40 लाख की नौकरी छोड़ आइआइटीयन अविरल व हीरा कारोबारी समेत पांच बने जैन मुनि
जैन तीर्थनगरी मधुबन में दीक्षा महोत्सव में दिगंबर जैन मुनि बने आइआइटीयन अविरल, हीरा कोरोबारी ब्रजेश समेत पांच युवक जैन मुनि बन गये। पांचों ने जैन मुनि के रूप में पहली बार सोमवार को खड़े होकर अपने हथेलियों पर भोजन किया और पानी पी। मंदिर में दर्शन करने के बाद पांचों अलग-अलग जगहों पर आहार के लिए रूके। मुनियों ने जिनका आमंत्रण स्वीकार किया, वह परिवार धन्य हो गया।
- पांचों ने पहली बार किया हथेली पर भोजन
- मधुबन के तेरहपंथी कोठी परिसर में दीक्षा महोत्सव का आयोजन
गिरिडीह। जैन तीर्थनगरी मधुबन में दीक्षा महोत्सव में दिगंबर जैन मुनि बने आइआइटीयन अविरल, हीरा कोरोबारी ब्रजेश समेत पांच युवक जैन मुनि बन गये। पांचों ने जैन मुनि के रूप में पहली बार सोमवार को खड़े होकर अपने हथेलियों पर भोजन किया और पानी पी। मंदिर में दर्शन करने के बाद पांचों अलग-अलग जगहों पर आहार के लिए रूके। मुनियों ने जिनका आमंत्रण स्वीकार किया, वह परिवार धन्य हो गया।
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सांसारिक मोह-माया एवं ग्लैमर के चकाचौंध व भौतिक सुखों को छोड़कर युवा आइआइटीयन अविरल व हीरा कारोबारी समेत पांच युवा संन्यासी बन गये हैं। दिल्ली के रहने वाले आइआइटीयन अविरल(27) 40 लाख के पैकेज पर एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहे थे। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के ब्रजपुर निवासी व हीरा व्यवसायी ब्रजेश (46), दिल्ली निवासी आइआइटीयन अविरल (27), मध्य प्रदेश इंदौर के गवर्नमेंट ऑफिसर के पुत्र स्वातम (19), बड़े किसान परिवार के भोपाल के संजय (36) एवं मध्य प्रदेश के ही भिंड के स्नातक अंकुश (25) पांचों युवक सांसारिक मोह-माया त्यागकर संन्यास ग्रहण कर दिग्बंर जैन सन्यासी बन गये हैं। दिगंबर जैन मुनि बने आइआइटीयन अविरल का नया नाम मुनि श्री 108 निसंग सागर जी महाराज हो गया है।स्वातम का नया नाम मुनि श्री 108 निर्ग्रंथ सागर जी महाराज, बृजेश का नया नाम मुनि श्री 108 निर्मोह सागर जी महाराज , संजय का नया नामकरण मुनि श्री 108 निवृत्त सागर जी महाराज व अंकुश का नया नामकरण मुनि श्री 108 निर्विकल्प सागर जी महाराज के रूप में हुआ। इसकी घोषणा दीक्षा महोत्सव में उनके गुरु आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज ने की थी।
दीक्षार्थियों का केश लोचन, शाही स्नान
सभी दीक्षार्थियों का केस लोचन कार्यक्रम किया गया. इसके बाद सभी दीक्षार्थियों को शाही स्नान कराया गया। दूध, दही, घी, केसर, हल्दी, चंदन आदि से सभी को स्नान कराया गया। दीक्षा संस्कार के साथ सभी दीक्षार्थियों का वस्त्र त्याग हुआ।
दीक्षा के लिए श्रीफल लेकर निवेदन किया
वर्ल्ड के सबसे बड़े जैन तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखरजी मधुबन में आयोजित जैनेश्वरी मुनि दीक्षा समारोह में जैन मुनि की दीक्षा दी गयी। इनके गुरू प्रसिद्ध जैन संत आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज ने दीक्षा दिया। विशुद्ध सागरजी महाराज से प्रभावित होकर ही पांचों ने जैन मुनि बनकर मोक्ष प्राप्ति का रास्ता चुना है। सांसारिक जीवन त्यागकर साधु बनने के गवाह पांचों के परिजन भी दीक्षा समारोह में उपस्थित थे। दीक्षा देने के पूर्व इनके मांगलिक कार्य गोद भराई हो चुकी है।
अविरल ने विशुद्ध सागरजी महाराज से मिलकर चुना संन्यास का मार्ग
अविरल ने वर्ष 2015 में आइटीआइ वाराणासी से कंप्यूटर साइंस में पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद वर्ष 2015 में ही उसने बंगलुरू में गोल्ड मेन एसएसीएचएस कंपनी में बंगलुरू में नौकरी ज्वाइन की। 40 लाख रुपये सालाना पैकेज थी। जीवन शानदार चल रहा था। न्यूयार्क समेत विदेशों का भी भ्रमण किया था। फुटबाल खेलना और बाइक चलाना उन्हें पसंद था। उन्होंने वर्ष 2018 में बंगलुरू में आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज का दर्शन किया। वहां आदित्य सागरजी महाराज का चातुर्मास चल रहा था। अविरल ने विशुद्ध सागरजी महाराज का दर्शन करते ही उन्होंने तय कर लिया कि अब संसार की दौड़ में अपना जीवन खराब नहीं करना है। सन्यासी बनना है। इस फैसले का पहले घर वालों ने विरोध किया। समझाने की कोशिश की कि घर पर रहकर ही साधु का जीवन जीओ। ब्रम्हचर्य का पालन करो।अविरल ने घर वालों को समझाया कि जीवन का सही रास्ता यही है जो वह चुन रहा है। इसके बाद घर वाले मान गए। दोस्तों ने भी साधु बनने के उसके फैसले का विरोध किया और समझाने की कोशिश की। अविरल उल्टे सभी को समझाने में सफल हो गया। अवरिल फरवरी 2019 में नौकरी छोड़ विशुद्ध सागरजी महाराज के शिष्य बन गये। जैन मुनि बनने की सारी अहर्ता को पूरा करने में उसे लगभग ढ़ाई साल लग गये।
करोड़ों के हीरे का बिजनस भी नहीं रोक सका ब्रजेश के साधु बनने का रास्ता
मध्य प्रदेश के पन्ना जिला के ब्रजपुर निवासी बालचंद्र जी जैन का हीरों का कारोबार है। वर्ष 90 से बालचंद्रजी का परिवार आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज के संपर्क में है। बालचंद्रजी के हीरे का कारोबार उनके साथ उनके पुत्र ब्रजेश संभाल रहे थे। विशुद्ध सागरजी महाराज के सानिध्य में रहने का असर ब्रजेश पर पड़ा। धन-दौलत का आकर्षण उसे साधु बनने से रोक नहीं सका। उसने ब्रम्हचर्य का पालन किया। विवाह नहीं किया। एक दिन उसने साधु बनने के अपने फैसले की जानकारी अपने घर वालों को दी। सभी ने उसके फैसले का सम्मान किया।