Shibu Soren Death: शिबू सोरेन ने अलग राज्य से पहले कराया था स्वायत्तशासी परिषद का गठन, 2008 में परिसीमन रुकवाया
झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता शिबू सोरेन का निधन हो गया। उन्होंने न केवल झारखंड को अलग राज्य दिलाने में अहम भूमिका निभाई, बल्कि 1990 के दशक में स्वायत्तशासी परिषद का गठन कराया और 2008 में आदिवासी क्षेत्रों में परिसीमन को रुकवाया था।

- शिबू सोरेन का निधन: एक युग का अंत
रांची। झारखंड आंदोलन के जननायक और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन, जिन्हें लोग आदर से "गुरुजी" कहते थे, का निधन हो गया है। उनकी उम्र 80 वर्ष थी। उन्होंने न केवल झारखंड को अलग राज्य के रूप में स्थापित करवाने में केंद्रीय भूमिका निभायी, बल्कि आदिवासी अधिकारों और स्वशासन के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाये।
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Shibu Soren की राजनीतिक यात्रा
1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया
1980 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए
1986 में झामुमो के महासिचव बने
1989 में लोकसभा के लिए दूसरी बार चुने गये
1991 में तीसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित
1996 में चौथी बार लोकसभा के सदस्य बने
आ जुलाई 1998 से 18 जुलाई 2001 तक राज्यसभा के सदस्य रहे
10 अप्रैल 2002 से दो जून 2002 तक राज्यसभा के सदस्य रहे
2002 में पांचवीं बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए
मई 2004 में छठी बार लोकसभा के सदस्य बने
मई 2004 से 10 मार्च 2005 तक केंद्र में कोयला मंत्री रहे
जुलाई 2004 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया
दो मार्च 2005 से 11 मार्च 2005 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे
29 जनवरी 2006 से 28 नवंबर 2006 तक केंद्र में कोयला मंत्री बने
26 नवंबर 2006 को केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देना पड़ा
2009 में 15वीं लोकसभा में सातवीं बार सांसद चुने गये
31 अगस्त 2009 को कोयला और स्टील की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य बने
23 सितंबर 2009 को वेतन और भत्तों की संयुक्त समिति के सदस्य बने
मई 2014 में आठवीं बार लोकसभा के लिए चुने गये
सातअक्टूबर 2014 में खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों की स्थायी समिति के सदस्य बने
स्टील मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे
स्वायत्तशासी परिषद की स्थापना से मिली आंदोलन को दिशा
1990 के दशक में जब झारखंड अलग राज्य की मांग तेज हो रही थी, तब शिबू सोरेन ने केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर स्वायत्तशासी परिषद (Autonomous Council) का गठन करवाया। इस परिषद ने न केवल स्थानीय प्रशासन को मजबूती दी, बल्कि झारखंड को एक अलग पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम था।परिसीमन 2008: आदिवासी हित में लिया गया कड़ा फैसला
2008 में देशभर में चल रहे परिसीमन के दौर में, झारखंड के कई आदिवासी क्षेत्रों की पहचान मिटने की आशंका थी। उस समय शिबू सोरेन ने लोकसभा में तीव्र विरोध दर्ज कराते हुए परिसीमन को झारखंड में लागू होने से रोका। उनका तर्क था कि यह आदिवासियों की जनसांख्यिकीय ताकत को कमज़ोर कर देगा।
एक नेता, एक आंदोलन, एक विरासत
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन संघर्ष, जनहित और आदिवासी अस्मिता की मिसाल है। उन्होंने कई बार केंद्रीय मंत्री पद भी संभाला और हमेशा झारखंड की आवाज़ को दिल्ली तक पहुंचाया।
निष्कर्ष
शिबू सोरेन के निधन से न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश ने एक ऐसा नेता खो दिया है जिसने हाशिए के समाज को मुख्यधारा से जोड़ने में जीवन खपा दिया। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।