वोट के बदले नोट मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, घूस के मामलों में MP/MLA को नहीं मिलेगी छूट
सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत लेनेके मामलों में सांसदों और विधायकों को उनके विशेषाधिकार के तहत छूट देनेवाले अपने ही आदेश को पलट दिया है। कोर्ट स्पष्ट कहा है कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत लेनेके मामलों में सांसदों और विधायकों को उनके विशेषाधिकार के तहत छूट देनेवाले अपने ही आदेश को पलट दिया है। कोर्ट स्पष्ट कहा है कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया।
यह भी पढ़ें:Jharkhand: दुमका के हंसडीहा में ट्रक बाइक सवार समेत तीन को कुचला, मौत, आक्रोशित लोगों हाइवे किया जाम
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए कहा कि सदन में वोट के बदले नोट मामले में छूट नहीं मिलेगी। ऐसे में अब यह साफ हो चुका है कि इस मामले में सांसदों/विधायकों को नहीं राहत मिलेगी। सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं दी जायेगी। CJI डी वाई चंद्रचूड़,जस्टिस एएस बोपन्ना,जस्टिस एमएम सुंदरेश,जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला,जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस पर फैसला सुनाया है। इस मामले पर सभी जजों का फैसला एकमत था।
सात जजों के संविधान पीठ ने पांच अक्टूबर 2023 को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था। दो दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी को घूसखोरी में छूट नहीं दी जा सकती है। घुस लेने पर कोई विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वोट के बदले नोट लेने वालों पर केस चलना चाहिए।
वर्ष 1993 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार के समर्थन में वोट करने के लिए सांसदों को घूस दिए जाने का आरोप लगा था। इस पर 1998 में पांच जजों की बेंच ने 3-2 के बहुमत से फैसला दिया था कि संसद में जो भी कार्य सांसद करते हैं, यह उनके विशेषाधिकार में आता है। लेकिन अब यह फैसला बदल दिया गया है। मामला जन-प्रतिनिधियों द्वारा सदन के अंदर भाषण देने और मत डालनेके लिए रिश्वत लेनेका था. 1998 में कोर्ट ने फैसला दिया था किसांसद और विधायकों पर इस तरह के मामलों में रिश्वत लेनेके लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उन्हें संसदीय विशेषाधिकार का संरक्षण प्राप्त है।
ताजा फैसले में संविधान पीठ ने कहा है कि पुराना फैसला गलत था। बेंच के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत जन-प्रतिनिधियों को संसद और विधान सभाओं के अंदर कुछ करने और कहने के लिए दी गई छूट सदन की सामूहिक कार्यप्रणाली से संबंधित है। अनुच्छेद 105 (2) के तहत सांसदों को और अनुच्छेद 194 (2) के तहत विधायकों को विशेषाधिकार मिलते हैं। कोर्ट ने कहा कि इन विशेषाधिकारों का जन-प्रतिनिधियों के मूलभूत कार्यों से संबंध होना आवश्यक है। रिश्वत लेना इस विशेषाधिकार के तहत नहीं आता है।