बिहार:16 साल की लड़की और 14 साल के लड़के ने की शादी, नालंदा कोर्ट ने माना वैध,तीन दिन में सुनाया ऐतिहासिक फैसला
नालंदा व्यवहार न्यायालय किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्र ने एक बार फिर मानव पहलुओं को प्राथमिकता देते हुए एतिहासिक फैसला सुनाया है।उन्होंने 16 साल की लड़की और 14 साल के लड़के ने की शादी को वैध करार दिया है। मामले में मात्र तीन दिन में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
बिहारशरीफ। नालंदा व्यवहार न्यायालय किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्र ने एक बार फिर मानव पहलुओं को प्राथमिकता देते हुए एतिहासिक फैसला सुनाया है।उन्होंने 16 साल की लड़की और 14 साल के लड़के ने की शादी को वैध करार दिया है। मामले में मात्र तीन दिन में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
आठ माह की मासूम समेत तीन जिंदगी के हित में फैसला
जेल में बंद आरोपित किशोर को रिहा कर दिया। किशोर व नाबालिग से जन्मी आठ माह की बच्ची को उसका हक मिला। यह स्टेट का पहला केस है, जब मात्र तीन दिन में मामले का फैसला सुनाया गया। इस ऐतिहासिक फैसले ने कई नये रिकॉर्ड बनाये। हालांकि, जज ने यह भी कहा है कि इस फैसले को आधार बनाकर किसी अन्य मामले में इसका लाभ नहीं लिया जा सकता है। नाबालिग लड़की को भगा कर शादी करने और शारीरिक संबंध बनाने के आरोपी किशोर के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य थे। बावजूद इसके कोर्ट ने किशोर को दोष मुक्त करते हुए नाबालिग पति-पत्नी को साथ रहने का फैसला सुनाया। ताकि उनके छह माह के नवजात शिशु का पालन पोषण प्रभावित ना हो।कोर्ट ने कहा कि सजा देने से तीन नाबालिग जिंदगी प्रभावित होंगी।
जज ने जिला बाल संरक्षण इकाई व हिलसा बाल कल्याण पुलिस अफसर को बच्ची व किशोर दंपती की उचित देखभाल और संरक्षण के संबंध में हर छह माह पर प्रतिवेदन देने को कहा है। मासूम बच्ची के हितों व भविष्य को देखते हुए यह अनोखा फैसला सुनाया गया है। इसके लिए जज खुद तीन दिन तक किशोर व किशोरी के माता-पिता के साथ काउंसिलिंग की। उन्होंने दोनों के माता-पिता को मानवीय पहलुओं की बारीकियों को समझाया। मासूम बच्ची के भविष्य की सुरक्षा के लिए उन्हें अपनाने को प्रेरित किया।
क्या है मामला
नालंदा जिले के हिलसा पुलिस स्टेशन एरिया के एक गांव की 16 वर्षीया किशोरी व 14 वर्ष के किशोर वर्ष 2019 की 11 फरवरी को सरस्वती पूजा देखने निकले। वहां से दोनों भागकर दिल्ली चले गये। दोनों ने वहीं शादी रचा ली। इसी दौरान वर्ष 2020 की 19 जुलाई को एक बच्ची को जन्म दिया। इधर लड़की के पिता ने पुलिस में FIR दर्ज करा दिया। जब इस बात की जानकारी किशोर-किशोरी को जानकारीहुई तो दिल्ली से वापस अपने गांव पहुंचे। पुलिस ने किशोरी पूछताछ की एवं कोर्ट में बयान कराया। वर्ष् 2021 की 20 फरवरी को किशोर ने कोर्ट में सरेंडर किया। एडीजे छह सह स्पेशल पॉक्सो न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने लड़के को न्यायिक हिरासत में लेकर प्लेस ऑफ सेफ्टी शेखपुरा भेज दिया। इसी दौरान मामले को 19 मार्च को किशोर की पेशी जेजेबी में हुई। इसमें कोर्ट ने केस का संज्ञान एवं सारांश (चार्ज फ्रेम) किया। 20 मार्च को हुई गवाही में दोनों पक्ष बच्ची के साथ किशोर दंपती को आपसी सहमति से स्वीकार करने को राजी हुए।
ट्रायल के तीन दिन के भीतर पहला फैसला
किशोर न्याय परिषद के सदस्य अधिवक्ता धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि किशोर और लड़की दोनों नाबालिग हैं। उनके एक बच्चा है। कोर्ट में मामला आने पर दोनों परिवार एक दूसरे को अपनाने पर तैयार हो गये। उन्होंने कहा कि स्पीडी ट्रायल का यह सबसे कम दिन में सुनाया गया फैसला है। अब तक भारत के किसी भी न्यायालय में ट्रायल के तीन दिन के भीतर फैसला नहीं सुनाया गया है।
जज मानवेंद्र मिश्र सुना चुके हैं कई ऐतिहासिक फैसला
जज मानवेंद्र मिश्र अब तक कई ऐतिहासिक फैसले सुना चुके हैं। इसके पहले उन्होंने 26 फरवरी को नूरसराय पुलिस स्टेशन एरिया के एक गांव का इसी तरह का फैसला सुनाया था। जबकि पुलिस में नौकरी लगने वाले मारपीट के आरोपी किशोर को आरोप से बरी कर दिया था।