इंडिया में कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर भी आयेगी, साइंटिस्ट्स ने किया अलर्ट
ट्रल गवर्नमेंट के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने कहा है कि देश में कोरोना की तीसरी लहर भी आयेगी। लेकिन यह नहीं पता कि यह कब आयेगी। लेकिन हमें इसके लिए तैयार रहना होगा कोरोना की दूसरी लहर इतनी भीषण और लंबी होगी, इसका अनुमान नहीं लगाया गया था।
नई दिल्ली। सेंट्रल गवर्नमेंट के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने कहा है कि देश में कोरोना की तीसरी लहर भी आयेगी। लेकिन यह नहीं पता कि यह कब आयेगी। लेकिन हमें इसके लिए तैयार रहना होगा कोरोना की दूसरी लहर इतनी भीषण और लंबी होगी, इसका अनुमान नहीं लगाया गया था।
के विजय राघवन ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वायरस के अधिक मात्रा में सर्कुलेशन हो रहा है। तीसरा चरण आना ही है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कब आयेगा। हमें नई लहरों के लिए तैयारी करनी चाहिए। वायरस के स्ट्रेन पहले स्ट्रेन की तरह की फैल रहे हैं। इनमें नई तरह के संक्रमण का गुण नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा वेरिएंट्स के खिलाफ वैक्सीन प्रभावी हैं। देश और वर्ल्ड में नये वेरिएंट्स आयेंगे। एक लहर के खत्म होने के बाद सावधानी में कमी आने से वायरस को फिर से फैलने का मौका मिलता है।
कोरोना से मौतों का आंकड़ा हो सकता है दोगुना
बड़े संकट की वजह बना कोरोना वायरस आने वाले दिनों में और कहर बरपा सकता है। आने वाले कुछ सप्ताह में कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतें दोगुनी हो सकती हैं। कुछ रिसर्च मॉडल्स में दावा किया गया है कि फिलहाल कोरोना से जितनी मौतें हो रही हैं, उससे दोगुना आंकड़ा अगले कुछ सप्ताह में हो सकता है। बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के मुताबिक यदि कोरोना से मरने वालों की यही रफ्तार रही तो 11 जून तक मौतों का आंकड़ा 404,000 के पार पहुंच सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्थित इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन के मुताबिक जुलाई के अंत तक कोरोना से मरने वालों की संख्या 10 लाख के पार पहुंच सकती है।
घनी आबादी वाले देशों में कोरोना संक्रमण के मामलों को लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी करना आसान नहीं
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार जैसे घनी आबादी वाले देशों में कोरोना संक्रमण के मामलों को लेकर किसी भी तरह की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है। लेकिन ज्यादातर संस्थानों ने अपनी स्टडी में कहा है कि भारत में टेस्टिंग और सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है। यही नहीं यदि ज्यादा अनुमानों को खारिज भी कर दें, तब भी आने वाले कुछ महीनों में इंडिया कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या के मामले में पहला देश हो सकता है। फिलहाल 578,000 लोगों की मौत के साथ अमेरिका पहले नंबर पर है।
भारत के लिए अगले चार से छहसप्ताह बेहद कठिन
ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ हेल्थ के डीन अशीष झा ने कहा कि भारत के लिए अगले चार से छह सप्ताह बेहद कठिन रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि हमारे सामने चुनौती यह है कि कैसे भी इस लहर को सीमित किया जाए। यह चार सप्ताह तक ही रहे और छह या फिर आठ सप्ताह तक न खिंचे।इंडिया और ब्राजील में कोरोना वायरस का नया और घातक स्ट्रेन जमकर कहर बरपा रहा है। पिछले हफ्ते भारत में जहां कोरोना से मरने वालों की तादाद दो लाख से ज्यादा हो गई वहीं, ब्राजील में यह आंकड़ा चार लाख से भी ऊपर पहुंच गया है।प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल नेचर ने अपने संपादकीय में आरोप लगाया है कि इन दोनों ही देशों ने वैज्ञानिकों की सलाह को नजरअंदाज किया, इसलिए वे अब परिणाम भुगत रहे हैं।
कोरोन संकट को राजनीतिक विफलताओं का परिणाम बताया
उक्त लेख में दोनों ही देशों में कोरोन संकट को राजनीतिक विफलताओं का परिणाम बताया गया है। नेचर ने लिखा कि भारत और ब्राजील में नेता या तो विफल रहे हैं, या फिर उन्होंने रिसर्चर्स की सलाह पर काम करने में ढिलाई बरती है। इससे लाखों लोगों के जीवन को सीधा-सीधा नुकसान पहुंचा है। मैगजीन ने ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो पर भी निशाना साधा। लिखा कि बोलसोनारो ने कोरोना वायरस को लगातार छोटा बुखार बताया। उन्होंने तो मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग जैसी वैज्ञानिकों की सलाह को मानने से भी इनकार कर दिया।
मैगजीन ने भारत के बारे में भी तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के नेताओं ने आवश्यकतानुसार निर्णायक रूप से कार्य नहीं किया है। उदाहरण के रूप में उन्होंने कोरोना वायरस के संक्रमण के बावजूद लोगों के इकट्ठा होने की अनुमति दी। कुछ मामलों में तो नेताओं ने इसे प्रोत्साहित भी किया। जाहिर सी बात है कि मैगजीन ने भारत में चुनावी जनसभाओं को कोरोना के लिए जिम्मेदार बताया।
ट्रंप की रैलियों और अमेरिका में कोरोना का दिया उदाहरण
नेचर ने उदाहरण देते हुए बताया कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कोविड के खतरों से निपटने में ढिलाई बरती थी। उन्होंने भी चुनावी जनसभाओं को कर लोगों की खूब भीड़ बटोरी। इन रैलियों में सोशल डिस्टेंसिंग की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। इसका परिणाम पूरी दुनिया ने देखा। कई महीनों तक अमेरिका कोरोना वायरस के कहर से जूझता रहा। अमेरिका में इस बीमारी से 570,000 से अधिक मौतें दर्ज की हैं, जो आज भी पूरी दुनिया में सबसे अधिक है।साइंस जर्नल ने अपने वर्ल्ड व्यू के एक लेख का हवाला देते हुए कहा कि भारत में पिछले साल सितंबर में दैनिक कोरोना मामलों की संख्या 96000 तक पहुंच गई थी। इस साल मार्च की शुरुआत में जब यह संख्या घटकर 12000 प्रतिदिन तक पहुंच गई तो भारत के नेता आत्मसंतुष्ट हो गए। इस दौरान कारोबार फिर से खुल गए। बड़ी संख्या में रैलिया हुईं, जिनमें विवादास्पद नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी शामिल हैं। मार्च और अप्रैल में चुनावी रैलियां हुईं और धार्मिक आयोजन भी जारी रहे।
इंडिया में डेटा तक वैज्ञानिकों की पहुंच नहीं?
मैगजीन ने लिखा कि भारत में कई समस्याएं भी हैं। यहां वैज्ञानिकों को कोरोना वायरस की रिसर्च के लिए डेटा तक पहुंचना भी आसान नहीं है। यही कारण है कि वे सरकार को साक्ष्य आधारित सलाह देने और सटीक भविष्यवाणियां नहीं कर पाते हैं। ऐसे डेटा के न होने के बावजूद वैज्ञानिकों ने पिछले साल सितंबर में सरकार को कोरोना प्रतिबंधों में ढील देने को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि महीने के अंत में कोरोना की दूसरी लहर से एक दिन में एक लाख से भी ज्यादा मामले सामने आ सकते हैं। हालांकि, वास्तविकता इससे चार गुनी ज्यादा है।