक पहुंचाने में भूमिका निभाई।
नीतीश कुमार के क्लासमेट रहे हैं ललन सिंह
जेडीयू के नये नेशनल प्रसिडेंट राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का जन्म 24 जनवरी 1955 में हुआ था। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद के साथ ललन सिंह ने भी जेपी आंदोलन से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। सीएम नीतीश कुमार और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह क्लासमेट भी रह चुके हैं।ललन सिंह ने टीएनबी कालेज, भागलपुर यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में ग्रेजुएशन था। ललन सिंह कालेज छात्र संघ के महासचिव रह चुके थे। उन्होंने जेपी आंदोलन में भी भाग लिया था। बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार की एंट्री के बाद से ही ललन सिंह उनके प्रमुख रणनीतिकार बने रहे हैं। नीतीश कुमार और ललन सिंह की करीबी को लेकर कई तरह की बातें भी हुईं लेकिन दोनो के बीच बेहतर तालमेल बरकरार रहा। नीतीश कुमार के साथ मजबूत संबंधों के बल पर ही जेडीयू में ललन सिंह, नीतीश कुमार के बाद सबसे ताकतवर नेता बने। 2019 में मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत तीसरी बार संसद पहुंचने वाले जेडीयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह 17वीं लोकसभा में पार्टी के लीडर बनाये गये।
जब ललन सिंह व नीतीश कुमार में हुआ मनमुटाव
बताया जाता है कि ललन सिंह के ऊपर वर्ष 2009 में पार्टी फंड के गलत इस्तेमाल का आरोप लगा था। इसके बाद ललन सिंह ने नीतीश कुमार से दूरी बनाते हुए पार्टी तक छोड़ दी थी। इसके बाद 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार के दौरान नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी करते रहे। हालांकि कुछ समय बाद नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच सुलह हो गई। नीतीश कुमार ने उन्हें एमएलसी बनवाकर मिनिस्टर बनवाया था।
चारा घोटाला मामले में लालू यादव के खिलाफ कोर्ट पहुंचे
चारा घोटाला मामले में लालू यादव के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका डालने वालों में ललन सिंह का नाम भी शामिल था। ललन सिंह सार्वजनिक सभा में भी कहते थे कि उन्हे पता है कि लालू यादव ने चारा घोटाले ता पैसा कहां छिपाकर रखा है। इसके बाद लालू यादव की वाइफ एक्स सीएम राबड़ी देवी ने भी ललन सिंह और नीतीश कुमार की दोस्ती पर विवादित बयान दिया था।
नीतीश के घर वापसी में ललन सिंह की बड़ी भूमिका
बिहार में वर्ष 2015 में जेडीयू-आरजेडी की सरकार बनने के बाद से ही ललन सिंह असहज महसूस कर रहे थे। लेकिन बीजेपी नेता और एक्स डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार के घोटाले की पोल खोलनी शुरू कि तो परिस्थितियां बदलनी लगी। करप्शन पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने वाले नीतीश कुमार के लिए जवाब देना मुश्किल होने लगा। इसी दौरान तत्कालीन सेंट्रल फाइनेंस मिनिस्टर अरूण जेटली से मिलकर ललन सिंह ने आरजेडी- जेडीयू गठबंधन को खत्म करवा कर नीतीश कुमार से इस्तीफा दिलवाया। फिर 2017 में जेडीयू को वापस एनडीए में शामिल कराकर बिहार में एनडीए की सरकार और नीतीश कुमार को छठी बार सीएम बनवाया था।
सरकार से लेकर संगठन तक में अहम भूमिका निभा चुके हैं ललन सिंह
जेडीयू के नेशनल प्रसिडेंट राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह पहले बिहार स्टेट के भी प्रसिडेंटरहे हैं। राज्यसभा व लोकसभा सांसद रहे ललन सिंह विधान परिषद भी रह चुके ललन सिंह बिहार सरकार में पहली बार मांझी कैबिनेट में पथ निर्माण मंत्री बने। इसके बाद 2015 में जल संसाधन मंत्री बने। मुंगेर लोकसभा से ललन सिंह तीसरी बार एमपी बने हैं।
स्टूडेंट से ही राजनीति में सक्रिय ललन सिंह जेपी आंदोलन में बढ़-चढ़कर शामिल हुए थे। राजनीति में मुखर वक्ता के तौर पर पहचान बनाने वाले ललन सिंह अप्रैल 2000 में राज्यसभा सांसद बने। जदयू के दूसरे प्रदेश अध्यक्ष बने। वे दिसम्बर 2005 से लेकर फरवरी 2010 तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे। जबकि 2004 व 2009 के बाद 2019 में तीसरी बार मुंगेर से लोकसभा सांसद बने। 2014 में वे बिहार विधान परिषद के लिए भी मनोनीत हुए। 2019 में सांसद बनने से पहले तक वे एमएलसी थे। बिहार में जीतन राम मांझी के कैबिनेट में 2014 में पहली बार पथ निर्माण मंत्री बने। इसके बाद 2015 में महागठबंधन सरकार में भी वे जल संसाधन मंत्री बने।
ललन - नीतीश के निजी व सियासी रिश्ते हैं विश्वसनीय, सोशल इंजीनियरिंग पर भरोसा
नीतीश कुमार के करीबी होने के साथ-साथ मुंगेर से सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को चुनाव प्रबंधन में भी महारत हासिल है। ललन सिंह को पार्टी का नेशनल प्रसिडेंट बनाकर नीतीश कुमार ने पार्टी को 'लव-कुश' के दायरे से बढ़ाकर अब सोशल इंजीनियरिंग पर भरोसा जताया। जातीय समीकरण में जेडीयू में सवर्ण चेहरे के तौर पर ललन सिंह देखे जायेंगे। नीतीश कुमार के ऊपर 'लव-कुश' को लगातार बढ़ावा देने का आरोप भी खत्म हो जायेंगा। आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं। जबकि जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति से हैं। ऐसे में कुल मिलाकर जेडीयू में लव-कुश का ही बोलबाला था। अब ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद सवर्ण (भूमिहार ब्राह्मण) की एंट्री हुई है।
जेडीयू के 18 साल के इतिहास में पहला सवर्ण अध्यक्ष
जेडीयू के 18 साल के इतिहास में ललन सिंह पहले सवर्ण प्रसिडेंट हैं। इससे पहले तीनों अध्यक्ष ओबीसी से थे। 30 अक्टूबर 2003 को जेडीयू की स्थापना हुई थी। जेडीयू के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव थे। उसके बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार जेडीयू के अध्यक्ष बने। नीतीश कुमार के बाद आरसीपी सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। अब यह जिम्मेवारी ललन सिंह को सौंपी गई है।
जेडीयू को कमजोर करने वाले चिराग पासवान से लिया बदला
नीतीश कुमार के गुणा-गणित के अलावा ललन की अपनी कई खूबियां जो उनको खास बनाती है। चिराग पासवान की वजह से नीतीश कुमार को विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। ललन सिंह ने उसका चुन-चुन कर बदला लिया। पहले एलजेपी के इकलौते एमएलए को पार्टी में शामिल कराया। इसके बाद 'मिशन दिल्ली' की शुरुआत की। चिराग के चाचा और पार्टी समेत पांच सांसदों को तोड़ दिया। एलजेपी के 18 जिलाध्यक्ष और पांच प्रदेश महासचिवों सहित 208 नेताओं को 18 फरवरी को जेडीयू में शामिल कराया।
लालू यादव के धुर विरोधी ललन
ललन सिंह लालू यादव के धुर विरोधी हैं। लालू यादव को चारा घोटाले में जेल पहुंचाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। केस की जल्दी सुनवाई के लिए ललन सिंह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गये थे। कांग्रेस और आरजेडी से नेताओं को तोड़ने में भी ललन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। लालू प्रसाद से संघर्ष के साथ ही ललन सिंह सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से भी फिट हैं। सवर्ण होने की वजह से एक खास जाति को बढ़ावा देने के आरोप से भी नीतीश कुमार बच जायेंगे।
नीतीश कुमार से निजी रिश्ते भी बेहतर
नीतीश कुमार, लालू यादव, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद के साथ ललन सिंह ने भी जेपी आंदोलन से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। ललन सिंह ने टीएनबी कॉलेज, भागलपुर ग्रेजुएशन किया। कॉलेज छात्र संघ के महासचिव भी रहे। जेपी आंदोलन में भी भाग लिया था। बिहार की सियासत में नीतीश कुमार की एंट्री के बाद से ही ललन सिंह उनके प्रमुख रणनीतिकार बने रहे। नीतीश कुमार और ललन सिंह की करीबी को लेकर कई तरह की बातें भी हुईं लेकिन दोनों के बीच बेहतर तालमेल बरकरार रहा। नीतीश कुमार के साथ मजबूत संबंधों के बल पर ही जेडीयू में ललन सिंह, नीतीश कुमार के बाद सबसे ताकतवर नेता बने। राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह की राजनीति की शुरुआत जननायक कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में हुई। कर्पूरी के जीवन काल में ही वे नीतीश कुमार के करीब आए। 40 साल से अधिक समय से यह करीबी कायम है। बीच के एकाध वर्ष को छोड़ दें तो दोनों ने हमेशा एक दूसरे के संकेतों को समझा।
नीतीश कुमार की पहली सरकार वर्ष 2000 में बहुमत के लिए एमएलए की अपेक्षित संख्या नहीं जुटा पा रही थी, ललन सिंह ने सरकार बचाने की हरसंभव कोशिश की। सरकार नहीं बच पाई। लेकिन, ललन सिंह की कोशिशें कमजोर नहीं हुईं। पशुपालन घोटाला, जो अंतत: लालू प्रसाद की अपराजेय समझी जानेवाली सत्ता की विदाई का कारण बना। विरोधी भी मानते हैं कि लक्ष्य तय करने के बाद उसे हासिल करने के लिए ललन सिंह कठोर श्रम करते हैं।