बिहार: मुकेश सहनी को VIP की हार में भी नजर आ रही 'जीत', BJP से हिसाब-किताब किया बराबर
बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आरजेडी कैंडिडेट अमर कुमार पासवान ने बीजेपी कैंडिडेट बेबी कुमारी को लगभग 36 हजार वोटों से पराजित कर दियाहै। सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी के प्रत्याशी डा. गीता कुमारी तीसरे नंबर पर रही। बीजेपी की हार की खुशी इतनी है कि सहनी मिठाइयां बांट रहे हैं।
- अपनी सीट गंवाकर मुकेश सहनी ने बांटी मिठाई
- कहा- बीजेपी की हार से हमने हासिल किया टारगेट
पटना। बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आरजेडी कैंडिडेट अमर कुमार पासवान ने बीजेपी कैंडिडेट बेबी कुमारी को लगभग 36 हजार वोटों से पराजित कर दियाहै। सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी के प्रत्याशी डा. गीता कुमारी तीसरे नंबर पर रही। बीजेपी की हार की खुशी इतनी है कि सहनी मिठाइयां बांट रहे हैं।
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वीआइपी सुप्रीमो को पार्टी की इस हार में भी जीत नजर आ रही है। उन्हें इस हार में भी अपना भविष्य दिख रहा है। हालांकि बोचहां विधानसभा में सहनी वोटरों की जितनी संख्या है और जो वोट उनकी पार्टी को मिले हैं, उसमें साफ अंतर देखा जा सकता है। इससे यह कहा जा रहा है कि मल्लाह वोट में भी सेंधमारी हुई है। सभी वोट मुकेश सहनी को नहीं मिले।
पार्टी की हार के बाद भी मुकेश सहनी गदगद
बोचहां विधानसभा सीट लगभग दो माह से बिहार की पॉलिटिक्स के केंद्र में बनी हुई है। इस सीट से जीते वीआइपी के एमएलए मुसाफिर पासवान के निधन के बाद हुए उपचुनाव का रिजल्ट शनिवार को घोषित कर दिया गया है। इसमें राजद को जीत मिली है। बीजेपी दूसरे और वीआइपी तीसरे स्थान पर रही है। चुनाव से ठीक पहले वीआइपी के तीनों एमएलए बीजेपी में शामिल हो गये। एनडीए से वीआइपी सुप्रीमो मुकेश सहनी को निकाला गया। बीजेपी का प्रेशर पर नीतिश कैबिनेट से मुकेश सहनी को बर्खास्त कर दिया गया। मुसाफिक पासवान के पत्र अमर पासवान आरजेडी में शामिल हो गये। आरजेडी ने अमर को अपना कैंडिडेट बनाया। इसके मुकेश सहनी ने रमई राम की बेटी डा. गीता कुमारी को उतार बोचहां में कैंप ही कर दिया।
खासकर सहनी बहुल इलाकों में खूब प्रचार प्रसार किया। लोगों को अपने अपमान की बात बताई। जाति की दुहाई दी। इसका प्रभाव साफ तौर पर यहां नजर आया। कभी बीजेपी के आधार वोटर रहे सहनी समाज के लोगों का उनसे जुड़ाव कम होता चला गया। इसी कारण से यहां बीजेपी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि वीआइपी की हार के बाद भी मुकेश सहनी गदगद हैं। उन्हें लग रहा है कि उन्होंने बीजेपी से अपना हिसाब-किताब पूरा कर लिया। वीआईपी भले ही हार गयी लेकिन बीजेपी को यहां से जीतने नहीं दिया।
वीआइपी को नहीं मिल पाया सहनी समाज का पूरा वोट
मल्लाह समाज के एक नेता ने कहा कि इस समाज का पूरा वोट वीआइपी नहीं मिला। इसमें सेंधमारी नजर आई। आरजेडी और बीजेपी दोनों को सहनी वोट मिले हैं। वहीं अब लोग मुकेश सहनी के राजनीतिक भविष्य को लेकर भी सवाल पूछने लगे हैं। क्योंकि अब बिहार विधानमंडल में उनकी स्थिति फिर से जीरो होने वाली है। देखने वाली बात यह होगी कि क्या राजद उन्हें एमएलसी चुनाव के समय रिचार्ज कूपन देगा या फिर उनकी राजनीतिक शक्ति शून्य हो जायेगी। मुकेस सहनी राजनीतिक शैली को लेकर अब भी लोग सवाल उठा रहे हैं। कहा जा रहा है कि केवल एक जाति के नेता के रूप में अपनी पहचान बनाकर अधिक दिनों तक राजनीति में टिक कर रहा नहीं जा सकता है। वहीं हमेशा इमोशनल कार्ड भी नहीं चलने वाला है। इसलिए वे फिर से आरजेडी के साथ जाएं या कांग्रेस से मिलें, टिक कर रहना होगा। वे अकेले चुनाव में जीत हासिल करने की कूबत अभी नहीं रखते हैं। इसलिए उन्हें किसी न किसी दल का साथ तो लेना ही होगा। यदि वे अपेक्षित बदलाव कर लेते हैं तो उनकी राजनीतिक गाड़ी आगे बढ़ेगी, अन्यथा बोचहां जैसे परिणाम देखने को मिलेंगे।
वीआईपी के साथ गलत हुआ था, जनता ने साबित किया
मुकेश सहनी ने बोचहा उपचुनाव में जनता के मिले फैसले को स्वीकार करते हुए कहा कि जनता ने विवेक से अपना वोट दिया। उन्होंने वीआईपी को 18 परसेंट वोट मिलने पर वहां के मतदाताओं के प्रति आभार जताया है। सहनी ने कहा कि बोचहा की जनता ने अहंकारी और लोकतंत्र में छल कपट करने वाली पार्टी को परास्त कर साबित कर दिया कि लोकतंत्र में अहंकार की कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि वीआईपी के साथ जो व्यवहार किया गया था, उसे यहां की जनता ने भी अपने वोटों साबित कर दिया। इससे पता चलता है कि वीआईपी के साथ गलत हुआ था।
हमेशा मल्लाहों की आवाज बने रहेंगे
सहनी ने कहा कि बोचहा उपचुनाव में 29,279 (लगभग18 परसेंट) वोट देकर अति पिछड़ा , निषाद समाज ने साबित कर दिया कि वे वीआईपी पार्टी के मात्र वोटर ही नहीं बल्कि मजबूत कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि बोचहा के रिजल्ट से उत्साह बढ़ा है। वीआईपी प्रारंभ से ही अपनी नीतियों और मांगों को लेकर संघर्ष कर रही है। वीआईपी के लिए चुनाव जीतना या हारना मायने नहीं रखता। हमारे लिए वे नीतियां प्रमुख हैं, जिसके लिए वीआईपी का उदय हुआ है। उन्होंने लोगों को भरोसा देते हुए कहा कि चुनाव आते जाते रहेंगे। लेकिन हम अपने कर्तव्य पथ पर चलकर अत्यंत पिछड़े और मल्लाहों की आवाज बनते रहेंगे।