नई दिल्ली: सेंट्ल गवर्नमेंट ने रेमडेसिविर के निर्यात पर लगाई रोक
सेंट्रल गवर्नमेंट ने देश में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच इस वैश्विक महामारी के इलाज में उपयोगी साबित हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन और इसके कच्चे माल (एपीआइ) के निर्यात पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है।
- देश में रेमडेसिविर दवा की कलाबजारी के कई मामले दर्ज
नई दिल्ली। सेंट्रल गवर्नमेंट ने देश में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच इस वैश्विक महामारी के इलाज में उपयोगी साबित हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन और इसके कच्चे माल (एपीआइ) के निर्यात पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है।
सेंट्रल गवर्नमेंट ने रविवार को यह फैसला तब किया जब देश के कई हिस्सों में एंटी वायरल ड्रग रेमडेसिविर की कमी होने की सूचनाएं आने लगीं। कोरोना पेसेंट की संख्या काफी बढ़ने के साथ ही रेमडेसिविर का इस्तेमाल भी देश के डॉक्टर बड़ी संख्या में कर रहे हैं। इंडिया ने ऑफिसियल तौर पर पहली बार कोरोना महामारी से जुड़ी किसी दवा या इंजेक्शन के निर्यात पर रोक लगाई है। वैसे पिछले एक पखवाड़े से कोरोना की वैक्सीनों के निर्यात की स्पीड काफी धीमी कर दी गई है।
सेंट्रल हेल्थ मिनिस्टरी की ओर से जारी सूचना में बताया गया कि 11 अप्रैल, 2021 तक देश में कोविड के एक्टिव मरीजों की संख्या 11.08 लाख पहुंच गई है। संख्या अभी भी बढ़ रही है। इससे कोविड से प्रभावित रोगियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग काफी बढ़ गई है। इसकी मांग और बढ़ने की संभावना है। रेमडेसिविर अमेरिकी कंपनी गिलीड साइंसेज की इजाद है जिसे अभी सात भारतीय कंपनियां स्वैच्छिक लाइसेंसिंग समझौते के तहत भारत में घरेलू उपयोग और 100 से अधिक देशों में निर्यात के लिए बना रही हैं। सिप्ला लिमिटेड, डॉ.रेड्डी सहित अभी इन भारतीय कंपनियों की कुल उत्पादन क्षमता 38.8 लाख यूनिट प्रति माह है। इन सभी हालात को देखते हुए इंडियन गवर्नमेंट ने रेमडेसिविर इंजेक्शन और रेमडेसिविर एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआइ) के निर्यात पर रोक लगा दी है।
सेंट्रल गवर्नमेंट ने यह स्पष्ट किया कि हालात सुधरने तक यह रोक लगाने का फैसला किया गया है।गवर्नमेंट की ओर से देश के अस्पतालों व चिकित्सा केंद्रों पर इसकी उपलब्धता को ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए भी कुछ कदम उठाये हैं। जैसे रेमडेसिविर बनाने वाली सभी कंपनियों जैसे बायोकॉन, जुबैलेंट लाइफ, कैडिला हेल्थकेयर आदि को कहा गया है कि वो अपनी वेबसाइट पर इस दवा के सारे स्टाकिस्टों व वितरकों का वितरण सार्वजनिक करें। ताकि दवा लेने वाले उन तक आसानी से पहुंच सकें। ड्रग इंस्पेक्टरों व दूसरे जांच अफसरों को निर्देश दिया गया है कि वो सूचना के मुताबिक स्टॉक का परीक्षण करें और यह सुनिश्चित करें कि किसी तरह की गड़बड़ी ना हो। अगर कहीं ब्लैक मार्केटिंग या जमाखोरी की सूचना हो तो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को कहा गया है कि वो ड्रग इंस्पेक्टरों के साथ मिल कर उस आदेश के पालन को सुनिश्चित करें।
फार्मास्यूटिकल्स डिपार्टमेंट को कहा गया कि वह कंपनियों के साथ मिल कर इसका प्रोडक्शन बढ़ाने की व्यवस्था करें। सेंट्रल की ओर से सभी राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे सरकार के फैसले को सभी निजी व सरकारी अस्पतालों तक पहुंचाएं और इनके पालन की निगरानी करें। भारतीय दवा नियामकों और कुछ राज्यों का कहना है कि हाल के दिनों में इस दवा की जमाखोरी शुरू हो गई है। कुछ जगहों पर तो इसे एमआरपी (मैक्सिमम रिटेल प्राइस) से दस गुना अधिक दाम पर बेचा जा रहा है।