NIT राउरकेला के रिसर्चर ने किया आविष्कार, नवीन सेमीकंडक्टर डिवाइस आधारित बायोसेंसर किया विकसित 

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (एनआईटी राउरकेला) के रिसचर्स ने एक नवीन सेमीकंडक्टर डिवाइस आधारित बायोसेंसर विकसित किया है। यह डिवाइस जटिल या महंगी प्रयोगशाला प्रक्रियाओं की आवश्यकता के बिना स्तन कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर सकता है।

NIT राउरकेला के रिसर्चर ने किया  आविष्कार, नवीन सेमीकंडक्टर डिवाइस आधारित बायोसेंसर किया विकसित 
  • स्तन कैंसर के लिए  नया बायो सेंसर
  • सस्ती और सुलभ तकनीक

राउरकेला। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला (एनआईटी राउरकेला) के रिसचर्स ने एक नवीन सेमीकंडक्टर डिवाइस आधारित बायोसेंसर विकसित किया है। यह डिवाइस जटिल या महंगी प्रयोगशाला प्रक्रियाओं की आवश्यकता के बिना स्तन कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर सकता है।
यह भी पढ़ें: Dhanbad: कोयलांचल में अवैध लॉटरी का कारोबार, विरोध में धरना-प्रदर्शन
यह रिसर्च इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रसन्न कुमार साहू के नेतृत्व में उनकी शोधार्थी डॉ. प्रियंका कर्मकार के साथ किया गया है। इस रिसर्च के निष्कर्ष प्रतिष्ठित माइक्रोसिस्टम्स टेक्नोलॉजीज जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में घातक बीमारियों की बढ़ती घटनाओं ने जैव-अणु मूल्यांकन और देखभाल केन्द्र परीक्षण पर वैश्विक ध्यान केंद्रित किया है। इन बीमारियों में से कैंसर एक प्रमुख वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। इस संदर्भ में, भारत में पिछले कुछ दशकों में स्तन कैंसर के मामलों में तीव्र वृद्धि देखी गई है। 
कैंसर का पता लगाने के लिए सरल, तीव्र और सस्ती जांच टेकनीक
कैंसर कोशिकाएं प्रायः प्रगति के कोई प्रारंभिक लक्षण नहीं दिखातीं, इसलिए रोग को फैलने से रोकने तथा समय पर उपचार उपलब्ध कराने के लिए शीघ्र पता लगाना आवश्यक है। वर्तमान में, कैंसर का पता लगाने के लिए कई तरीके हैं, जैसे एक्स-रे, मैमोग्राफी, एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट एसे (एलिसा), अल्ट्रासोनोग्राफी और मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई), लेकिन इनमें से अधिकांश के लिए विशेष उपकरण और प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
इसके अलावा, ये विधियां आमतौर पर दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सुलभ नहीं हैं। कोविड-19 महामारी ने इन चुनौतियों को और उजागर कर दिया है, क्योंकि चिकित्सा संसाधनों के स्थानांतरण के कारण कैंसर के निदान और उपचार में देरी हो रही है।इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कैंसर का पता लगाने के लिए सरल, तीव्र और सस्ती जांच तकनीकों की आवश्यकता है जो जटिल बुनियादी ढांचे पर निर्भर न हों।
कोविड में दिखी चुनौतियों के बाद बनाया टनल फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, डॉ. साहू और उनकी टीम ने कैंसर कोशिकाओं के भौतिक गुणों का उपयोग करके उनकी पहचान करने की एक नई विधि प्रस्तावित की है।कैंसरग्रस्त स्तन ऊतक, जिसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है तथा जो स्वस्थ ऊतक की तुलना में अधिक सघन होता है। माइक्रोवेव विकिरण के प्रति भिन्न प्रकार से प्रतिक्रिया करता है। इन अंतरों को डाइइलेक्ट्रिक गुण कहा जाता है, जो स्वस्थ और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के बीच अंतर करने में मदद कर सकते हैं।
इस सिद्धांत का उपयोग करते हुए, अनुसंधान दल ने टीसीएडी सिमुलेशन परिणामों के आधार पर ‘टीएफईटी’ (टनल फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर) नामक एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण प्रस्तावित किया है, जो स्तन कैंसर कोशिकाओं की प्रभावी रूप से पहचान कर सकता है। एफईटी का उपयोग आमतौर पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है। यहां उन्हें जैविक तत्वों का संवेदनशील डिटेक्टर बनाने के लिए अनुकूलित किया गया है। पारंपरिक परीक्षणों के विपरीत, इस बायोसेंसर को कार्य करने के लिए किसी रसायन या लेबल की आवश्यकता नहीं होती है। 
कैंसरग्रस्त और स्वस्थ स्तन कोशिकाओं के बीच अंतर प्रभावी ढंग से लगता है पता
निष्कर्ष बताते हैं कि यह सेंसर उच्च घनत्व और पारगम्यता वाले टी47डी कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने में अत्यधिक संवेदनशील है।यह कैंसरग्रस्त और स्वस्थ स्तन कोशिकाओं के बीच प्रभावी ढंग से अंतर करने में सक्षम है और मौजूदा तकनीकों की तुलना में बेहतर संवेदनशीलता प्रदान करता है।इस तकनीक की एक और महत्वपूर्ण विशेषता इसकी लागत-प्रभावी प्रकृति है। टीएफईटी आधारित बायोसेंसर पारंपरिक परीक्षण विधियों की तुलना में बहुत सस्ते हैं।
इस प्रौद्योगिकी में भविष्य के चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिए काफी संभावनाएं हैं और इससे कम लागत वाले, उपयोग में आसान उपकरणों का विकास हो सकता है, जो क्लीनिकों, मोबाइल परीक्षण इकाइयों और घरों में स्तन कैंसर का शीघ्र पता लगाने में सक्षम होंगे।  प्रयोग के अगले चरण के रूप में, अनुसंधान दल इस विकसित प्रौद्योगिकी के विनिर्माण और वैज्ञानिक सत्यापन के लिए संभावित औद्योगिक सहयोग की खोज कर रहा है।
एनआइटीआर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग,  प्रो. प्रसन्न कुमार साहू का कहना है कि प्रस्तावित विधि में ट्रांजिस्टर के गेट क्षेत्र के नीचे एक छोटी कैविटी बनाई जाती है, जिसमें जैविक कोशिकाओं के बराबर सामग्री रखी जाती है, और डिवाइस की संवेदनशीलता की जांच की जाती है। सेंसर नमूने के गुणों के आधार पर विद्युत संकेतों में परिवर्तन को पढ़ता है और निर्धारित करता है कि कोशिकाएं कैंसरग्रस्त हैं या स्वस्थ। चूंकि टी47डी जैसी कैंसर कोशिकाओं में एसीएफ-10ए जैसी स्वस्थ कोशिकाओं की तुलना में उच्च डाइइलेक्ट्रिक कॉन्स्टैंट अधिक होता है, इसलिए सेंसर इन अंतरों को शीघ्रता और सटीकता से पकड़ लेता है।