Jharkhand: एक्स मिनिस्टर कृष्णानंद झा का निधन, CM हेमंत सोरेन ने जताया शोक
बिहार के एक्स मिनिस्टर कृष्णानंद झा का रविवार को निधन हो गया। राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता, शालीनता, सौम्यता के धनी कृष्णानंद झा लंबे समय से बीमार चल रहे थे।
देवघर। बिहार के एक्स मिनिस्टर कृष्णानंद झा का रविवार को निधन हो गया। राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता, शालीनता, सौम्यता के धनी कृष्णानंद झा लंबे समय से बीमार चल रहे थे।
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बिहार सरकार में पूर्व मंत्री और मधुपुर से पूर्व विधायक, शिक्षाविद आदरणीय श्री कृष्णानंद झा जी के निधन की दुःखद खबर मिली। सौम्य व्यक्तित्व के धनी थे कृष्णानंद जी।
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) December 15, 2024
परमात्मा दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान कर शोकाकुल परिवारजनों को दुःख की यह विषम घड़ी सहन करने की शक्ति और साहस दे। pic.twitter.com/Wg4NrCDzLK
सीएम हेमंत सोरेन ने जताया दुख
सीएम हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करके एक्स मिनिस्टर कृष्णानंद झा के निधन पर दुख जताया है। उनके निधन की खबर सुनकर सभी हतप्रभ हैं। देवघर के लोग उनको अभिभावक संबोधित करते थे। निधन की खबर लगते ही उनके आवास पर भीड़ उमड़ पड़ी है।
कृष्णानंद झा एक्स सीएम पंडित विनोदानंद झा के पुत्र थे। वे बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके थे। वह एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने कभी भी शुचिता से समझौता नहीं किया। राजनीतिक आंगन की बगिया में आदर्शों की खुशबू लेकर बड़े हुए। उसी को समेटे इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
आदर्शों पर चलने वाले राजनेता थे कृष्णानंद झा
कृष्णानंद झा के पिता स्वर्गीय पंडित विनोदानंद झा 1961 में बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उस समय पंडित नेहरू पटना पर उनके आवास पर आये थे। पिता के मुख्यमंत्रित्व काल और अपने मंत्रीत्वकाल में उन्होंने अपने आदर्श से कोई समझौता नहीं किया।वे पहली बार 1983 में चंद्रशेखर प्रसाद सिंह के कार्यकाल में सिंचाई एवं राजभाषा मंत्री बने। इसके बाद सत्येंद्र नारायण सिंह सरकार ने सिंचाई, राजभाषा के साथ विधानसभा प्रश्नोत्तर समन्वय का जिम्मा दिया।कृष्णानंद झा ने तीन बार मधुपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया।
इंदिरा गांधी के स्वागत की मिली थी जिम्मेदारी
पहली बार जब इंदिरा गांधी का कार्यक्रम धनबाद में हुआ था तो उनके स्वागत का जिम्मा कृष्णानंद झा को ही दिया गया था। राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यों की गौरवशाली यात्रा में कई पड़ाव आये परंतु उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।सरकार में रहते राजभाषा के उत्थान का जो जिम्मा मिला। वह सरकार से हटने के बाद भी जारी रहा। अखिल भारतीय स्तर की संस्था हिंदी विद्यापीठ के व्यवस्थापक बनकर उसे अंतिम सांस तक आगे बढ़ाते रहे। हिन्दी विद्यापीठ के आजीवन कुलाधिपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।