सुप्रीम कोर्ट ने कहा-डिप्रेशन की स्थिति दिमाग का पागलपन नहीं, क्राइम की मिलेगी सजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डिप्रेशन की स्थिति या डिप्रेशन की हालत को मानसिक पागलपन नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थिति में किये गये क्राइम की सजा मिलेगी। इस स्थिति में क्रिमिनल को आईपीसी की धारा-84 के बचाव का लाभ नहीं दिया जा सकता।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डिप्रेशन की स्थिति या डिप्रेशन की हालत को मानसिक पागलपन नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थिति में किये गये क्राइम की सजा मिलेगी। इस स्थिति में क्रिमिनल को आईपीसी की धारा-84 के बचाव का लाभ नहीं दिया जा सकता। अपने फैसले में जस्टिस आर एफ नरीमन की बेंच ने एक आर्मी स्टाफ को डिसमिस करने के सशस्त्र बल अधिकरण के फैसले को सही ठहराते हउए उसे पेंशन का लाभ भी देने से इंकार कर दिया।
आर्मी स्टाफ ने अपने सीनियर पर हमला किया था। जब उसे पकड़ा गया तो उसने कहा कि यह काम उससे डिप्रेशन के कारण हो गया। क्योंकि वह कई दिनों से डिप्रेशन में चल रहा था। कोर्ट ने कहा कि धारा 84 का बचाव मेकनोटन सिद्धांत पर आधारित है। यानी पागलपन ऐसा हो कि जैसे किसी के सिर को नारियल की तरह से कुचल/फोड़ देना, इस बचाव के लिए इस स्तर का पागलपन होना जरूरी है। डिप्रेशन कोई दिमागी पागलपन नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि आप समझते है कि आर्मी जैसे संगठन में आप अपने सीनियर का सिर पत्थर से फोड़ दें और आपको इससे बरी कर दिया जाए, यह नहीं हो सकता। आपकी डिसमिसल का आदेश सही है, आपके जैसे लोग आर्मी में नहीं होने चाहिए। कोर्ट ने उसे कुछ पेंशन लाभ देने से भी इंकार करते हुए कहा कि कोर्ट को नहीं लगता कि ऐसे व्यक्ति को पेंशनरी लाभ दिए जाने चाहिए।
आर्मी कोर्ट ने कांस्टेबल परवीन कुमार पाल को अपने सीनियर पर पत्थर से हमला करने पर वर्ष 2018 में आर्मी से निकाल दिया था। इस फैसले को लखनऊ सैन्य अधिकरण ने सही ठहराया था। आरोपी ने इस फैसले को उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।