IIT ISM में दलित युवक जमा नहीं कर पाया 17,500 रुपये, एडमिशन नहीं हो सका, सुप्रीम कोर्ट से जगी उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट ने आइआइटी की एग्जाम करनेवाले गरीब दलित युवक अतुल कुमार(18) को मदद का आश्वासन दिया है। अतुल IIT ISM धनबाद में लास्ट डेट तक “17,500 फीस जमा नहीं करा पाया। इस कारण अपनी सीट गवां दी। सीजेआइ डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मंगलवार को अतुल के वकील से कहा कि हम आपकी यथासंभव मदद करेंगे।
धनबाद। सुप्रीम कोर्ट ने आइआइटी की एग्जाम करनेवाले गरीब दलित युवक अतुल कुमार(18) को मदद का आश्वासन दिया है। अतुल IIT ISM धनबाद में लास्ट डेट तक “17,500 फीस जमा नहीं करा पाया। इस कारण अपनी सीट गवां दी। सीजेआइ डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मंगलवार को अतुल के वकील से कहा कि हम आपकी यथासंभव मदद करेंगे। यह भी पढ़ें:Jharkhand: विधानसभा चुनाव से पहले 40 DSP का ट्रांसफर
हालांकि बेंच ने पूछा कि आप पिछले तीन महीनों से क्या कर रहे थे? फीस जमा करने की निर्धारित समय सीमा 24 जून को समाप्त हो गयी है। अतुल के माता-पिता सीट पक्की करने के लिए 17,500 की फीस 24 जून तक जमा करने में विफल रहे थे। वकील ने दलील दी कि आइआइटी, धनबाद में सीट आवंटित होने के मात्र चार दिन बाद यानी 24 जून की शाम पांच बजे तक 17,500 रुपये का इंतजाम करना स्टूडेट के लिए बहुत मुश्किल काम था। बेच ने दलीलें सुनने के बाद इस वर्ष की इंटरेंस एग्जाम आयोजित करने वाले आइआइटी, मद्रास के संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण को नोटिस जारी किया।
अतुल ने बड़ी ही मेहनत और लगन से देश की सबसे कठिन एग्जाम में से एक जेईई एडवांस एग्जाम को पास किया। अतुल ने नौ जून को अपने भाई के लैपटॉप से रिजल्ट देखा तो वह खुश हुआ। अतुल ने अपनी कड़ी मेहनत से आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में सीट हासिल की। लेकिन 24 जून तक उसे यह सीट लॉक करने के लिए 17500 रुपये जमा कराने थे। लेकिन दुर्भाग्य से समय खत्म होने से तीन मिनट पहले तकनीकी समस्या के कारण वह पैसे जमा नहीं कर पाया। इस कारण उसे आईआईटी आइएसएम की सीट गंवानी पड़ी।आईआईटी धनबाद में अपनी सीट पक्की की, लेकिन 17,500रूपये जमा नहीं करने के कारण सीट पक्की नहीं हो सका।
अतुल ने झारखंड के एक सेंटर से जेइइ की एग्जाम दी थी, इसलिए उसने झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का रुख किया। प्राधिकरण ने उसे मद्रास हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया। क्योंकि परीक्षा आइआइटी, मद्रास ने आयोजित की थी। हाइकोर्ट ने उसे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। इसके माता-पिता ने सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति का भी दरवाजा खटखटाया था।लेकिन आयोग ने भी उसकी मदद करने में असमर्थता जतायी। अंतत: अतुल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अतुल ने जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जेबी पार्दीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच को बताया कि यह उसका अंतिम प्रयास है। अगर उसे एडमिशन नहीं मिला तो वह सीट खो देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने केस को सुनने के बाद इसे 30 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए नोटिस जारी किया जा सकता है जिससे कि यह पता चल सके याचिकाकर्ता के लिए क्या किया जा सकता है।
अतुल के पिता राजेन्द्र कुमार एक ट्रांसफार्मर फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर हैं। वे महीने का 12000 रुपये कमाते हैं। राजेंद्र का सपना था कि उनका बेटा इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने। राजेंद्र कहते हैं कि रोटी चाहे आधी खाएं लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ायें। राजेंद्र ने कहा कि समय खत्म होने के बाद उन्होंने आईआईटी धनबाद में फोन किया। यहां तक अतुल जिस कोचिंग सेंटर में पढ़ाई कर रहा था उसने यह प्रयास किया लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
अतुल के पिता कहते हैं कि वह भाग्यशाली हैं कि उनके केस की सुनवाई चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच कर रही है। वह कहते हैं कि जिस तरह से तीन साल पहले चीफ जस्टिस ने ऐसे ही केस में न्याय दिया था वैसे ही चीफ जस्टिस उनके बेटे के साथ न्याय करेंगे।
अतुल के पिता 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र कर रहे थे जिसमें एक दलित छात्र समय पर फीस न जमा कर पाने की वजह से आईआईटी बॉम्बे में एडमिशन नहीं ले पाया था। तब प्रिंस जयवीर सिंह बनाम भारत संघ के केस में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने छात्र के हक में फैसला सुनाया था। उसे आईआईटी बॉम्बे में एडमिशन की अनुमति दी थी।उल्लेखनीय है कि जयबीर केस में भी अतुल के वकील अमोल चितले और प्रज्ञा बघेल ने ही प्रतिनिधित्व किया था।