चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल से, 20 को महाष्टमी पूजा और 21 को महानवमी
चैत्र नवरात्रा 13 अप्रैल से शुरु होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 13 अप्रैल से 22 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र पर्व मनाया जायेगा। चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ माना जाता है।
धनबाद। चैत्र नवरात्रा 13 अप्रैल से शुरु होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 13 अप्रैल से 22 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र पर्व मनाया जायेगा। चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ माना जाता है।
अश्व पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा
नवरात्र में देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं अनुष्ठानपूर्वक पूजा की जाती है। इस वर्ष मां दुर्गा अश्व पर सवार होकर आयेंगी। पौराणिक मान्यताओं अनुसार सृष्टि के आरंभ का समय चैत्र नवरात्र का पहला दिन माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना करने का कार्यभार सौंपा था। इसी दिन से कालगणना शरू हुई थी।
रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं,शनि और मंगलवार को घोड़े पर, गुरुवार और शुक्रवार को डोला पर, बुधवार को नाव पर आती हैं। मां दुर्गा के हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है, घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है। नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है और यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में विभिन्न कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है। भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती है जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है। शनि और मंगल को पैदल जाती हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है। बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि वृद्धि होती है। गुरुवार को भगवती मनुष्य की सवारी करती हैं, जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है। इस प्रकार भगवती का आना जाना विभिन्न फल सूचक हैं।
चैत्र नवरात्र के साथ ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत
चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ माना जाता है। देवी पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ से पूर्व अंधकार का साम्रज्य था। तब आदि शक्ति जगदंबा देवी अपने कूष्मांडा अवतार में भिन्न वनस्पतियों और दूसरी वस्तुओं को संरक्षित करते हुए सूर्यमंडल के मध्य में व्याप्त थीं। जगत निर्माण के समय माता ने ही ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव की रचना की थी। इसके बाद सत, रज और तम नामक गुणों से तीन देवियां लक्ष्मी,सरस्वती और काली माता की उत्पत्ति हुईं।आदिशक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की थी। मां ने ही भगवान विष्णु को पालनहार और शिवजी को संहारकर्ता बनाया और सृष्टि के निर्माण का कार्य संपूर्ण हुआ। इसलिए सृष्टि के आरंभ की तिथि से नौ दिनों तक मां अम्बे के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।इस दिन से ही पंचांग की गणना भी की जाती है। मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है।
चैत्र नवरात्र के शुभ मुहूर्त
कलश स्थापन : 13 अप्रैल मंगलवार को सुबह 05:45 से 08:47 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त : 11:35 से 12:25 तक।
महानिशापूजा : 19 अप्रैल सोमवार को सप्तमीयुक्त अष्टमी।
महाअष्टमी व्रत : 20 अप्रैल मंगलवार।
श्री राम जन्मोत्सव : रामनवमी, नवरात्र हवन 21 अप्रैल बुधवार।
वर्ष में चार बार आता है नवरात्रि
नवरात्रि का त्योहार वर्ष में चार बार आता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के साथ दो और भी नवरात्रि होती है।इन्हें माघ नवरात्रि और आषाढ़ नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। हालांकि, इस नवरात्रि की धार्मिक मान्यता अधिक है। यह 13 अप्रैल की मंगलवार से प्रारम्भ हो रही है और इसका समापन 21 अप्रैल को होगा। इसमें भक्त इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा-अर्चना करेंगे।
नवरात्रि की पूजन विधि
आचार्यों के अनुसार चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को प्रात: काल स्नान करने के बाद आगमन, पाद्य, अर्घय, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि एवं प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचांग से नव वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्वर निवास और फलाधीप आदि का फल श्रवण करें। निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-बंदनवार आदि से सुशोभित करें।