Anand Mohan : आनंद मोहन की रिहाई को बिहार गवर्नमेंट ने बताया सही, सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा
बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर एक्स एमपी आनंद मोहन की रिहाई को सही ठहराया है। बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट से आईएएस अफसर व गोपालगंज के DM रहे जी. कृष्णैया मर्डर केस में दोषी आनंद मोहन को जेल से समय पूर्व रिहा किये जाने को चुनौती देनेवाली याचिका को खारिज करने की मांग की है।
- जेल में आचरण ठीक रहा
- जेल में तीन किताबें लिखीं
- राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का दिया हवाला
पटना। बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर एक्स एमपी आनंद मोहन की रिहाई को सही ठहराया है। बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट से आईएएस अफसर व गोपालगंज के DM रहे जी. कृष्णैया मर्डर केस में दोषी आनंद मोहन को जेल से समय पूर्व रिहा किये जाने को चुनौती देनेवाली याचिका को खारिज करने की मांग की है।
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गवर्नमेंट ने कहा है कि कृष्णैया की वाइफ उमा कृष्णैया की ओर से आनंद मोहन को जेल से रिहा करनेके खिलाफ दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। ऐसे में इसे खारिज कर दिया जाए। सरकार ने कहा है कि आनंद मोहन को जेल से रिहा किए जाने में याचिकाकर्ता के किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया। गवर्नमेंट ने याचिकाकर्ता उमा कृष्णैया की याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामा में यह दलील दी है। गवर्नमेंट की ओर से दोषियों को सजा में छूट देने की नीति से संबंधित मामले में कोई मौलिक अधिकार शामिल नहीं है, क्योंकि सजा में छूट हमेशा राज्य और दोषी के बीच का मामला है। गवर्नमेंट ने हलफनामे में कहा है कि उन्होंने जेल में रहते हुए तीन किताबें लिखी हैं। जो भी काम दिया गया, वो पूरा किया है।
राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का भी हवाला
बिहार गवर्नमेंट ने हलफनामे में नियमों को बदलने पर जवाब देते हुए कहा है कि किसी दोषी की रिहाई इसलिए नहीं रोकी जा सकती, क्योंकि उस पर लोक सेवक की हत्या का आरोप है। पीड़ित चाहे आम आदमी हो या खास, दोषी की रिहाई हो या न हो...इसकी वजह नहीं बन सकता।आनंद मोहन पर गोपालगंज के DM रहे जी कृष्णैया की मर्डर में शामिल होने का आरोप है। इस मामले में उम्रकैद की सजा के तौर पर उन्होंने 16 साल जेल में बिताये हैं। बिहार सरकार ने विगत 10 अप्रैल को कारा नियमों में बदलाव किया था, जिसके बाद उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया। 27 अप्रैल को उनकी रिहाई हो गई थी।
याचिका को खारिज करने की मांग
बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट से आईएएस अफसर जी. कृष्णैया मर्डर केस में दोषी आनंद मोहन को जेल से समय पूर्व रिहा किये जाने को चुनौती देनेवाली याचिका को खारिज करने की मांग की है। गवर्नमेंट ने कहा है कि कृष्णैया की वाइफ उमा कृष्णैया की ओर से आनंद मोहन को जेल से रिहा करनेके खिलाफ दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। ऐसे में इसे खारिज कर दिया जाए। सरकार ने कहा है कि आनंद मोहन को जेल से रिहा किए जाने में याचिकाकर्ता के किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया। गवर्नमेंट ने याचिकाकर्ता उमा कृष्णैया की याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामा में यह दलील दी है। गवर्नमेंट की ओर से दोषियों को सजा में छूट देने की नीति से संबंधित मामले में कोई मौलिक अधिकार शामिल नहीं है, क्योंकि सजा मेंछूट हमेशा राज्य और दोषी के बीच का मामला है।
सुप्रीम कोर्ट में दी गयी दलीलें
बिहार के जेल आईजी एस. कपिल अशोक ने 10 जुलाई को दाखिल हलफनामा में आनंद मोहन को समय से पहले जेल से रिहा करने के सरकार के फैसले का बचाव किया है। हलफनामा में बिहार सरकार नेपीड़ित या उसके रिश्तेदार को किसी अधिनियम या संवैधानिक प्रावधानों के तहत राज्य द्वारा कैदियों को सजा मेंछूट देने की नीति में हस्तक्षेप करनेका कोई अधिकार नहीं दिया गया है। सरकार ने दोषियों को सजा मेंछूट देनेको विनियमित करनेके लिए सजा माफी नीति बनाई है। यह नीति दोषी सिर्फ दोषी को कुछ लाभ और अधिकार प्रदान करती हैऔर पीड़ित के किसी भी अधिकार को नहीं छीनती है। यह लिहाजा कोई पीड़ित अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दाखिल करने के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकता।
याचिका खारिज करनेकी मांग
बिहार गवर्नमेंट ने हलफनामे में याचिकाकर्ता उमा कृष्णैया पर संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। सरकार ने कहा है कि वास्तव में सजा मेंछूट का दावा करनेवाले दोषी भी अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। नीति में बदलाव करनेया दोषी को सजा में छूट देकर जेल से रिहा करने में पीड़िता को उसके किसी भी अधिकार से वंचित नहीं किया गया है। सभी अधिनियम और अधीनस्थ कानून संवैधानिकता की धारणा के साथ आते हैं। यह किसी अधिनियम को चुनौती देनेवाले व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह यह साबित करे कि यह (संबंधित कानून) कैसे संवैधानिक दोष से ग्रस्त है। जहां तक मौजूदा मामलेका सवाल है तो याचिकाकर्ता यह बताने में पूरी तरह सेविफल है कि कैदियों को सजा में छूट देनेके लिए कानून/नियम में किये गये बदलाव कैसे संवैधानिक योजना का उल्लंघन करना है।
लोक सेवकों की सुरक्षा के लिए सरकार प्रतिबद्ध
बिहार गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह राज्य के सभी लोक सेवकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसे व्यक्तियों के लिए निवारक के रूप में कार्य करने के लिए कानून के तहत पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। कानून में इस तरह के अपराध करने या इसके लिए सोचनेवालों से निपटनेके लिए पर्याप्त प्रावधान है।
आनंद मोहन के साथ कई अन्य भी हुए रिहा
गवर्नमेंट में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सजा में छूट देनेके लिए बनाई गई नीति का लाभ सिर्फ आनंद मोहन को नहीं दिया गया है, बल्कि कई अन्य को भी दिया है। सरकार ने कहा हैकि जब प्रतिवादी संख्या -4 यानी आनंद मोहन को सजा पर छूट देने पर विचार कर रहे थे तो कुल-93 मामले थे। कोर्ट को बताया कि सभी मामलों पर विचार के बाद आनंद मोहन सहित 27 मामलों में सजा में छूट देनेको मंजूरी दी गई और 56 को खारिज कर दिया। नौ मामलों को दोबारा से संबंधित जज के भेजा गया, जबकि एक मामले में पुनर्विचार के लिए रखा गया था।
इसलिए हुई आनंद मोहन की हुई रिहाई
आनंद को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके तहत उन्हें 14 साल की सजा हुई थी। आनंद ने सजा पूरी कर ली थी, लेकिन मैनुअल के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी की हत्या के मामले में दोषी को मरने तक जेल में ही रहना पड़ता है। नीतीश सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया। इसका संकेत जनवरी में नीतीश कुमार ने एक पार्टी इवेंट में मंच से कहा था कि वो आनंद मोहन को बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं। 10 अप्रैल को राज्य सरकार ने इस मैनुअल में बदलाव कर दिया। इसके बाद आनंद मोहन समेत 27 दोषियों की रिहाई के आदेश सोमवार को जारी कर दिये गये। आनंद मोहन पर तीन और केस चल रहे हैं। इनमें उन्हें पहले से बेल मिल चुकी है। बिहार गवर्नमेंट ने अप्रैल 2023 में जेल मैनुअल, 2012 में संशोधन किया था। संशोधित नियमों के तहत सरकार ने 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन को रिहा कर दिया। इसके खिलाफ कृष्णैया की पत्नी उमा देवी कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका
दाखिल की है। उन्होंने कहा है कि बिहार राज्य ने विशेष रूप से 10 अप्रैल 2023 के संशोधन के माध्यम से पूर्वव्यापी प्रभाव से बिहार जेल मैनुअल 2012 में इसलिए संशोधन लाया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोषी आनंद मोहन को सजा में छूट का लाभ मिल सके। आनंद मोहन को सहरसा जेल से 27 अप्रैल की सुबह रिहा किया गया था।
कोर्ट ने मांगे हैं रिहाई के मूल रिकॉर्ड
जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर आठ मई को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी ने पहली सुनवाई की थी। उस दिन कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन दोनों को नोटिस जारी किया था। दो हफ्ते में इस मामले की सुनवाई करने की बात कही थी।सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई को रिहाई के मामले में बिहार सरकार को लास्ट चांस दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से आनंद मोहन की रिहाई के मूल रिकॉर्ड पेश करने को कहा था, जिसके आधार पर पूर्व सांसद को छोड़ा गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब देने के लिए वक्त मांगा था। कोर्ट ने आठ अगस्त को अगली तारीख दी है। कहा है कि इसके बाद कोई समय नहीं दिया जायेगा।
आनंद मोहन की रिहाई पर सियासत
आनंद मोहन की रिहाई को बीजेपी राजनीतिक चश्मे से देख रही है। अनंद मोहन को 27 अप्रैल 20213 को जेल से रिहा किया गया है। बीजेपी का कहना है कि नीतिश सरकार मर्डर को आरोपी को राजनीतिक लाभ के लिए रहा किया है। दलित आइएएस अफसर के मर्डर के आरोपी को रिहा गया है। आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ बीजेपी के एक्स सेंट्रल मिनिस्टर केजेअल्फोंस सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। आनंद मोहन को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की 1994 में हुई मर्डर केस में 13 साल बाद 2007 में ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। आनंद मोहन की अपील पर पटना हाईकोर्ट ने 2008 में फांसी को उम्रकैद में बदल दिया। आनंद मोहन सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी। दिवंगत डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया भी आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। मामले में सुनवाई चल रही है।सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से जबाव मांगा है। मामले में अगस्त माह में सुनवाई होगी।
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
बिहार के गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की मुजफ्फरपुर में पांच दिसंबर 1994 को उग्र भीड़ ने मर्डर कर दी थी। बिहार गवर्नमेंट ने इस मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को 17 साल जेल काटने के बाद 27 अप्रैल को रिहा कर दिया था। इसके खिलाफ जी कृष्णैया की वाइफ उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रिहाई का आदेश रद करने की मांग की है। आठ मई को उमा कृष्णैया की याचिका पर पहली सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी ने की थी। उस दिन कोर्ट ने बिहार गवर्नमेंट और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया था।
बिहार सरकार के वकील ने कोर्ट से मांगा था समय
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई आठ मई को उमा कृष्णैया की याचिका पर बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया था। शुक्रवार को मामला न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला की बेंच के सामने सुनवाई पर लगा था।बिहार सरकार की ओर से पेश वकील मनीष कुमार ने मामले में जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा। कोर्ट ने साफ किया कि आगे और समय नहीं दिया जाएगा। पीठ ने बिहार सरकार से कहा कि कोर्ट के देखने के लिए रिहाई से संबंधित सारा मूल रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किया जाए।
उमा कृष्णैया के वकील ने कोर्ट में रिकॉर्ड पेश करने की मांग
उमा कृष्णैया की ओर से पेश सीनीयर एडवोके्ट सिद्दार्थ लूथरा ने आनंद मोहन की रिहाई का विरोध करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने रिहाई नीति में पूर्व तिथि से संशोधन लागू करते हुए आनंद मोहन को रिहा कर दिया है।लूथरा ने कहा कि कोर्ट राज्य सरकार को आदेश दे कि वह आनंद मोहन की आपराधिक पृष्ठभूमि का सारा रिकॉर्ड कोर्ट में पेश करे।इसके बाद कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को याचिका का जवाब दाखिल करने का समय देते हुए रिहाई से संबंधित और आनंद मोहन की आपराधिक पृष्ठभूमि का सारा रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई आठ अगस्त तक के लिए टाल दी।
सुप्रीम कोर्ट का नीतीश गवर्नमेंट को नोटिस
सजायाप्ता आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई को सुनवाई के दौरान बिहार के नीतीश कुमार गवर्नमेंट व अन्य को नोटिस जारी किया था।गोपालगंज के डीएम रहे IAS अफसर जी कृष्णैया की की मर्डर के मामले में दोषी उम्र कैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को जेल के नियमों में संशोधन कर 27 अप्रैल को रिहा कर दिया था। बिहार गवर्नमेंट के इस फैसले को कृष्णैया की वाइफ उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उमा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार गवर्नमेंट समेत अन्य को नोटिस जारी किया था।
नियमों में संशोधन कर दी गई रिहाई
एक्स एमपी आनंद मोहन को पांच दिसंबर 1994 को हुई गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की पीट-पीट कर मर्डर मामले में आरोपी बनाया गया। लंबे समय तक मुकदमा चला। इसके बाद साल 2007 में आनंद मोहन को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। तब से वे बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहे थे। हाल ही में नीतीश सरकार ने जेल के नियमों में संशोधन कर 27 कैदियों को रिहा किया, जिनमें आनंद मोहन भी शामिल थे। आनंद मोहन की रिहाई पर सियासी बवाल मचा, लेकिन इस पर आनंद मोहन की ओर से कोई टिप्पणी नहीं आई।
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ हाईकोर्ट में PIL
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दलित संगठन से जुड़े अमर ज्योति ने भी 26 अप्रैल को पटना हाईकोर्ट में PIL दायर की। कारागार अधिनियम 2012 को संशोधित कर सरकार ने जो अधिपत्र निकाला है। उसके खिलाफ याचिका दायर की गई है। अमर ज्योति (30) भोजपुर के पीरो के रहने वाले हैं। उन्होंने कोर्ट से सरकार की ओर से जारी उस अधिपत्र को निरस्त करने की अपील की है।
आनंद मोहन ऐसे जेल से बाहर आये
आनंद को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके तहत उन्हें 14 साल की सजा हुई थी। आनंद ने सजा पूरी कर ली थी, लेकिन मैनुअल के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी की मर्डर के मामले में दोषी को मरने तक जेल में ही रहना पड़ता है। नीतीश सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया। इसका संकेत जनवरी में नीतीश कुमार ने एक पार्टी इवेंट में मंच से दिया था कि वो आनंद मोहन को बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं। 10 अप्रैल को स्टेट गवर्नमेंट ने इस मैनुअल में बदलाव कर दिया। आनंद मोहन समेत 27 दोषियों की रिहाई के आदेश सोमवार को जारी किये गये थे। आनंद मोहन पर तीन और केस चल रहे हैं। इनमें उन्हें पहले से बेल मिल चुकी है।
पहले यह था नियम
26 मई 2016 को जेल मैनुअल के नियम 481(i) (क) में कई अपवाद जुड़े, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की मर्डर जैसे जघन्य मामलों में आजीवन कारावास भी था। नियम के मुताबिक ऐसे मामले में सजा पाए कैदी की रिहाई नहीं होगी और वह सारी उम्र जेल में ही रहेगा।
ऐसे किया बदलाव किया गया
10 अप्रैल 2023 को जेल मैनुअल से ‘काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या’ अंश को हटा दिया गया। इसी से आनंद मोहन या उनके जैसे अन्य कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ हुआ।
फ्लैश बैक
बिहार के मुजफ्फरपुर में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की पांच दिसंबर, 1994 को भीड़ ने पहले पीटा और फिर गोली मारकर मर्डर कर दी थी। इस मामले में आरोप लगा था कि इस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। साल 2007 में इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2008 में हाइकोर्ट की तरफ से ही इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया। 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की थी, जो खारिज हो गयी थी। गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की मर्डर मामले में आनंद मोहन अपनी 14 साल की कारावास अवधि पूरी कर चुके हैं। आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव के कहने वाले हैं। उनके दादा एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1990 में की थी।आनद मोहन एमएलए व एमपी रह चुके है। उनकी वाइफ लवली आनंद भी एमएलए व एमपी रह चुकी है।
गोपालगंज डीएम मर्डर केस में क्या हुआ
पांच दिसंबर 1994-डीएम जी कृष्णैया की मर्डर
तीन अक्टूबर 2007-आनंद मोहन समेत तीन को फांसी। 29 बरी। कुछ को उम्रकैद |
10 दिसंबर 2008-हाईकोर्ट ने आनंद मोहन की फांसी को उम्र कैद में बदला।
10 जुलाई 2012- हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही बताया।
10 अप्रैल 2023- मैनुअल से काम के दौरान सरकारी सेवक की मर्डर का बिंदु हटा।
आनंद मोहन का पॉलिटिकल करियर
1990-पहली बार एमएलए बने, महिषी विधानसभा से चुनाव जीता।
1996- समता पार्टी के टिकट पर शिवहर से लोकसभा चुनाव जीता।
1998- लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता पार्टी के टिकट पर शिवहर से जीते।
19990 और 2004 में भी शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन दोनों ही बार हार गये।