बिहार: 1983 में दर्ज हुआ FIR, 240 तारीखों में चार आरोपितों की मौत, 40 साल बाद कोर्ट का फैसला, सभी बरी

नालंदा बिहारशरीफ जिला न्यायालय ने वन्य अधिकार क्षेत्र में मेटल एवं छर्री तोड़वाने के 40 वर्ष पुराने मुकदमे का शनिवार को निपटारा किया। एसीजेएम सात सेफली नारायण की कोर्ट ने वर्ष 1983 दर्ज हुए केस में सभी आठ आरोपितों को रिहाई कर दिया। हालांकि इनमें से चार अब इस दुनिया में नहीं हैं। 

बिहार: 1983 में दर्ज हुआ FIR, 240 तारीखों में चार आरोपितों की मौत, 40 साल बाद कोर्ट का फैसला, सभी बरी

पटना। नालंदा बिहारशरीफ जिला न्यायालय ने वन्य अधिकार क्षेत्र में मेटल एवं छर्री तोड़वाने के 40 वर्ष पुराने मुकदमे का शनिवार को निपटारा किया। एसीजेएम सात सेफली नारायण की कोर्ट ने वर्ष 1983 दर्ज हुए केस में सभी आठ आरोपितों को रिहाई कर दिया। हालांकि इनमें से चार अब इस दुनिया में नहीं हैं। 

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राजगीर पुलिस स्टेशनएरिया के इस पुराने मामले की केस पंजी के कई पेज खास्ता हाल हो चुके हैं। आठ में चार आरोपित राजेंद्र प्रसाद, सुरेश सिंह, नरेश सिंह व सकल सिंह की मृत्यु हो चुकी है। नवादा जिला निवासी कुलदीप यादव उर्फ साधु जी, रमेश यादव, शिवाल व रामशकल सिंह जीवित हैं। ये सभी 70 से 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं। लेकिन न्याय के प्रति इनके उत्साह में कमी नहीं थी। आरोप से मुक्ति के लिए सुनवाई की निर्धारित तिथियों पर वे सभी उपस्थित रहे। मुकदमें में कुल 240 तारीखें पड़ीं। मामले के निपटारे में कुल 40 वर्षों का समय लगा। एडवोकेट गौरव कुणाल ने अतत: सबी को न्याय दिला दिया।

प्रतिबंधित वन्य क्षेत्र में कार्य करने का था आरोप

राजगीर पुलिस स्टेशन में तत्कालीन वनपाल धनंजय महतो के आवेदन पर इन आठ लोगों के खिलाफ सेक्शन 379 आइपीसी के  तहत पांच सितंबर 1983 को एफआइआर दर्ज की गई थी।  सभी अभियुक्त वन क्षेत्र में मेटल एवं छर्री तोड़वा रहे थे। वन्य अधिकार क्षेत्र में इस प्रकार का कार्य करवाने पर पूरी तरह पाबंदी है। आरोप था कि मना करने पर गाली-गलौज करते हुए इन लोगों ने वनपाल से आर्म्स भी ले लिया था। सभी अभियुक्तों को जुलाई 85 में सम्मन निर्गत किया गया था। इस मामले में सभी ने बेल भी लिया था। 1988 में इसी मामले से संबंधित एक क्रमिनल रिविजन हाईकोर्ट में लंबित था। 
बचाव में आरोपितों ने कोर्ट में जमा किये थे कागजात

सभी आरोपितों ने मामले में कोर्ट में कागजात भी दाखिल किया था। ये सभी कंट्रेक्टर थे। एक प्लांट रजिस्ट्री डीड के तहत लीज पर लेने के बाद उसमें कार्य कर रहे थे। 1988 के बाद ज्यादातर निर्धारित तिथियों में हाईकोर्ट आदेश की प्रतीक्षा में सुनवाई लंबित रही थी। रिहा किये गये  चारों अभियुक्तों ने  कहा कि जीवन के अंतिम क्षण में वे अपराध बोध से मुक्त होकर अपने मन का भार हटाना चाहते थे। इस रिहाई से उन्हें मानसिक शांति मिली है। इस आरोप में हम सभी बेकसूर थे। वन विभाग ने बेवजह उन्हें फंसाया था।