बांबे हाईकोर्ट ने दो बहनों को दी गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला,14 बच्चों के किडनैप और नौ की मर्डर के हैं दोषी
बांबे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कोल्हापुर की दो बहनों को सुनाई गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। रेणुका शिंदे और सीमा गवित नाम की दो बहनों को दी गई मौत की सजा को बांबे हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया। इन दोंनों बहनों को कोल्हापुर की एक कोर्ट ने 1990 और 1996 के बीच 14 बच्चों के किडनैप और उनमें से नौ की मर्डर के लिए दोषी ठहराया था।
मुंबई। बांबे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कोल्हापुर की दो बहनों को सुनाई गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। रेणुका शिंदे और सीमा गवित नाम की दो बहनों को दी गई मौत की सजा को बांबे हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया। इन दोंनों बहनों को कोल्हापुर की एक कोर्ट ने 1990 और 1996 के बीच 14 बच्चों के किडनैप और उनमें से नौ की मर्डर के लिए दोषी ठहराया था।
धनबाद: अमरेंद्र कुमार सहाय बने गवर्नमेंट प्लीडर
जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस एस वी कोतवाल की बेंच ने दो महिलाओं को दी गई मौत की सजा को यह कहते हुए बदल दिया कि महाराष्ट्र गवर्नमेंट व सेंट्रल गवर्नमेंट ने उनकी मौत की सजा को पूरा करने में अत्यधिक देरी की। उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।बेंच ने कहा कि गवर्नमेंट ऑफिसर्स, विशेष रूप से स्टेट गवर्नमेंट ने मामले की गंभीरता से अवगत होने के बावजूद लापरवाही से काम किया। इसके लिए अफसर, गवर्नमेंट, खासकर स्टेट गवर्नमेंट जिम्मेदार है। प्रोटोकाल में देरी की और राष्ट्रपति द्वारा उनकी दया याचिका खारिज किये जाने के बावजूद महिलाओं को सात सहले पहले दी गई मौत की सजा पर अमल नहीं किया। हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि 'तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद जिनमें दया याचिकाओं के निपटारे में सात साल, दस महीने और 15 दिन की देरी हुई है। हाई कोर्ट ने दोनों बहनों की याचिका पर सुनवाई 22 दिसंबर को पूरी कर आदेश सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट भी वर्ष 2006 में मामला पहुंचा
कोल्हापुर ट्रायल कोर्ट ने दोनों बहनों को 2001 में मौत की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने 2004 में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद साल 2006 में मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा जहां कोर्टकी ओर से अपील को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई गई जिसे 2014 में खारिज कर दिया गया था।राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज होने के लगभग आठ साल बाद दोनों बहन एक बार फिर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दोनों बहनों ने हाई कोर्ट के सामने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से फांसी पर मुहर लगने और राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका खारिज होने के बीच लगभग आठ तक इतंजार करना पड़ा। दोनों बहनों में आठ साल के समय को अनुचित बताया। दलील दी कि इस दौरान उनको अत्यधिक मानसिक यातना झेलनी पड़ी।प्रक्रिया के अनुसार, एक बार जब सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा की पुष्टि करता है, तो दोषी भारत के राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर कर सकता है, क्षमा मांग सकता है। राष्ट्रपति के समझ दया याचिका दायर होने के बाद राज्य सरकार की राय मांगी जाती है, जिसके आधार पर राष्ट्रपति फैसला लेते हैं।
13 बच्चों का किडनैप करने और उनमें से नौ के लिए ये बहने हैं दोषी
रेणुका शिंदे और सीमा गवित को 1990 से 1996 के बीच कोल्हापुर जिले और उसके आसपास के इलाके में 13 बच्चों का किडनैप करने और उनमें से 9 की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। बच्चों के किडनैप व मर्डर में दोनों की मां अंजनबाई भी शामिल थी। हालांकि, मुकदमा शुरू होने से पहले ही साल 1997 में मां की मौत हो गई थी।