बिहारःपटना हाईकोर्ट ने दिया सेनारी नरसंहार मामले में 13 दोषियों को रिहा करने का आदेश,34 लोगों का बांधकर रेता गया था गला
पटना हाइकोर्ट ने जहानाबाद के बहुचर्चित सेनारी नरसंहार मामले में शुक्रवार को लोओर कोर्ट के फैसले को रद करते हुए दोषी ठहराये गये सभी 13 लोगों को तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया है। इसी मामले में वर्ष 2016 की 15 नवंबर जहानाबाद की जिला कोर्ट ने 10 दोषियों को फांसी और तीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसी फैसले को पटना हाईकोर्ट ने रद कर दिया।
- जहानाबाद की जिला कोर्ट ने 10 दोषियों को फांसी और तीन को उम्रकैद की सुनायी थी सजा
पटना। पटना हाइकोर्ट ने जहानाबाद के बहुचर्चित सेनारी नरसंहार मामले में शुक्रवार को लोओर कोर्ट के फैसले को रद करते हुए दोषी ठहराये गये सभी 13 लोगों को तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया है। इसी मामले में वर्ष 2016 की 15 नवंबर जहानाबाद की जिला कोर्ट ने 10 दोषियों को फांसी और तीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसी फैसले को पटना हाईकोर्ट ने रद कर दिया।
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस अश्विनी कुमार सिंह व अरविंद श्रीवास्तव की बेंच ने बहुचर्चित सेनारी नरसंहार मामले में यह फैसला सुनाया है। लोअर कोर्ट के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में स्टेट गवर्नमेंट की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया। वहीं दोषी द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव और अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर लोओर कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।
डबल बेंच के इस फैसले की जानकारी मिलने के बाद लोगों में आक्रोश है। वहीं मृतक के परिजन इस फैसले से काफी नाराज दिख रहे हैं। फैसले की जानकारी मिलने के बाद सेनारी समेत अन्य गांवों में इसकी चर्चा होने लगी। एक जाति विशेष के लोगों में काफी नाराजगी और आक्रोश देखने को मिल रहा है। सेनारी गांव के लोगों का कहना है कि यह फैसला निराशाजनक है। ग्रामीण नीतीश कुमार, अजय शर्मा आदि ने कहा कि कोर्ट की भाषा में साक्ष्य के अभाव भले ही हैं। पर हमारे परिजनों की गला रेतकर जघन्य मर्डर कर दी गई। इससे बड़ा साक्ष्य क्या होगा। सभी लोग जानते हैं कि वर्ष 1999 की 18 मार्च की रात एमसीसी के हथियारबंद लोगों ने 34 लोगों को ठाकुरबाड़ी के पास ले जाकर मर्डरकर दी थी। आखिर कौन सा साक्ष्य चाहिए था। समझ से परे हैं। आरोपियों ने गर्दन काटने के बाद उनके पेट को चीर दिया था।
सेनारी व आसपास गांवों में मातम
हाईकोर्ट के फैसले के बाद सेनारी गांव के अलावा खटांगी, मंझियावां, ओढ़बिगहा समेत दर्जनों गांवों में मातम छाया हुआ है। विभिन्न संगठनों से जुड़े ग्रामीण इस फैसले से काफी नाराज दिख रहे हैं। लोगों का कहना है कि बिहार गवर्नमेंट इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाए। जब तक अभियुक्तों को सजा नहीं मिलेगी। मृतक के परिजन रात की सांस नहीं ले पायेंगे। इतनी बड़ी घटना में सभी लोगों को बरी किया जाना पूरी तरह हास्यप्रद है। इससे अभियुक्तों का मनोबल बढ़ेगा और क्राइम बढ़ेगा।
गांव में मिलजुलकर रहते हैं लोग
मृतक के परिजनों ने बताया कि गांव में अब कोई तनाव नहीं है। हम लोग मिलजुल कर रह रहे हैं। सेनारी के अलावा आसपास के गांवों में भी अमन चैन कायम है। पहले इलाका काफी अशांत था। लेकिन, पिछले 15 वर्षों से इस इलाके में आपसी समन्वय मजबूत हुआ है। अब देर रात भी निर्भीक होकर लोग अपने घर आते-जाते हैं। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि जो फैसला आया है। उससे निराशा हाथ लगी है।
चिंतामणि के बयान पर 19 मार्च 1999 को दर्ज हुई थी FIR
अरवल जिले के करपी पुलिस स्टेशन एरिया के सेनारी गांव में वर्ष 1998 की 18 मार्च की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के हथियारबंद लोगों ने हमला कर एक ही जाति के 34 लोगों की गला रेतकर मर्डर कर दी थी। एमसीसी ने पर्चा छोड़कर नरसंहार की जिम्मेवारी ली थी। उग्रवादियों द्वारा छोड़े गए पर्चे में शंकर बिगहा तथा नारायणपुर की घटनाओं के प्रतिशोद्ध की बात कही गई थी। इस घटना में सात लोग घायल हुए थे। तत्कालीन डीआईजी एसके भारद्वाज, डीएम अवनीश चावला, अरवल के एसपी संजय लाटेकर, डीजीपी टीपी सिन्हा, आईजी नीलमणि, होम सेकरेटरी राजकुमार सिंह समेत कई वरीय अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे थे।
ट्रायल शुरू होने के बाद 31 लोगों ने दी थी गवाही
सेनारी नरसंहार के दूसरे दिन 19 मार्च को करपी पुलिस स्टेशन में में चिंतामणि देवी के बयान पर कांड संख्या 22-1999 के तहत एफआइआर दर्ज कराई गई थी। 16 जून 1999 को पुलिस के द्वारा चार्जशीट दाखिल किया गया था। इसके बाद 38 लोगों के खिलाफ ट्रायल चला। लोअर कोर्ट से 15 नवंबर 2016 को अभियुक्तों को मिली थी सजा
जहानाबाद कोर्ट ने वर्ष 2016 की 15 नवंबर को13 लोगों का सजा सुनाई थी। जबकि 25 लोगों को रिहा कर दिया गया था। लोअर कोर्ट ने 10 लोगों को फांसी की सजा तथा तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने बचेश कुमार सिंह, बुधन यादव, बुटाई यादव, सत्येंद्र दास, द्वारिका पासवान, गोपाल साव, ललन पासी, करीमन पासवान, गोराई पासवान तथा उमापासवान को फांसी की सजा सुनाई थी। जबकि अन्य तीन लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
सेनारी जिन लोगों की गई थी जान
मधुकर कुमार, ओमप्रकाश उर्फ रोहित शर्मा, भूखन शर्मा, नीरज कुमार, ओमप्रकाश, राजेश कुमार, संजीव कुमार, राजू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, विरेंद्र शर्मा, सच्चितानंद शर्मा, ललन शर्मा, अवधेश शर्मा, कुंदन शर्मा, धीरेंद्र शर्मा, अमरेश कुमार, रामदयाल शर्मा, सत्येंद्र कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश शर्मा, परीक्षित नारायण शर्मा, रामनरेश शर्मा, चंद्रभूषण शर्मा, अवधकिशोर शर्मा, संजीव कुमार, श्यामनारायण सिंह, नंदलाल शर्मा, रामस्लोग शर्मा, ज्वाला शर्मा, पिंटू शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, रंजन शर्मा, जितेन्द्र शर्मा, विरेन्द्र शर्मा।