धनबाद। प्रकृति का पर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार सोमवार को पुलिस लाइन में धूमधाम से मनाया गया। केंद्रीय सरना समिति की आयोजित प्रकृति की पूजा कर सभी के सुखी जीवन की कामना की गई। मांदर की थाप व आदिवासी नृत्य पर एसएसपी,सिटी एसपी व रुरल एसपी के साथ डीएसपी व पुलिस जवान खूब थिरके।
पुलिस लाइन में पूरे रीति रिवाज के साथ सरहुल पूजा की गई। सरहुल पूजा में एसएसपी संजीव कुमार, सिटी एसपी आर रामकुमार, ग्रामीण एसपी रिष्मा रामेशन,एएसपी मनोज स्वर्गियार व डीएसपी अमर कुमार पांडे सहित अन्य पुलिस अफसर पारंपरिक परिधानों में पूजा में शामिल हुए।
चीफ गेस्ट एसएसपी संजीव कुमार का तिलक लगाकर स्वागत किया गया। पगड़ी पहनाकर, गमछा भेंट किया गया। एसएसपी संजीव कुमार ने कहा कि यह प्रकृति पर्व है। प्रकृति हमें सब कुछ देती है। उसी की पूजा के लिए हम सब एकत्रित हुए हैं। सभी पुलिसकर्मी इकट्ठा होकर प्रकृति का महापर्व सरहुल मना रहे हैं। झारखंड प्रकृति की गोद में बसा हुआ राज्य हैं। पूरा झारखंड इस पर्व को मना रहा है।
प्रकृति पर्व सरहुल
आदिवासियों का प्रकृति पर्व सरहुल हमेशा वसंत में मनाया जाता है। पतझड़ के बाद पेड़ पौधे खुद को नये कोपल देने के साथ पत्तों और फूलो से सजा लेते है।आम मंजरने लगता है। सरई और महुआ के फूलो से वातावरण सुगन्धित हो जाता है। गेंहू की कटाई शुरू हो जाती है। नए वर्ष का आगमम हो जाता है। आदिवासी लड़किया व महिलाएं सखुआ सरई के फूल से अपने जुड़े को सजाती है। सरहुल प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीया से शुरू होता है। चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है। झारखंड के विभिन्न जनजातियों में इस पर्व को अलग अलग नाम से जाना जाता है। सरहुल के दिन प्रतीक के तौर पर पाहन (पुजारी) धरती और आकाश का विवाह रचाते हैं ताकि सृष्टि की क्रिया निर्बाध चलती रहे। इसके लिए सभी हर्षोल्लास के साथ इस पूजा में शामिल होते हैं। सरना स्थल पर सामूहिक पूजा, नृत्य संगीत के माध्यम से सब के कल्याण की कामना की जाती है। सरहुल पर्व मानव जाति के लिए संदेश है कि संपूर्ण प्रकृति ही मानव जीवन का आधार है। इसका संरक्षण व संवर्धन हम सबका दायित्व है। सरहुल झारखंड की सांस्कृतिकअभिव्यक्ति है। झारखंड के आदिवासी और गैर आदिवासी (सदान )इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं। सरहुल सामाजिक सौहार्द कायम रखने का एक अनोखा उदाहरण है। सरहुल आदिवासी एवं मूल वासियों में आपसी एकता का प्रतीक है। दरअसल हिन्दू नव वर्ष के आगमन के साथ ही आदिवासी समाज भी अपने नए वर्ष को नृत्य संगीत के साथ सेलिब्रेट करते है। ये पर्व जीवन देने वाले पेड़ पौधे प्रकृति को और पालन करने वाले ईश्वर को अपना आभार जताने का संदेश देता है। यह तन मन और जीवन को धरती ,पर्यावरण और अपनी जड़ों से जोड़ कर रखता है।