West Bengal : तूफान में फंसकर नाव डूबी, पांच दिन भूखे-प्यासे समुद्र रह मछुआरे ने खुद बचायी जान
समुद्र में पांच दिनों तक भूख-प्यास से जिदंगी की जंग लड़ते रहे भारतीय मछुआरे को बांग्लादेश के एक जहाज ने बचा लिया है। तूफान की चेतावनी के बावजूद विगत चार जुलाई को बंगाल की खाड़ी में गहरे समुद्र में जाकर लापता हुए 31 मछुआरों में से एक और रवींद्रनाथ दास को बुधवार को बरामद कर लिया गया।

- बारिश का पानी पीकर किया गुजारा
कोलकाता। समुद्र में पांच दिनों तक भूख-प्यास से जिदंगी की जंग लड़ते रहे भारतीय मछुआरे को बांग्लादेश के एक जहाज ने बचा लिया है। तूफान की चेतावनी के बावजूद विगत चार जुलाई को बंगाल की खाड़ी में गहरे समुद्र में जाकर लापता हुए 31 मछुआरों में से एक और रवींद्रनाथ दास को बुधवार को बरामद कर लिया गया।
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बंग्लादेसी जहाज जवाद ने रविंद्रनाथ को रेस्क्यू कर कोलकाता छोड़ दिया है। रवींद्रनाथ ने बताया कि वह पांच दिनों तक बिना लाइफ जैकेट के भूखे-प्यासे गहरे समुद्र में तैर कर खुद अपनी जान बचायी है। बांग्लादेश सीमा क्षेत्र में बुधवार सुबह 11 बजे समुद्र से गुजर रहे एक जहाज में सवार लोगों की नजर पड़ी, तो रवींद्रनाथ को बचाया गया। इसकी जानकारी मछुआरों से संगठन और राज्य के मंत्री मंटूराम पाखीरा ने गुरुवार को दी। हालांकि अभी भी लापता हुए 24 मछुआरों को पता नहीं चल पाया है।
रवींद्रनाथ की बरामदगी को चमत्कार बताया
वेस्ट बंगाल युनाइटेड फिशरमेन एसोसिएशन के सचिव बिजोन माइती ने बताया कि लापता मछुआरे दक्षिण 24 परगना जिले के काकद्वीप के रहने वाले हैं। इंग्लिस चैनल विजेता तैराक बुला चौधरी ने रवींद्रनाथ की बरामदगी को चमत्कार बताया है। उन्होंने बताया कि जब वह इंग्लिश चैनल पार करने के लिए तैरती हैं, तो उनकी मदद के लिए सभी सुविधाओं से लैस एक जहाज पीछे-पीछे चलता है। खाने-पीने को दिया जाता है। लेकिन रवींद्रनाथ बिना खाये-पीये पांच दिनों तक समुद्र में तैरता रहा यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। उसने असंभव को संभव कर दिखाया है। उन पर भगवान की अपार कृपा है। मैं रवींद्रनाथ को सैलूट करती हूं।
पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के नारायणपुर के रहने वाले रवींद्र नाथ दास अपने 14 साथियों के साथ मछली पकड़ने के लिए निकले थे। कुछ समय बाद उनकी नाव तूफान में फंस गयी। रवींद्र के भतीजे समेत सभी की मौत उनके सामने हो गयी। वह किसी तरह तैरते हुए बांस के सहारे जीवित रहे और बांग्लादेशी सीमा में पहुंच गये। जहां उन्हें चिटगांव के पास एक जहाज पर मौजूद क्रू ने बचा लिया। फिलहाल, रवींद्र का इलाज कोलकाता के हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।
तूफान में नाव पलटी और डूब गयी
रवींद्र नाथ दास ने बताया कि वे चार जुलाई को अपने 14 साथियों के साथ मछली पकड़ने के लिए समुद्र में गये थे। तेज तूफान की वजह से छह जुलाई को नाव अचानक पलट गयी और डूब गयी। सभी साथी समुद्र में कूद गये। इनमें से तीन की मौत नाव के नीचे आने से हो गयी। इसके बाद, बचे साथियों की डूबने से मौत हो गयी। उन्होंने बताया कि पांच दिनों तक मैंने कुछ नहीं खाया। बस पानी पिया। वह भी बारिश का। ये पांच दिन मेरे बेहद मुश्किल भरे थे। सोचता था कि मेरी मौत जल्द हो जाएगी, लेकिन फिर जीने की चाह मुझे हिम्मत दे देती थी।
रवींद्र बताते हैं कि मुझे अपने भतीजे को न बचाने का दुख रहेगा। रेक्स्यू किए जाने के कुछ घंटे पहले उसकी डूबने से मौत हो गयी। हम दोनों साथ-साथ तैरे। इस दौरान वह काफी डरा हुआ था। उसे तीन दिन तक मैंने अपने कंधे पर उठाये रखा। 10 जुलाई को मैंने चिटगांव के पास बांग्लादेश के जहाज को देखा। मुझे उम्मीद बंधी। मैं दो घंटे की कड़ी कोशिश के बाद उसके पास तक पहुंच पाया। तब मुझे मदद मिली।
उल्लेखनीय है कि प्रशासन की ओर से दो महीने तक मछुआरों को समुद्र में जाने से मना किया गया था। बावजूद इसके विगत चार जुलाई को चार ट्रॉलर एफबी दसभुजा, एफबी बाबाजी, एफबी जय जोगीराज और एफबी नयन में सवार कुल 61 मछुआरों का एक दल बंगाल की खाड़ी में मछली पकड़ने रवाना हुआ था। लेकिन खराब मौसम के चलते ट्रॉलर समुद्र में ही पलट गए थे। पर उनमें से 36 मछुआरों को बचा लिया गया है जबकि 25 लापता थे, जिसमें से एक और को बचा लिया गया हैं।भारतीय तटरक्षक बल ने चारों ट्रालरों के बांग्लादेश के जलक्षेत्र में डूब जाने की आशंका जाहिर की थी।
पश्चिम बंगाल के रवींद्रनाथ नाम के एक मछुआरे अपने 15 दोस्तों के साथ बंगाल की खाड़ी में हल्दिया के पास मछली पकड़ने गये थे। अचानक, एक बड़ा तूफ़ान आया। समुद्र बहुत उग्र हो गया। बड़ी लहरों ने उनकी नाव को टक्कर मारी और वह पलट गई। रवींद्रनाथ समेत सभी लोग पानी में गिर गये। उन्होंने हार नहीं मानी। पांच दिनों तक, वह खुले समुद्र में अकेले तैरते रहे। न खाना था, न पीने का पानी। ज़िंदा रहने के लिए उन्होंने बारिश का पानी पिया। पांचवें दिन, लगभग 600 किलोमीटर दूर, बांग्लादेश के कुतुबदिया द्वीप के पास, एमवी जवाद नाम के एक जहाज़ ने पानी में कुछ हिलता हुआ देखा। कप्तान ने एक लाइफ़ जैकेट फेंकी, लेकिन वह उन तक नहीं पहुंची। इसलिए, कप्तान ने जहाज़ को वापस मोड़ दिया। उन्होंने एक और लाइफ़ जैकेट फेंकी, और इस बार वह उनके पास पहुंच गयी। चालक दल ने रवींद्रनाथ को जहाज पर खींचने के लिए एक क्रेन का इस्तेमाल किया। वह थका हुआ, कमज़ोर और अर्ध-बेहोश था—लेकिन ज़िंदा था। जहाज पर सभी लोग खुशी से झूम उठे।