SC/ST Act पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: सार्वजनिक स्थान की परिभाषा पर कार्रवाई रद्द, आरोपितों को बड़ी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट के तहत आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई रद्द कर दी। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता का घर सार्वजनिक दृश्य में नहीं आता, इसलिए मामला SC/ST एक्ट में नहीं बनेगा।
- आईपीसी के तहत कार्यवाही जारी रहेगी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज एक गंभीर मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कुछ आरोपितों के खिलाफ चल रही कानूनी कार्यवाही को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता का घर “सार्वजनिक दृश्य (Public View)” की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए इस आधार पर SC/ST एक्ट के तहत केस नहीं बनता।
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यह फैसला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सुनाया। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ किया कि यदि आरोपितों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कोई अपराध बनता है, तो उस पर कानून के अनुसार कार्यवाही जारी रहेगी।
हाई कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती
यह मामला उस समय सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जब आरोपितों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जुलाई महीने में दिए गए आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए आरोपितों को SC/ST एक्ट के तहत मुकदमे का सामना करने का आदेश दिया था।
निचली अदालत ने क्या कहा था?
निचली अदालत ने आरोपितों को SC/ST अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए तलब किया था। आरोप था कि शिकायतकर्ता के बेटे के साथ सार्वजनिक सड़क पर मारपीट की गई और जातिसूचक गालियां दी गईं, जिससे यह मामला SC/ST एक्ट के तहत आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द की कार्रवाई?
शीर्ष अदालत ने मामले की गहन समीक्षा के बाद कहा: “शिकायतकर्ता द्वारा पहले दायर आवेदन से स्पष्ट है कि कथित जातिसूचक गालियां शिकायतकर्ता के परिसर के अंदर दी गई थीं। यह स्थिति प्रथम दृष्टया SC/ST एक्ट की उस वैधानिक शर्त को पूरा नहीं करती, जिसमें अपराध का ‘सार्वजनिक दृश्य में होना’ आवश्यक है।” कोर्ट ने इसी आधार पर SC/ST एक्ट के तहत चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया।
लेकिन IPC की धाराएं रहेंगी प्रभावी
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल SC/ST एक्ट से जुड़ा है। यदि आरोपितों पर IPC की अन्य धाराएं लागू होती हैं, तो उन पर ट्रायल आगे भी जारी रह सकता है।
कानूनी महत्व
यह फैसला आने वाले समय में SC/ST एक्ट से जुड़े मामलों में “सार्वजनिक दृश्य” की व्याख्या को लेकर एक महत्वपूर्ण नजीर (Judicial Precedent) बन सकता है।






