MP, MLA के खिलाफ पेंडिंग मामलों की तेजी से होगी सुनवाई, स्पेशल कोर्ट की स्थापना सुप्रीम कोर्ट राजी
एमपी व एमएलए के खिलाफ क्रिमिनल मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट की स्थापना की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की बेंच ने कहा कि, वह इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा, क्योंकि एमिकस क्यूरी और मामले में कोर्ट की सहायता कर रहे सीनीयर एडवोकेट विजय हंसरिया ने मामले का उल्लेख किया है।
नई दिल्ली। एमपी व एमएलए के खिलाफ क्रिमिनल मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट की स्थापना की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की बेंच ने कहा कि, वह इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा, क्योंकि एमिकस क्यूरी और मामले में कोर्ट की सहायता कर रहे सीनीयर एडवोकेट विजय हंसरिया ने मामले का उल्लेख किया है।
धनबाद: आग लगी कोयले को कर दी मालगाड़ी में लोड, लपटें देख मचा हड़कंप, फायर बिग्रेड ने बुझाया आग
सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने अपने एक ताजा रिपोर्ट में बताया कि, दिसंबर 2018 तक एमलए, एमपी व एमएलसी के खिलाफ कुल लंबित मामले 4,110 थे।र अक्टूबर 2020 तक ये 4,859 थे।एमिकस क्यूरी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि दो वर्षों में सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या 4,122 से बढ़कर 4,984 हो गई है, जो दर्शाता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक से अधिक व्यक्ति संसद और राज्य विधानसभाओं में जीतकर पहुंच रहे हैं। पिछले तीन वर्षों में 862 ऐसे मामलों की वृद्धि हुई है। इस अदालत द्वारा कई निर्देशों और निरंतर निगरानी के बावजूद 4,984 मामले लंबित हैं, जिनमें से 1,899 मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं।
उल्लेखनीय कि, 2016 के एक मामले में अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना, दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध और उनके खिलाफ मामलों के त्वरित निपटारे की मांग की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि 4,984 मामलों में से 3,322 मजिस्ट्रियल मामले हैं, जबकि 1,651 सत्र मामले हैं। इसमें से ऐसे लंबित मामलों में से 1,899 पांच साल से अधिक पुराने हैं, जबकि 1,475 ऐसे मामले दो से पांच साल की अवधि से लंबित हैं। उन्होंने कहा था कि, यह अत्यंत आवश्यक है कि लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए तत्काल और कड़े कदम उठाए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त में निर्देश दिया था कि संबंधित राज्य के हाई कोर्ट की अनुमति के बिना पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई मुकदमा वापस नहीं लिया जायेगा। निर्देश में उल्लेख किया गया था कि, स्पेशल कोर्ट में एमपी व एमएलए के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाले जस्टिस सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक अपने वर्तमान पदों पर बने रहेंगे।