- सेंट्रल मिनिस्टर, एमपी व बाबा रामदेव रहे मौजूद
गिरिडीह। जैन मुनि आचार्यश्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ने पारसनाथ-मधुबन की पवित्र भूमि पर 557 दिन का सिंहनिष्क्रिडित व्रत व मौन साधना शनिवार को पूरी की। इस दौरान केवल 61 दिन लघु पारणा की और 496 दिन निर्जला उपवास में रहे। इस महासाधना के पूरे होने पर सात दिवसीय महापारणा महाप्रतिष्ठा महोत्सव मधुबन में शनिवार को शुरू हुआ।
आचार्यश्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि मैंने गुरुजी से 200 दिनों के सिंघनिष्क्रीडित व्रत का आशीर्वाद मांगा था, लेकिन गुरुकृपा से 557 दिनों का सिंघनिष्क्रीडित व्रत संपन्न हुआ। आचार्य ने साधना के दौरान के कई अनुभवों को बताया। आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने 557 दिनों बाद अपना मौन व्रत तोड़ा
.श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का लिया आशीर्वाद
पारसनाथ टोंक तपोस्थल से आचार्य प्रसन्न सागर जी नौ किमी नीचे उतरे और दोपहर एक बजे मेला मैदान में बने भव्य पंडाल में आसन ग्रहण किया। इस दौरान पालकी यात्रा में विराजे आचार्य का भजन लहरियों से अविस्मरणीय अभिनंदन-स्वागत किया गया। इसके पूर्व आचार्य ने पर्वत पर हजारों भक्तों के बीच महापारणा किया। उन्हें जल व सोंठ का रस पर्वत से उतरकर नीचे ग्रहण कर महापारणा करना था। बावजूद इसमें बदलाव किया गया, पर्वत पर ही उन्होंने महापारणा किया। इसके बाद ढोल -नगाड़े व भजन गाती टोलियों के साथ वे नीचे उतरे।
150 साधु-साध्वी चल रहे थे साथ
आचार्य के साथ लगभग 150 से अधिक साधु व साध्वी पैदल चले। पार्श्वनाथ टोंक तप स्थल से वे पैदल सीआरपीएफ कैंप तक पहुंचे और पुनः क्षेत्रपाल में रुके। वहां से सीआरपीएफ व जिला प्रशासन के भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पालकी में महोत्सव स्थल खेल मैदान तक पहुंचे। रास्ते में जगह-जगह उनका स्वागत देखते ही बन रहा था। श्रद्धालु पालकी के आगे-पीछे ढोल, बाजा व नृत्य कर उनका स्वागत कर रहे थे।
ऐसे तोड़ा मौन व्रत
दिव्य ध्वनि के तहत आचार्य ने ओम, नम: व संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण कर अपना मौन व्रत तोड़ा। उनकी दिव्य ध्वनि सुनने को हजारों श्रावक-श्राविका व श्रद्धालु हाथ जोड़े शांत मन से लालायित थे। महापुण्य के इस क्षण के सभी सहभागी बने।
कारिका की एक लाइन से मिला तप का साहस
प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य पद्मनाभम जी महाराज ने कारिका (गाथा) में चार चरण में अपनी बात कही है। कारिका की एक लाइन ने मुझे व्रत करने के लिए हिम्मत व साहस दिया। उस एक लाइन को अपनी धुरी बनाकर जियें तो हम असफल नहीं हो सकते। वह है आत्मा मरता ही नहीं है तो डर किस बात का। इतनी लंबी साधना में इतना बड़ा पर्वत जहां कोई नहीं हम, हवा और मेरी परछाई थी।
खून की उल्टी हुई, शरीर पर ओले पड़ते रहे
आचार्य ने कहा कि व्रत करने के लिए हिम्मत, जुनून व साहस होना चाहिए। सात साल से साधना व उपवास कर रहे हैं। सिंहनिष्क्रिडित के 200 दिन के व्रत के लिए गुरु से आशीर्वाद लिया था। गुरु आचार्य विद्यासागर महाराज ने शरीर व स्वास्थ्य को ध्यान रखकर व्रत करने बात कही थी। उन्होंने कहा कि कोरोना के समय हस्तिनापुर में माता जी ने साथ दिया। जब सम्मेद शिखर के पर्वत पर चढ़े तो व्रत प्रारंभ के चौथे उपवास में खून की उल्टी हुई। इसके बाद चैतन्य माताजी ने उन्हें लौंग दिया। आचार्यश्री ने कहा कि गुरु की प्रेरणा व संत का प्यार अद्भुत होता है। यह साधना हमने नहीं की है, गुरुओं के प्यार व वात्सल्य ने की है। मैंने लगातार पर्वत के ऊपर साधना की। शरीर मेरा है, धड़कनें उनकी चल रही है। पर्वत पर छह ऋतुएं देखीं। 26 मई को धूप थी, दोपहर में उसके बाद आंधी आई फिर तूफान व पानी बरसने लगा। नींबू के आकर के ओले गिरने लगे तो वहीं बेहोश हो गये। सभी गार्ड नीचे थे। कुछ देर में लोग पहुंचे और अंदर ले गये। इसके बाद सभी लोग नीचे ला रहे थे। इस बीच कंपाउंडर इंजेक्शन देने के बात कही। तभी उन्हें होश आ गया और उन्होंने कहा कि इंजेक्शन लेने के लिए साधना नहीं कर रहे।
दिनचर्या
चार्य ने तप के कुल 557 दिन में 61 दिन ही लघु पारणा की। इनमें जल व द्रव्य ही लेते थे। 19 बार शौच, 42 बार लघु शंका किए। कहा कि उन्होंने इस दौरान 61 ग्रंथ पढ़े। वह भी गुफा में टार्च जलाकर। कषाय पाहुड के 16 भाग, जै धवला के 60 भाग आदि कई ग्रंथों का नाम स्वाध्याय में बताया। सम्मेद शिखर के गुफा से बड़ी पवित्रता दुनिया में कहीं हो ही नहीं सकती। साधना के दौरान एक रात भी वे नहीं सोए। विश्राम का समय प्रतिदिन सुबह छह से 6 से 11 बजे पांच घंटे का रहता था।
संसार में तीन ही लोग अच्छे
आचार्य ने अपनी दिव्य ध्वनि में आगे कहा कि पूरे संसार में तीन लोग अच्छे हैं एक जो मर गए, दूसरे जो पेट में हैं, तीसरे जिन्हें हम जानते ही नहीं हैं। अच्छे होने की गलतफहमी में मत जियो। कहा कि तीन पर कभी भरोसा नहीं करना। मन कब बदल जाए, सांस कब रुक जाए, पुण्य कब खत्म हो जाए। सब के प्रति मैत्री का भाव रखो। सदैव सावधान रहो। यहां तुम खुद नहीं आए तुम्हारा पुण्य यहां लेकर आया। सात बार बिजली गुफा में गिरी। हम बच गए। आत्मा में न रोग है। न वृद्धा बनती है। आगे चार चीजों पर ध्यान देंगे। अब आगे उनका लक्ष्य संघ, स्वाध्याय, साधना और समाधि पर होगा। कहा कि जितना हम भौतिक संसाधनों में जुड़ेंगे, उतना ही उलझते जायेंगे। एक फरवरी को कई लोगों को दीक्षा देंगे।
विश्व में युद्ध की स्थिति में शांति का संदेश दे रहा सम्मेद शिखरजी
महोत्सव में शामिल हुए सेंट्रल मिनिस्टर पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि वर्तमान में पूरा विश्व जिस दिशा में जा रहा है। युद्ध की स्थिति बन रही है। ऐसे में एक मात्र सम्मेद शिखरजी है कि शांति का संदेश दे रहा है। अहिंसा का कितना महत्व है, उसका पता यहीं से चलता है। इस महोत्सव के बाद यहां का महत्व और बढ़ गया है। अहिंसा का संचार हो रहा है। मेरा भारत आज संतों के आशीर्वाद से मजबूत है। पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसमें महापारणा का यह महोत्सव स्वर्णिम काल है। आने वाला समय भी स्वर्णिम ही रहेगा।
साधु के चरण में ही भगवान
योग गुरु बाबा रामदेव ने अपने संबोधन में कहा कि आपको भी विश्व शांति के लिए साधना करना चाहिए। कहा कि पारसनाथ की धरती जैन समुदाय का सबसे उच्चतम तीर्थस्थल है। संसार की सभी मोह माया को जो त्याग सके वही साधु होता है। साधु के चरण में ही भगवान है। क्योंकि साधु ही धैर्य, क्षमा, संयम आदि पर विश्वास रखते हैं। वे खुद जैन धर्म के विचारों को मानते हैं।