निशिकांत दूबे ने किया ट्वीट- हेमंत सोरेन जी अब आपको कौन बचायेगा... वकील ,मैनेजर दोनों फेल हो गये...
बीजेपी के गोड्डा एमपी लगातार झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन पर आक्रामक तरीके से हमलावर हैं। निशिकांत दूबे ने सीएम हेमंत के माइंस लीज मामला और शेल कंपिनयों के मामले में सीबीआइ जांच पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के वकील और मैनेजर दोनों फेल हो गये। अब उन्हें कौन बचायेगा। अब झारखंड के राज्यसभा टिकट में मुख्यमंत्री जी कैसे निर्णय करेंगे?
रांची। बीजेपी के गोड्डा एमपी लगातार झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन पर आक्रामक तरीके से हमलावर हैं। निशिकांत दूबे ने सीएम हेमंत के माइंस लीज मामला और शेल कंपिनयों के मामले में सीबीआइ जांच पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के वकील और मैनेजर दोनों फेल हो गये। अब उन्हें कौन बचायेगा। अब झारखंड के राज्यसभा टिकट में मुख्यमंत्री जी कैसे निर्णय करेंगे?
झारखंड में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कितना गुमराह किया जा रहा है , न्यायालय ने यह कहा कि यदि व्यक्ति नहीं तो उच्च न्यायालय ख़ुद संज्ञान ले सकता है,@dir_ed की जॉंच चलती रहेगी,उच्च न्यायालय सभी क़ानूनी पहलुओं को देखे। कुछ लतखोर को यह बात समझ नहीं आई
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) May 24, 2022
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बीजेपी एमपी ने ने कहा कि भारत की न्यायपालिका ईमानदारी से कानून पर चलती है, दबाव से नहीं? झारखंड हाई कोर्ट में एक जून को सुनवाई तय होने पर निशिकांत ने कहा कि तब तक तो राज्यसभा की उम्मीदवारी तय हो जायेगी।एक और ट्वीट में निशिकांत दूबे ने कहा कि झारखंड में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कितना गुमराह किया जा रहा है, न्यायालय ने यह कहा कि यदि व्यक्ति नहीं तो उच्च न्यायालय खुद संज्ञान ले सकता है, प्रवर्तन निदेशालय की जांच चलती रहेगी, उच्च न्यायालय सभी कानूनी पहलुओं को देखे। कुछ लोगाें को यह बात समझ नहीं आई...
अब झारखंड के राज्यसभा टिकट में मुख्यमंत्री जी कैसे निर्णय करेंगे? सुप्रीम कोर्ट में वकील व मैनेजर दोनों फेल हो गए । भारत की न्यायपालिका ईमानदारी से क़ानून पर चलती है,दबाव से नहीं? दूसरा झारखंड हाईकोर्ट ने सुनवाई १ जून तय की, तबतक राज्य सभा का चुनाव सम्पन्न । जय हो
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) May 24, 2022
याचिका की वैधता की जांच करे हाई कोर्ट
सीएम हेमंत सोरेन को लीज आवंटित करने और उनके करीबियों के शेल कंपनी में निवेश के मामले हाई कोर्ट के आदेशों के खिलाफ दाखिल एसएलपी पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट पहले सरकार की ओर से याचिका की वैधता पर उठाये गये आपत्ति की सुनवाई करे। अगर याचिका सुनवाई योग्य है तो फिर कोर्ट मेरिट पर सुनवाई की जाए। इसके बाद हाई कोर्ट याचिका की वैधता पर सुनवाई के लिए एक जून की तिथि निर्धारित की है। इस मामले के सभी पक्षों से 31 मई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड व जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अदालत ने सरकार की एसएलपी पर सुनवाई करते हुए कहा कि झारखंड हाई कोर्ट पहले याचिका की वैधता पर सुनवाई करे। याचिका सुनवाई योग्य पाए जाने के बाद ही इसकी मेरिट पर सुनवाई की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वह केस की मेरिट पर कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा, जो मामला हाई कोर्ट में लंबित है। इसलिए हाई कोर्ट सबसे पहले याचिका की वैधता पर सुनवाई करे। इसके बाद अदालत ने सरकार की एसएलपी को निष्पादित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए सीनीयर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि यह याचिका राजनीतिक से प्रेरित है। इस मामले में प्रार्थी का परिवार सीएम हेमंत सोरेन के परिवार का विरोधी रहा है। उक्त याचिका में कई तथ्यों को छुपाया गया है। प्रार्थी के पिता ने दिल्ली में शिबू सोरेन के खिलाफ एक आपराधिक मामले में गवाही दी थी। इसमें उनको सजा हुई थी। दिल्ली हाई कोर्ट से शिबू सोरेन बरी हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट में बरी के आदेश के बरकरार रखा। इस तरह की याचिका को पहले भी झारखंड हाई कोर्ट ने 50 हजार रुपये हर्जाने साथ खारिज किया था। उस दौरान भी वही एडवोकेट इसकी पैरवी कर रहे थे, जो अभी इस केस में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आदेश को बरकरार रखा, लेकिन हर्जाने की राशि को हटा दिया था।
याचिका की वैधता पर सुनवाई करने से पूर्व ही कोर्ट ने ईडी के सीलबंद रिपोर्ट को देखा है और आगे की सुनवाई कर रही है। लीज आवंटन मामले में वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने अदालत को बताया कि जनहित याचिका में निजी दुश्मनी निकाली जा रही है। यह याचिका पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। मामले में चुनाव आयोग की ओर से नोटिस दिए जाने पर जवाब दिए जाने की कार्रवाई चल रही है। इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।ईडी की ओर से पक्ष रखते हुए सीनीयर एडवोकेट तुषार मेहता ने कहा कि वर्ष 2010 में खूंटी में हुए मनरेगा घोटाले में दर्ज 16 प्राथमिकी दर्ज है। मामले में ईडी जांच कर रही है। माइंस सेकरटेरी को अरेस्ट किया गया है।ईडी को कई चौकाने वाले दस्तावेज मिले हैं। अब तक की जांच में यह पाया गया है कि इस मामले में सत्ता के शीर्ष पर रहने वाले लोग भी शामिल हैं। इसी को सीलबंद लिफाफे में हमने अदालत के सामने रखा है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस केस की मेरिट पर कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं। हम हाई कोर्ट को निर्देश देते हैं कि वह याचिका की वैधता पर पहले सुनवाई करे। ऐसा कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की एसएलपी को निष्पादित कर दिया।
सभी पक्षों से 31 मई तक मांगा जवाब
झारखंड हाई कोर्ट में पहले इस मामले की सुनवाई सुबह 11 बजे निर्धारित थी, लेकिन इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण हाई कोर्ट में इसी सुनवाई 12 बजे शुरू की गई। राज्य सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को पहले याचिका की वैधता पर सुनवाई करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि न्याय और राज्य के हित में कोर्ट अवकाश में भी इसकी सुनवाई कर रही है। हेमंत सोरेन सरकार की ओरसे आवेदन देकर चार सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित करने की मांग की गई थी। इस पर चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है। इसमें पहले ही बहुत समय दिया जा चुका है, इसलिए इतना लंबा समय नहीं दिया जा सकता है। इसके बाद अदालत ने मामले में एक जून को सुनवाई निर्धारित की है। कोर्ट ने कहा कि 31 मई तक मामले से जुड़े सभी पक्ष अपना-अपना जवाब दाखिल कर दें। कोर्ट अब इस मामले में किसी को कोई समय नहीं देगी।
यह है मामला
सीएम को स्टोन माइंस लीज आवंटित करने और उनके करीबियों द्वारा शेल कंपनी में निवेश को लेकर हाई कोर्ट के अंतरिम निर्देश के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। झारखंड हाई कोर्ट ने ईडी को सीलबंद रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर कहा कि याचिका अभी सुनवाई के लिए स्वीकारभी नहीं की गई है और ईडी ने हाई कोर्ट कोर्ट में सीलबंद रिपोर्ट पेश कर दिया है। उक्त रिपोर्ट की प्रति सरकार को भी मिलनी चाहिए। बिना दस्तावेजों को सरकार इस मामले में जवाब दाखिल नहीं कर पाएगी। एसएलपी में याचिका की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि इसी तरह के आरोप वाली एक याचिका झारखंड हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी है। दोबारा उन्हीं तथ्यों को लेकर याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।